विमल बिहारी मंदिर में भव्य अन्नकूट: गोवर्धन पूजा पर 56 भोग से सजी श्रद्धा

हिमांशु मोदी की रिपोर्ट,

समाचार दर्पण 24.कॉम की टीम में जुड़ने का आमंत्रण पोस्टर, जिसमें हिमांशु मोदी का फोटो और संपर्क विवरण दिया गया है।
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तिरथराज विमलकुण्ड के नवनीत वातावरण में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ब्रज की पारंपरिक भक्ति का जोरदार प्रदर्शन देखा गया।

समाचार सार — संक्षेप में

विमलकुण्ड स्थित विमल बिहारी मंदिर पर आज भव्य अन्नकूट आयोजन हुआ। पारंपरिक विधियों से तैयार किए गए कुल 56 प्रकार के भोग भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किए गए। मंदिर के सेवा अधिकारी संजय लवानिया ने गोवर्धन पूजा का महत्व समझाते हुए स्थानीय परंपरा और श्रीमद्भागवत पुराण से जुड़ी कथा का वर्णन किया।

उत्सव का वर्णन

दीपावली के अगले दिन मनाए जाने वाले अन्नकूट पर्व पर मंदिर प्रांगण फूलों, पत्तियों और पारंपरिक सजावट से आलोकित रहा। गाय के गोबर से निर्मित गोवर्धन पर्वत का एक प्रतिक बनाया गया और उसे फूल, पत्ती व छोटे पत्थरों से सजा कर भगवान के समक्ष स्थापित किया गया।

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भोग में चावल, दाल, सब्जियाँ, खीर, गुलाब जामुन, फल, नमकीन और अन्य पारंपरिक व्यंजन शामिल थे। भोग को पर्वताकार सजाया गया और मंत्रोच्चार के साथ आरती एवं सात परिक्रमा की परंपरा निभाई गई।

पौराणिक महात्म्य और कथा

अन्नकूट पूजा की कथा श्रीमद्भागवत और विष्णु पुराण में विस्तृत रूप से मिलती है। श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र की पूजा की अपेक्षा गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा — क्योंकि गोवर्धन ही गायों को चारा, पानी और छाँव देता है। इंद्र क्रुद्ध होकर 7 दिन तक वर्षा कर देते हैं, तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और ब्रजवासियों व गायों की रक्षा की।

इस घटना के बाद माता यशोदा के बताए आठ-आठ व्यंजनों के आधार पर ब्रजवासियों ने सात दिन × आठ बार = 56 भोग की परंपरा आरम्भ की — जो आज भी अन्नकूट के रूप में जीवित है।

स्थानीय सहभागी और प्रबंधन

मंदिर के सेवाभावी, स्थानीय देवी-देवता समिति और असंख्य भक्तों ने सहयोग कर आयोजन को सुव्यवस्थित रखा। प्रसाद तैयार करने में स्थानीय महिलाओं और युवा स्वयंसेवकों की विशिष्ट भूमिका रही। मंदिर प्रबंधन ने साफ-सफाई, भंडारण और प्रसाद वितरण का विशेष ध्यान रखा ताकि श्रद्धालुओं को सुगम अनुभव मिले।

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क्यों है यह त्योहार महत्वपूर्ण? — SEO फ्रेंडली बिंदु

  • धार्मिक प्रतीकवाद: अहंकार पर भक्ति की जीत और प्राकृतिक स्रोतों (गोवर्धन) का सम्मान।
  • सांस्कृतिक संरक्षण: ब्रज की लोकपरंपरा और पाक-विविधता का जीवंत प्रदर्शन।
  • सामुदायिक सहभागिता: सामूहिक भोग-प्रस्तुति से सामुदायिक एकजुटता व सेवा भावना प्रबल होती है।

फोटो व मीडिया कवरेज

कार्यक्रम में ली गई तस्वीरों में भोग के रंगीन स्तूप, भक्तों की भीड़ और शाम की आरती के दृश्यों ने उत्सव की गरिमा को रेखांकित किया। स्थानीय मीडिया ने भी आयोजन का जीता-जागता कवरेज किया।

निष्कर्ष

विमल बिहारी मंदिर में आयोजित यह अन्नकूट न सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान था बल्कि एक सांस्कृतिक संदेश भी था — प्रकृति, परंपरा और भक्ति के बीच का गहरा संबंध। ब्रज की पौराणिक कथा आज भी जन-मानस में उतनी ही जीवंत है जितनी सदियों पहले थी।

रिपोर्टर: चुन्नीलाल प्रधान

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

अन्नकूट पूजा कब मनाया जाता है?
अन्नकूट पूजा सामान्यतः दीपावली के अगले दिन, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाई जाती है — इसे गोवर्धन पूजा के साथ भी मनाया जाता है।
क्यों 56 प्रकार के भोग लगाए जाते हैं?
पौराणिक कथा के अनुसार माता यशोदा श्रीकृष्ण को प्रतिदिन आठ बार अलग-अलग पकवान खिलाती थीं। कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत के ऊपर 7 दिन तक निवास किया — इसलिए 7×8 = 56 प्रकार के पकवान का भोग लगाया जाता है।
क्या अन्नकूट केवल ब्रज क्षेत्र तक सीमित है?
हालाँकि ब्रज क्षेत्र में यह उत्सव विशेष भव्यता से मनाया जाता है, पर भारत के अनेक हिस्सों में गोवर्धन पूजा व अन्नकूट की परंपरा देखी जाती है — रूप और रीतियों में स्थानीय अंतर हो सकते हैं।
मंदिर में प्रसाद वितरण किस प्रकार होता है?
मंदिर प्रबंधक एवं स्वयंसेवक प्रसाद (भोग) को भक्तों में वितरित करते हैं। कई स्थानों पर प्रसाद को घर लेकर जाया जाता है तथा कुछ स्थानों पर सामुदायिक भोग के रूप में साझा भी किया जाता है।



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