बलिया हिंसा की यह घटना पूरे उत्तर प्रदेश में चर्चा का विषय बन गई है। बलिया जिले के अधिसुझवा गांव में गुरुवार को एक सांस्कृतिक आयोजन के दौरान यादव और बिंद समुदाय के बीच जातीय गीतों को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि हिंसक संघर्ष में बदल गया। इस बलिया हिंसा में कुल 22 लोग घायल हुए हैं, जिनमें चार की हालत गंभीर बताई जा रही है। घटना के बाद से पूरा गांव तनावग्रस्त है, लेकिन पुलिस ने हालात नियंत्रित कर लिए हैं।
जातीय गीतों से उपजा विवाद
बलिया हिंसा की शुरुआत एक आयोजन में तब हुई जब यादव समुदाय के लोगों ने माइक पर अपने समाज से जुड़े गीत बजाने शुरू किए। इससे बिंद समुदाय के लोग आक्रोशित हो गए और उन्होंने भी अपने जातीय गीत बजाने लगे। कुछ ही मिनटों में माहौल गरमाता चला गया और दोनों ओर से हाथापाई होने लगी।
बिंद पक्ष का आरोप है कि यादवों ने पहले हमला किया और उनके ऊपर लाठी-डंडों से प्रहार किया। इस हमले में बिंद समुदाय के आठ लोग घायल हुए, जिनमें चार की हालत गंभीर है। बिंद पक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि यादवों ने उनके चार वाद्य यंत्र छीन लिए और आयोजन स्थल पर तोड़फोड़ की।
यादव पक्ष ने गांव की राजनीति को बताया वजह
दूसरी ओर, यादव समुदाय का दावा है कि अधिसुझवा गांव विवाद की जड़ कोई सांस्कृतिक टकराव नहीं, बल्कि गांव की राजनीति है। आयोजन में वर्तमान प्रधान प्रतिनिधि मनोज बिंद मंच से पूर्व प्रधान सुनील यादव पर भ्रष्टाचार और लूट के आरोप लगा रहे थे। इस दौरान यादव पक्ष ने इसका विरोध किया, जिसके बाद बिंद समुदाय के कुछ लोगों ने हमला बोल दिया। इस झड़प में कमलेश यादव सहित कई लोग घायल हुए। दोनों समुदाय एक-दूसरे पर पहले हमले का आरोप लगा रहे हैं।
पुलिस की तत्पर कार्रवाई, 10 आरोपी हिरासत में
घटना की सूचना मिलते ही रेवती थाना पुलिस टीम मौके पर पहुंची और स्थिति को काबू में किया। बलिया पुलिस ने दोनों पक्षों से शिकायतें दर्ज कीं। यादव पक्ष की तहरीर पर बिंद समुदाय के 8 नामजद लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई, वहीं बिंद पक्ष की शिकायत पर यादव समुदाय के 14 लोगों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया।
क्षेत्राधिकारी बैरिया मोहम्मद फहीम कुरैशी ने बताया कि अब तक 10 संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है। इसके साथ ही अधिसुझवा गांव में भारी पुलिस बल तैनात है ताकि कोई अप्रिय घटना दोबारा न हो।
गांव की राजनीति से भड़की बलिया हिंसा
पुलिस जांच में यह साफ हो रहा है कि यह बलिया हिंसा केवल जातीय गीतों तक सीमित नहीं थी, बल्कि गांव की पुरानी राजनीतिक रंजिश का परिणाम थी। सूत्रों के मुताबिक, पिछले साल पंचायत चुनाव के दौरान यादव और बिंद समुदाय के बीच मतभेद बढ़े थे। गांव में नेतृत्व और सत्ता को लेकर बनी गुटबाजी ने इस बार फिर बलिया हिंसा का रूप ले लिया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि दोनों समुदायों में तनाव पिछले कुछ महीनों से था, जो इस आयोजन में विस्फोटक रूप में सामने आया। पुलिस अधिकारियों का मानना है कि सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की किसी ने सोची-समझी कोशिश की थी, जिसे रोकने में प्रशासन अब पूरी मुस्तैदी से जुटा है।
प्रशासन ने गांव को बनाया पुलिस छावनी
घटना के बाद से बलिया पुलिस ने पूरे अधिसुझवा गांव को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया है। चप्पे-चप्पे पर फोर्स मौजूद है। सीओ बैरिया से लेकर एएसपी, एसएचओ तक लगातार गांव का दौरा कर रहे हैं। पुलिस ने गांव में शांति समिति की बैठक भी बुलाई, जिसमें दोनों पक्षों के प्रमुख लोगों ने भाग लिया और आपसी सौहार्द बनाए रखने का आश्वासन दिया।
पुलिस अधीक्षक बलिया ने चेतावनी दी है कि बलिया हिंसा भड़काने वाले किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा। प्रशासन अब गांव में सीसीटीवी कैमरे लगाने और नियमित गश्त बढ़ाने की योजना बना रहा है ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति फिर न बने।
घायलों की हालत और उपचार
इस बलिया हिंसा में घायल हुए 22 लोगों को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनमें से चार की हालत गंभीर होने के कारण उन्हें मऊ मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया है। डॉक्टरों के अनुसार, घायलों के सिर और हाथों में गंभीर चोटें हैं। स्थानीय प्रशासन ने सभी घायलों के इलाज का खर्च अपने स्तर पर उठाने का आदेश दिया है।
स्थानीय लोगों ने की शांति की अपील
अधिसुझवा गांव विवाद के बाद स्थानीय बुद्धिजीवी और सामाजिक संगठनों ने शांति बनाए रखने की अपील की है। युवा संगठनों ने कहा कि “गांव की एकता और भाईचारा बनाए रखना सबसे जरूरी है, ताकि बलिया हिंसा जैसी घटनाएं दोबारा न हों।” वहीं, प्रशासन ने अफवाहों पर रोक लगाने के लिए सोशल मीडिया मॉनिटरिंग शुरू कर दी है।
बलिया हिंसा से उपजे सामाजिक संदेश
यह बलिया हिंसा केवल एक गांव की घटना नहीं, बल्कि समाज में बढ़ते जातीय तनाव का प्रतीक है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे विवाद ग्रामीण राजनीति, सामाजिक असमानता और सांस्कृतिक पहचान से जुड़े हैं। राज्य प्रशासन ने ऐसे गांवों में “सद्भावना अभियान” शुरू करने की घोषणा की है ताकि दोनों समुदायों के बीच संवाद की संस्कृति विकसित हो सके।
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