संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट, उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले का बहुचर्चित कोषागार घोटाला अब एक गंभीर वित्तीय अपराध के रूप में सामने आया है। जांच में खुलासा हुआ है कि मृत पेंशनरों के नाम पर वर्षों तक करोड़ों रुपये की फर्जी निकासी की जाती रही, और अधिकारी मंजूरियाँ देते रहे। अब तक हुई जांच में 43 करोड़ 13 लाख रुपये के गबन की पुष्टि की जा चुकी है।
घोटाले की रकम और खातों का जाल
आर्थिक निरीक्षण में यह पाया गया कि कुल 93 खातों के माध्यम से यह रकम जारी की गई, जिनमें से तीन खातों से ही लगभग 10 करोड़ रुपये की निकासी दर्ज है। चार कोषागार कर्मचारियों सहित कुल 97 लोगों पर रिपोर्ट दर्ज की जा चुकी है। प्रारंभिक जांच में यह भी संकेत मिले हैं कि कुछ बैंक कर्मी और वरिष्ठ अधिकारी भी इस नेटवर्क का हिस्सा रहे।
मृत पेंशनरों के नाम पर जारी फर्जी भुगतान
जांच में यह सामने आया कि कुछ पेंशनरों का देहांत वर्षों पहले हो चुका था, पर उनके खातों से नियमित रूप से भुगतान जारी था। अधिकारियों ने फर्जी “सत्यापन” दस्तावेज तैयार कर इन्हें वैध दिखाया और भुगतान स्वीकृत कराया।
इस मामले में सहायक लेखाकार संदीप कुमार श्रीवास्तव पर भी आरोप लगा, जो पूछताछ से पहले ही बीमारी के चलते चल बसे। बताया जा रहा है कि उनके पास ऐसे दस्तावेज थे जो इस घोटाले की और परतें खोल सकते थे।
वरिष्ठ अधिकारियों से भी पूछताछ की तैयारी
जांच एजेंसियों ने साफ संकेत दिए हैं कि यह गड़बड़ी केवल निचले स्तर तक सीमित नहीं है। अब जांच की दिशा उन वरिष्ठ कोषाधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों की ओर मुड़ चुकी है जिनके हस्ताक्षर फर्जी भुगतान फाइलों पर पाए गए हैं। यह पता लगाया जा रहा है कि उन्होंने किन दस्तावेजों की समीक्षा किए बिना भुगतान के आदेश दिए।
ऑडिट प्रक्रिया पर सवाल
साल 2014 से 2025 तक एजी ऑफिस की कई ऑडिट टीमें चित्रकूट कोषागार का निरीक्षण करती रहीं, लेकिन किसी रिपोर्ट में इस बड़े फर्जीवाड़े का जिक्र नहीं मिला। यह स्थिति ऑडिट प्रणाली की निष्क्रियता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। यदि ऑडिट प्रभावी होती, तो यह घोटाला शायद वर्षों पहले उजागर हो जाता।
जांच के प्रमुख बिंदु
- जब खातों में पेंशन की राशि से कई गुना अधिक रकम जमा हो रही थी, तब किसी अधिकारी ने संदेह क्यों नहीं जताया?
- KYC और भुगतान स्वीकृति प्रक्रिया इतनी ढीली क्यों थी?
- क्या वरिष्ठ अधिकारियों ने फर्जी दस्तावेजों पर बिना जांच के हस्ताक्षर किए?
- क्या यह सब एक संगठित योजना के तहत हुआ?
प्रशासनिक प्रणाली की विफलता
चित्रकूट का यह मामला यह दिखाता है कि जब जवाबदेही और निगरानी दोनों कमजोर हों, तब भ्रष्टाचार व्यवस्था का हिस्सा बन जाता है। मृत पेंशनरों के नाम पर वर्षों तक रकम निकलना केवल कर्मचारियों का नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे का दोष है।
जांच टीमें अब किस पर फोकस कर रही हैं?
अभी जांच एजेंसियां पुराने भुगतान अभिलेखों, बैंक अनुमति पत्रों और वरिष्ठ अधिकारियों के हस्ताक्षरों की जांच में जुटी हैं। शुरुआती निष्कर्ष बताते हैं कि पूरे तंत्र ने मिलकर इस भ्रष्टाचार को छिपाने की कोशिश की।
प्रशासनिक आत्ममंथन की ज़रूरत
यह मामला राज्य सरकार के लिए एक चेतावनी है कि यदि पारदर्शिता और निगरानी पर बल नहीं दिया गया, तो ऐसे घोटाले भविष्य में और गहरे होंगे। चित्रकूट की यह कहानी बताती है कि जब सत्यापन एक औपचारिकता बन जाए, तो भ्रष्टाचार एक परंपरा में बदल जाता है।
लोकप्रिय प्रश्न और उनके उत्तर
घोटाले में कुल कितनी राशि की फर्जी निकासी हुई?
अब तक की जांच में लगभग 43 करोड़ 13 लाख रुपये की फर्जी निकासी की पुष्टि हुई है।
इस मामले में कितने लोगों पर जांच चल रही है?
कुल 97 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज है, जिसमें चार कोषागार कर्मचारी शामिल हैं।
क्या वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है?
हाँ, जांच अब उन वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंच रही है जिन्होंने फर्जी भुगतान की फाइलों पर हस्ताक्षर किए थे।
जांच की अगली दिशा क्या है?
जांच टीम पिछले वर्षों के दस्तावेजों, भुगतान स्वीकृतियों और बैंक रिकॉर्ड की बारीकी से पड़ताल कर रही है।








