राजनीति के पैंतरे : रामपुर में आजम खान की वापसी से अखिलेश यादव की टेंशन बढ़ी

रामपुर पहुंचने के बाद आजम खान का काफिला और समर्थकों का जमावड़ा

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

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राजनीति के पैंतरे और आजम खान की रिहाई

उत्तर प्रदेश की राजनीति के पैंतरे इन दिनों पूरी तरह से बदलते नज़र आ रहे हैं। सीतापुर जेल से बाहर आने के बाद सपा के दिग्गज नेता आजम खान अपने गृहक्षेत्र रामपुर पहुंचे और तभी से प्रदेश की राजनीति में नई हलचल शुरू हो गई है। उनके तेवरों ने साफ कर दिया है कि सियासत का खेल अब और रोचक होने वाला है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आजम खान समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ देंगे या फिर अखिलेश यादव के साथ खड़े रहेंगे।

राजनीति के पैंतरे और बसपा में जाने की अटकलें

जब आजम खान से बहुजन समाज पार्टी में शामिल होने पर सवाल किया गया तो उन्होंने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। उन्होंने बस इतना कहा—”कयास लगाने वालों से पूछिए।” यह बयान भले ही छोटा था, लेकिन इसके मायने बड़े हैं। आजम ने सीधा खंडन भी नहीं किया और न ही हामी भरी। यही वजह है कि अब सियासी गलियारों में राजनीति के पैंतरे को लेकर चर्चा तेज है।

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राजनीति के पैंतरे : अखिलेश यादव की तीन टेंशन

आजम खान का अगला कदम अखिलेश यादव के लिए तीन बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

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1. पीडीए पॉलिटिक्स पर असर

अखिलेश यादव ने हाल ही में पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) राजनीति को आगे बढ़ाया है। मुस्लिम और यादव समीकरण से निकलकर उन्होंने दलित और गैर-यादव ओबीसी वोट को भी जोड़ने में सफलता पाई। लेकिन अगर आजम खान सपा से अलग होते हैं तो अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध लग सकती है।

2. समर्थकों का भरोसा डगमगाना

राजनीति के पैंतरे बताते हैं कि अखिलेश यादव अपने सहयोगियों को लंबे समय तक साथ रखने में असफल रहे हैं। चाहे शिवपाल यादव का अलग होना हो या सपा-बसपा गठबंधन का टूटना—हर बार चुनाव के बाद समर्थन घटा है। ऐसे में आजम खान का साथ छोड़ना पार्टी समर्थकों के भरोसे पर बड़ा असर डाल सकता है।

3. मजबूत छवि पर धब्बा

लोकसभा चुनाव के बाद से अखिलेश यादव की छवि एक मजबूत विपक्षी नेता की बनी थी। वे लगातार भाजपा सरकार पर हमला बोल रहे हैं। लेकिन आजम खान का अलग रास्ता उनकी छवि पर धब्बा साबित हो सकता है और विपक्ष के सामने कमजोर पड़ने की आशंका पैदा कर सकता है।

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राजनीति के पैंतरे ; जेल से रिहाई के बाद शक्ति प्रदर्शन

सीतापुर जेल से रामपुर तक आजम खान का सफर किसी शक्ति प्रदर्शन से कम नहीं रहा। जेल के बाहर समर्थकों की भीड़, छह दर्जन गाड़ियां और लगातार बढ़ता काफिला इस बात का संकेत था कि आजम खान अब भी भीड़ खींचने वाले बड़े नेता हैं। सीतापुर से रामपुर की दूरी आमतौर पर तीन घंटे में तय होती है, लेकिन उनके काफिले को दोगुना समय लग गया। इसे राजनीतिक संदेश के तौर पर देखा जा रहा है।

राजनीति के पैंतरे ने अखिलेश के लिए राहत की बातें की सामने

जहां एक तरफ अटकलें तेज हैं, वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के कई नेताओं ने यह दावा किया है कि आजम खान कहीं नहीं जाएंगे। सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष और आजम के करीबी वीरेंद्र गोयल ने कहा कि आजम सपा के संस्थापक सदस्य हैं और उन्होंने पार्टी का संविधान लिखा है। ऐसे में उनके अलग होने का सवाल ही नहीं उठता।

इसी तरह सपा के सीनियर नेता और पूर्व सांसद डॉ. एसटी हसन ने कहा कि आजम जिस घर को उन्होंने बनाया है, उसे कैसे छोड़ देंगे। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि राजनीति के पैंतरे कभी भी बदल सकते हैं और परिस्थितियों के बहकावे में वे इधर-उधर जा भी सकते हैं।

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राजनीति के पैंतरे और ऊहापोह की स्थिति

इस समय सपा और आजम खान के बीच ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। अखिलेश यादव ने रिहाई के तुरंत बाद कहा कि सपा की सरकार बनने पर आजम के सभी केस वापस लिए जाएंगे। दूसरी ओर शिवपाल यादव ने भी विश्वास जताया कि आजम कहीं नहीं जाएंगे। बावजूद इसके, आजम खान ने अभी तक कोई साफ संकेत नहीं दिया है। यही वजह है कि पूरे प्रदेश की निगाहें रामपुर की ओर टिकी हुई हैं।

राजनीति के पैंतरे अब आगे क्या?

आजम खान ने फिलहाल कहा है कि वे अपनी सेहत पर ध्यान देंगे और इलाज कराएंगे। उसके बाद ही राजनीति में आगे की राह तय करेंगे। इसका मतलब साफ है कि अभी भी बहुत कुछ अनकहा है। यही अनकहा सियासत को और दिलचस्प बना रहा है।

स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में राजनीति के पैंतरे नए मोड़ पर खड़े हैं। आजम खान के अगले कदम पर न सिर्फ रामपुर बल्कि पूरे प्रदेश की सियासत टिकी हुई है। अखिलेश यादव के लिए यह समय बेहद संवेदनशील है। अगर आजम पार्टी में बने रहते हैं तो सपा की मजबूती कायम रहेगी, लेकिन अगर वे अलग राह चुनते हैं तो यह अखिलेश की राजनीति के लिए बड़ा झटका साबित होगा।

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