
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
महिला सशक्तिकरण और सरकारी दावे
महिला सशक्तिकरण को लेकर सरकार लगातार बड़ी-बड़ी बातें करती है। विभिन्न योजनाओं और अभियानों के जरिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, उन्हें रोजगार से जोड़ने और ग्रामीण स्तर पर उनके जीवन में सुधार लाने की कोशिश की जाती है। उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन भी इन्हीं योजनाओं में से एक है, जिसके तहत स्वयं सहायता समूह संचालित किए जाते हैं।
लेकिन, हकीकत अक्सर इन दावों से अलग दिखती है। चित्रकूट जिले के मऊ ब्लॉक के पटोरी गांव में संचालित उम्मीद प्रेरणा लघु उद्योग की महिलाओं के साथ हुआ ताजा मामला इसका बड़ा उदाहरण है।
महिला सशक्तिकरण की राह में बाधा
महिला सशक्तिकरण के नाम पर शुरू हुई इस योजना से जुड़ी महिलाओं का आरोप है कि उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना के कार्य से हटा दिया गया। इतना ही नहीं, दो माह का उनका वेतन भी रोक लिया गया। इससे महिलाओं के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।

इन महिलाओं ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर न्याय की गुहार लगाई है। उन्होंने कहा कि वर्षों की मेहनत और प्रशिक्षण के बाद उन्हें काम मिला था, लेकिन अब अधिकारियों की मनमानी के चलते उनकी मेहनत पर पानी फिर गया।
महिला सशक्तिकरण की आड़ में भ्रष्टाचार का आरोप
महिला सदस्यों ने विशेष रूप से बीएमएम (ब्लॉक मिशन मैनेजर) अजय सिंह पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि बीएमएम और एओपी (असिस्टेंट ऑपरेटिंग प्रोफेशनल) अपनी मनमानी से काम कर रहे हैं।
महिलाओं का आरोप है कि बिना किसी पूर्व सूचना के बैठक आयोजित की गई और पुराने सदस्यों को हटा दिया गया। उनकी जगह नए सदस्यों की भर्ती की गई। यह प्रक्रिया न केवल नियम विरुद्ध है बल्कि महिला सशक्तिकरण की भावना के भी खिलाफ है।
महिला सशक्तिकरण की योजनाओं पर धक्का
महिलाओं का कहना है कि 2021 से उन्होंने इस काम के लिए कड़ी मेहनत की। 2022-23 में उनका चयन हुआ और उन्होंने इटावा में प्रशिक्षण भी लिया। इस दौरान उन्होंने पूरी लगन से काम किया। लेकिन अचानक, बिना कारण बताए, उन्हें कार्य से हटा दिया गया।
महिलाओं ने कहा कि जब उन्होंने अधिकारियों की मनमानी का विरोध किया, तो यही विरोध उनके लिए खामियाजा बन गया। इस तरह महिला सशक्तिकरण की मूल भावना को ही ठेस पहुंचाई जा रही है।
महिला सशक्तिकरण बनाम अधिकारी की मनमानी
उम्मीद प्रेरणा लघु उद्योग से जुड़ी महिलाओं का स्पष्ट आरोप है कि बीएमएम अजय सिंह द्वारा लगातार भ्रष्टाचार और पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है। विरोध करने वालों को बाहर कर दिया जाता है और नए लोगों को जोड़ दिया जाता है।
इससे साफ है कि जिस मिशन का मकसद महिला सशक्तिकरण और रोजगार उपलब्ध कराना था, वही अब महिलाओं के लिए डर और असुरक्षा का कारण बनता जा रहा है।
महिला सशक्तिकरण पर प्रशासन की प्रतिक्रिया
इस पूरे मामले पर जब उपायुक्त स्वतः रोजगार ओमप्रकाश मिश्रा से बात की गई तो उन्होंने माना कि कुछ महिलाओं ने उनसे मुलाकात कर अपनी समस्या बताई थी। उन्होंने आश्वासन दिया कि जल्द ही ब्लॉक स्तर के अधिकारियों, एओपी और बीएमएम से बात कर मामले का समाधान किया जाएगा।
हालांकि महिलाओं का कहना है कि उन्हें अब तक न्याय नहीं मिला है और वे केवल आश्वासन पर जीने को मजबूर हैं।
महिला सशक्तिकरण का असली अर्थ
महिला सशक्तिकरण का मतलब केवल कागजों में योजनाएं चलाना या भाषण देना नहीं है। इसका असली अर्थ है—महिलाओं को अवसर, सुरक्षा और समान अधिकार देना। लेकिन जब सरकारी योजनाओं के नाम पर भ्रष्टाचार और मनमानी हावी हो जाए, तो इसका नुकसान सबसे ज्यादा उन्हीं महिलाओं को उठाना पड़ता है जिन्हें सशक्त बनाना था।
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महिला सशक्तिकरण पर सवाल तब खड़े होते हैं जब मेहनतकश महिलाएं अचानक अपने रोजगार से वंचित कर दी जाती हैं। चित्रकूट का यह मामला न केवल स्थानीय प्रशासन पर सवाल उठाता है बल्कि पूरे आजीविका मिशन की विश्वसनीयता पर भी धब्बा है।
जरूरी है कि सरकार और उच्च प्रशासनिक अधिकारी इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराएं और दोषियों पर कार्रवाई करें। तभी महिला सशक्तिकरण की असली भावना जीवित रह सकेगी।
