Friday, July 25, 2025
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भूखा गोवंश, कटा बजट और बीडीओ का दबाव—ग्राम प्रधानों ने किया सीडीओ से दो-टूक सवाल!

संजय सिंह राणा की रिपोर्ट

चित्रकूट में गौशालाओं के संचालन को लेकर ग्राम प्रधानों में गहरी नाराजगी। बीडीओ द्वारा दबाव बनाने और धनराशि में कटौती पर जताई आपत्ति। प्रधान संगठन ने सीडीओ को ज्ञापन सौंपते हुए हर माह भुगतान की मांग के साथ स्पष्ट किया कि आश्वासन मिलने पर ही गौशाला संचालन संभव होगा।

चित्रकूट। गौवंश संरक्षण और उनके भरण-पोषण को लेकर प्रदेश सरकार के तमाम निर्देशों के बीच ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। ग्राम प्रधानों का कहना है कि बिना पर्याप्त संसाधनों और समय पर भुगतान के, वे किस आधार पर गौशालाओं का संचालन करें? इसी मुद्दे को लेकर मंगलवार को अखिल भारतीय प्रधान संगठन के जिलाध्यक्ष सुनील शुक्ल और सचिव विष्णुकांत पांडेय के नेतृत्व में दर्जनों ग्राम प्रधानों ने विकास भवन में मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) अमृतपाल कौर से मुलाकात की और उन्हें विस्तृत ज्ञापन सौंपा।

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संचालन का दबाव, पर भुगतान नहीं

ज्ञापन में यह प्रमुख रूप से उजागर किया गया कि ग्राम पंचायतों पर 25 जुलाई तक सभी आवारा गोवंशों को गौशालाओं में संरक्षित करने के लिए बीडीओ स्तर से लगातार दबाव बनाया जा रहा है। गौरतलब है कि बीते वर्ष भी प्रधानों ने जुलाई माह से ही गौशालाओं का संचालन शुरू कर दिया था, लेकिन इसके लिए शासन से मिलने वाली भरण-पोषण धनराशि का भुगतान सितंबर से किया गया।

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इतना ही नहीं, कई ग्राम पंचायतों में निर्धारित धनराशि में 20 फीसदी तक की कटौती कर दी गई, जिससे प्रधानों को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। यह न केवल अव्यवहारिक है बल्कि ग्राम प्रधानों के साथ अन्याय भी है।

चरवाहों और गोवंश की सेहत पर असर

यह भी बताया गया कि जिस धनराशि से गोवंशों का पोषण किया जाता है, उसी से चरवाहों का मानदेय, भूसा, हरा चारा, चूनी-चोकर, गुड़, नमक आदि की व्यवस्थाएं भी की जाती हैं। यदि राशि में कटौती की जाती है, तो इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति असंभव हो जाती है, जिससे गौवंशों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

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प्रधानों ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि गौवंशों को समय-समय पर चराया न जाए, तो वे गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं, यहां तक कि उनकी मृत्यु भी हो सकती है। इसके बावजूद अगर केवल चरने के आधार पर राशि में कटौती की जाती है, तो यह एकतरफा निर्णय होगा।

अप्रैल का भुगतान अभी तक लंबित

प्रधानों ने यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने अप्रैल माह तक गौशालाओं का संचालन किया, परंतु अभी तक उन्हें उस अवधि का भुगतान नहीं मिला है। ऐसी परिस्थितियों में भविष्य में संचालन की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती।

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संचालन की शर्त – हर माह समय पर भुगतान

ज्ञापन में प्रधानों ने दो टूक कहा है कि वे इस वर्ष गौशालाओं का संचालन तभी करेंगे जब शासन स्तर से यह स्पष्ट आश्वासन दिया जाए कि भरण-पोषण की धनराशि का भुगतान प्रत्येक माह नियमित रूप से किया जाएगा। शासन की ओर से अगर इस दिशा में भरोसा नहीं दिलाया गया, तो ग्राम पंचायतें गौशालाओं का संचालन करने से पीछे हट जाएंगी।

भारी संख्या में ग्राम प्रधान हुए लामबंद

इस विरोध के दौरान जनपद के विभिन्न गांवों से पहुंचे दर्जनों प्रधानों ने एकजुटता दिखाई। इनमें प्रमुख रूप से पुष्पलता सिंह लौरी, सोना देवी, अयोध्या प्रसाद, मंटू देवी, सुलेखा देवी, लवदीप शुक्ला, प्रतिमा देवी, हर प्रसाद, फूल कुमारी, चंपा देवी, रामानंद रेहुंटा, राकेशचंद्र दुबारी, राजा लोहदा, गौरा देवी सकरौली, शिवशरण भरकोर्रा, अरुण भुइहरी माफी, प्रभावती गोबरिया, रामसूरत घुनुवा, सरताज हुसैन, सीमा देवी, जगमोहन लाल, रमेशचंद्र तिवारी, रामनिवास, मोहम्मद सलीम, वरण, इंद्रजीत, रामनाथ, राज कुमार, शिव कुमारी, संगीता देवी, दीपक तिवारी, स्वतंत्र, माया देवी, सुशीला, विक्रमादित्य, भगवानदीन, रामेश्वर आदि शामिल रहे।

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गौवंश संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण कार्य को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिए केवल आदेश देना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उसके साथ समुचित संसाधनों और समयबद्ध भुगतान की व्यवस्था भी अनिवार्य है। ग्राम प्रधानों का यह आंदोलन केवल एक शिकायत नहीं, बल्कि शासन से जवाबदेही की मांग भी है। अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो गौशालाओं का संचालन संकट में पड़ सकता है और इससे शासन की मंशा पर भी सवाल उठेंगे।

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