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मेटा डिस्क्रिप्शन (SEO हेतु): प्रसिद्ध हास्य अभिनेता गोवर्धन असरानी का 20 अक्टूबर 2025 को निधन हो गया। बॉलीवुड ने खोया एक बहुमुखी कलाकार जिसने 50 से अधिक वर्षों में 350 फिल्मों से दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी।
मुंबई, 20 अक्टूबर। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने वरिष्ठ अभिनेता गोवर्धन असरानी के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि असरानी ने भारतीय सिनेमा में अपनी स्थायी पहचान बनाई और वह एक बहुमुखी कलाकार के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे। गोवर्धन असरानी का निधन सोमवार को जुहू स्थित भारतीय आरोग्य निधि अस्पताल में हुआ, जहां उन्हें सांस लेने में तकलीफ के बाद चार दिन पहले भर्ती कराया गया था। फेफड़ों में पानी भर जाने के कारण सोमवार दोपहर तीन बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
गोवर्धन असरानी निधन की खबर फैलते ही फिल्मी जगत और उनके चाहने वालों में शोक की लहर दौड़ गई। उनके भतीजे अशोक असरानी ने इस दुखद समाचार की पुष्टि की। कुछ महीने पहले जुलाई 2025 में भी गोवर्धन असरानी के निधन की झूठी खबर फैली थी, जिसे बाद में फर्जी बताया गया था, लेकिन इस बार यह सच साबित हुई।
गोवर्धन असरानी ने पांच दशकों से अधिक समय तक हिंदी सिनेमा में काम किया और 350 से ज्यादा फिल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 1970 के दशक में वे सबसे भरोसेमंद और लोकप्रिय हास्य अभिनेता के रूप में जाने जाते थे। गोवर्धन असरानी फिल्मी सफर की शुरुआत पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट से हुई, जहाँ उन्हें मशहूर शिक्षक रोशन तनेजा से अभिनय की बारीकियाँ सीखने का अवसर मिला। उन्होंने जयपुर से अपनी शिक्षा पूरी की थी और वहीं आकाशवाणी में काम करते हुए अभिनय के प्रति लगाव बढ़ा।
गोवर्धन असरानी का फिल्मी सफर बेहद प्रेरणादायक रहा। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में एडिटिंग सिखाने के लिए आए निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी से उन्हें पहला मौका मिला। उन्होंने ‘गुड्डी’ फिल्म में एक छोटा रोल निभाया था, जिसमें जया भादुरी मुख्य भूमिका में थीं। यह फिल्म हिट हुई और असरानी पर निर्देशक मनोज कुमार की नज़र पड़ी। इसके बाद उन्हें लगातार फिल्मों के ऑफर मिलने लगे और इस तरह गोवर्धन असरानी का करियर आगे बढ़ता गया।
गोवर्धन असरानी की लोकप्रियता तब चरम पर पहुँची जब उन्होंने 1975 की सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ में ‘अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर’ का यादगार किरदार निभाया। असरानी ने एक साक्षात्कार में बताया था कि इस किरदार के लिए उन्हें हिटलर की मिसाल दी गई थी। उन्होंने हिटलर की बोलने की शैली और आवाज़ के उतार-चढ़ाव को अपने संवादों में शामिल किया, जिससे वह किरदार आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे चर्चित हास्य दृश्यों में गिना जाता है। उनका यह डायलॉग — “हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं” — आज भी लोगों की जुबान पर है।
गोवर्धन असरानी ने अपने अभिनय करियर में विविध भूमिकाएँ निभाईं। उन्होंने ‘मेरे अपने’, ‘कोशिश’, ‘बावर्ची’, ‘परिचय’, ‘अभिमान’, ‘चुपके चुपके’, ‘छोटी सी बात’ और ‘रफू चक्कर’ जैसी फिल्मों में अपनी अदाकारी से दर्शकों का दिल जीत लिया। गोवर्धन असरानी का हास्य अभिनय इतना स्वाभाविक था कि उन्होंने गंभीर दृश्यों में भी अपनी मौजूदगी से हँसी और मानवीयता दोनों का समावेश कर दिया।
गोवर्धन असरानी का योगदान सिर्फ अभिनेता के रूप में नहीं था। उन्होंने निर्देशन और कहानी लेखन के क्षेत्र में भी काम किया। उन्होंने ‘चल मुरारी हीरो बनने’ और ‘सल्लाम मेमसाब’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें हास्य के साथ मानवीय भावनाएँ भी झलकती हैं। हिंदी सिनेमा के अलावा असरानी ने गुजराती फिल्मों में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया और वहाँ भी लोकप्रियता हासिल की।
उनकी कॉमिक टाइमिंग, संवाद बोलने का अंदाज और पात्रों में गहराई से उतर जाने की क्षमता ने उन्हें बाकी हास्य अभिनेताओं से अलग बनाया। 1970 से लेकर 1990 तक वे फिल्म उद्योग के सबसे चहेते कलाकारों में से एक रहे। इसके बाद भी उन्होंने ‘धमाल’, ‘गोलमाल रिटर्न्स’, ‘भूल भुलैया’ और कई आधुनिक हास्य फिल्मों में भी काम किया।
गोवर्धन असरानी निधन के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, अभिनेता अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, अक्षय कुमार और जॉनी लीवर जैसे सितारों ने सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि दी। असरानी को उनके सहयोगियों ने ‘कॉमेडी के प्रोफेसर’ की उपाधि दी थी।
गोवर्धन असरानी का निधन हिंदी सिनेमा के एक युग का अंत है। उन्होंने 50 वर्षों से अधिक समय तक अभिनय किया, सैकड़ों यादगार किरदार दिए और हर उम्र के दर्शकों को हँसाया। असरानी का हास्य सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन दर्शन था — वे जीवन की कठिनाइयों को भी मुस्कुराते हुए जीने का सबक देते थे। उनके संवाद, उनका अभिनय और उनका विनम्र व्यक्तित्व सदैव प्रेरणा देता रहेगा।
आज गोवर्धन असरानी का नाम ‘हिंदी सिनेमा हास्य अभिनेता असरानी’ के रूप में अमर हो गया है। उनके द्वारा निभाए गए किरदार हमेशा दर्शकों के दिलों में ज़िंदा रहेंगे। उनके निधन के साथ एक ऐसी आवाज़ खामोश हो गई है जिसने भारत को 50 वर्षों तक हँसाया। लेकिन उनकी विरासत और उनका अभिनय हमेशा जीवित रहेगा — क्योंकि असरानी केवल अभिनेता नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अध्याय हैं, जिसे भारतीय सिनेमा कभी नहीं भूल पाएगा।