
महानायक धर्मेन्द्र की यादों पर एक गंभीर और मार्मिक वृत्तांत -अनिल अनूप
दुनिया की सबसे चमकदार रोशनी अक्सर सबसे गहरे अंधेरे में प्रकट होती है। और हिन्दी सिनेमा के लिए यह रोशनी थे—धर्मेन्द्र। 24 नवंबर 2025 की उस उदास दोपहर, जब ‘ही-मैन’ ने इस दुनिया को अलविदा कहा, भारतीय सिनेमा का एक विशाल सितारा टूट गया। लेकिन सितारों की यही नियति है—वे गिरकर भी धरती को उजाला देते हैं।
देहाती मिट्टी की सुगंध से सितारे तक
धर्मेन्द्र का जन्म पंजाब के साहनेवाल में हुआ था, जहां की मिट्टी और हवा उनके रक्त में बसी थी। रेलवे में मामूली नौकरी करते हुए उन्होंने फिल्मफेयर टैलेंट हंट फॉर्म भरा और मुंबई आए। संघर्ष के दौर में उनकी ईमानदारी और मेहनत ने उन्हें आगे बढ़ाया।
मासूमियत, ताकत और दिल की नरमी
धर्मेन्द्र विरोधाभासों के स्वामी थे—मजबूत भी, कोमल भी। उनकी आंखों की कशिश दर्शकों को गहराई तक छू जाती थी। ‘ही-मैन’ का खिताब उन्हें उनकी सच्ची मर्दानगी और दिल की नरमी के लिए मिला।
सिनेमा का अमर अध्याय
300 से अधिक फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया। चाहे वह शोले का वीरू हो या सत्यकाम का आदर्श नायक, हर किरदार में मानवता की झलक थी।
सत्यकाम – आत्मा का अभिनय
सत्यकाम में धर्मेन्द्र ने जो गंभीर और आदर्शवादी भूमिका निभाई, वह हिंदी सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में से एक मानी जाती है। उन्होंने इसे केवल निभाया नहीं बल्कि जिया था।
रिश्तों की कोमल रेखाएं
उनके संवादों में खामोशी की गहराई थी जो शब्दों से परे थी। वे प्रेम, विरह, और सम्मान को निभाने वाले कलाकार थे।
शोले – सांस्कृतिक अमरत्व
वीरू का किरदार और उसकी दोस्ती धर्मेन्द्र के कारण सदाबहार बनी। “बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना” संवाद आज भी उतना ही दमदार है।
वृद्धावस्था में शांत चमक
अंतिम दिनों में भी वे अपने प्रशंसकों के साथ जुड़े रहे, कविताएं सुनाते और अपनी मिट्टी की सादगी को बनाए रखा।
अंतिम पड़ाव और विरासत
धर्मेन्द्र ने हमेशा मुस्कुराते हुए अंतिम सांस ली। उनका जाना एक युग का अंत है, लेकिन उनकी विरासत अमर है। वे एक भावना हैं जो सदैव जीवित रहेगी।
“तुम भी चले गए… पर तुम कहीं गए नहीं। तुम हमारी स्मृतियों, फिल्मों, भावनाओं और संस्कृति में हमेशा रहोगे।”