सपा या बसपा : आज़म खान की रिहाई से गरमाई यूपी की राजनीति

सीतापुर जेल से रिहा होते सपा नेता आज़म खान, समर्थकों का स्वागत

अनुराग गुप्ता की रिपोर्ट

समाचार दर्पण 24.कॉम की टीम में जुड़ने का आमंत्रण पोस्टर, जिसमें हिमांशु मोदी का फोटो और संपर्क विवरण दिया गया है।
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सपा या बसपा : आज़म खान की रिहाई के बाद उठे सवाल

उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर से हलचल मच गई है। 23 महीने जेल में बिताने के बाद सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद एवं विधायक आज़म खान आखिरकार सीतापुर जेल से रिहा हो गए। उनकी रिहाई के बाद सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा हो गया है—आज़म खान सपा या बसपा का रास्ता चुनेंगे?

सीतापुर जेल से रिहा होते सपा नेता आज़म खान, समर्थकों का स्वागत
23 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान, उठने लगे सवाल—सपा या बसपा?

सुबह 7 बजे ही जेल से बाहर आने की संभावना थी, लेकिन जमानती बॉन्ड न भरने के कारण उनका बाहर निकलना दोपहर 12 बजे संभव हो पाया। इस दौरान जेल के बाहर उनके दोनों बेटे—अदीब और अब्दुल्ला आज़म खान, मुरादाबाद सांसद रुचि वीरा और बड़ी संख्या में समर्थक मौजूद रहे।

सपा या बसपा : आज़म खान की पहली प्रतिक्रिया

सीतापुर जेल से बाहर आने के बाद आज़म खान ने अपनी चुप्पी तोड़ी। उन्होंने कहा:

“सबका शुक्रिया, बहुत सी दुआएं मेरे लिए थीं। मैं जेल में किसी से नहीं मिला और न ही मुझे फ़ोन करने की इजाज़त थी, इसलिए बाहर की राजनीति से मेरा कोई संपर्क नहीं रहा।”

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सवालों के जवाब में, जब उनसे पूछा गया कि क्या वे सपा या बसपा का रास्ता चुनेंगे, तो उन्होंने कहा कि यह वही लोग बता सकते हैं जो अटकलें लगा रहे हैं। इस बयान के बाद चर्चाएं और तेज हो गई हैं।

सपा या बसपा : भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया

आजम खान की रिहाई पर भाजपा नेताओं ने भी अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी।

केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि “आज़म खान सपा या बसपा कहीं भी जाएं, 2027 में दोनों दलों की हार तय है।”

ब्रजेश पाठक ने साफ कहा कि “हम न्यायालय का सम्मान करते हैं और हर स्थिति में प्रदेश में कानून का राज स्थापित रहेगा।”

वहीं, अपर्णा यादव ने बयान दिया कि “बीजेपी ने न उन्हें जेल भेजा और न ही छुड़वाया। यह पूरी तरह से न्यायालय की प्रक्रिया थी।”

इन बयानों से साफ है कि भाजपा फिलहाल खुद को इस मसले से अलग रखकर विपक्ष की स्थिति देखने में लगी है।

सपा या बसपा : अखिलेश यादव और सहयोगियों का रुख

सपा मुखिया और सांसद अखिलेश यादव ने आज़म खान की रिहाई को “न्याय की जीत” बताया। उन्होंने कहा:

“हमें विश्वास था कि न्यायालय न्याय करेगा। उम्मीद है कि आने वाले समय में भाजपा कोई झूठा मुकदमा दर्ज नहीं करेगी। यह हमारे लिए खुशी की बात है कि आज़म खान रिहा हो गए।”

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वहीं, रुचि वीरा ने कहा कि “हमें न्यायपालिका पर भरोसा था। आज उनकी रिहाई हमारे लिए और उनके समर्थकों के लिए ऐतिहासिक पल है।”

इन बयानों से यह साफ झलकता है कि सपा चाहती है कि आज़म खान पार्टी के साथ बने रहें। लेकिन राजनीतिक समीकरणों के चलते सवाल लगातार बना हुआ है कि उनका अगला कदम सपा या बसपा में से किस ओर होगा।

सपा या बसपा : भविष्य की राजनीति पर अटकलें

आज़म खान मुस्लिम राजनीति के बड़े चेहरों में से एक माने जाते हैं। रामपुर और आसपास के इलाकों में उनका खासा प्रभाव है। यही कारण है कि उनकी रिहाई के बाद यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या वे अब सपा छोड़कर बसपा का दामन थामेंगे।

सपा के लिए चुनौती : आज़म खान का जाना समाजवादी पार्टी के लिए बड़ा झटका होगा, क्योंकि वे लंबे समय से पार्टी के मजबूत स्तंभ रहे हैं।

बसपा के लिए अवसर : अगर आज़म खान बसपा का रुख करते हैं तो बसपा मुस्लिम वोटों को अपने पाले में लाने में सफल हो सकती है।

भाजपा की रणनीति : भाजपा इस पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए है। भाजपा चाहती है कि विपक्ष में खींचतान बनी रहे ताकि 2027 के चुनावों में उसका फायदा मिल सके।

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इस तरह, सपा या बसपा का सवाल आने वाले महीनों में उत्तर प्रदेश की राजनीति की दिशा तय कर सकता है।

सपा या बसपा : जनता और समर्थकों की निगाहें

रामपुर और पश्चिमी यूपी में आज़म खान के समर्थक लंबे समय से उनकी रिहाई का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही वे जेल से बाहर आए, समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई। अब सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं कि वे आने वाले समय में किस पार्टी का चुनाव करेंगे—सपा या बसपा।

सपा या बसपा का सवाल बना रहेगा

आज़म खान की रिहाई ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई गर्माहट ला दी है। चाहे वे सपा में बने रहें या बसपा का दामन थाम लें, दोनों ही स्थितियों में प्रदेश की राजनीति पर इसका गहरा असर होगा।

यदि वे सपा में रहते हैं, तो पार्टी का मुस्लिम वोट बैंक और मजबूत होगा।

यदि वे बसपा में जाते हैं, तो बसपा को नई ऊर्जा और राजनीतिक अवसर मिलेगा।

फिलहाल, यह कहना जल्दबाजी होगी कि वे किस ओर जाएंगे। लेकिन इतना तय है कि आने वाले समय में “सपा या बसपा” का सवाल यूपी की राजनीति के केंद्र में रहेगा।

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