Monday, July 21, 2025
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नाम की राजनीति पर भड़की जनता—हरदोई को चाहिए सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य… संस्कार नहीं

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले का नाम बदलकर “प्रह्लाद नगरी” करने के प्रस्ताव ने राजनीतिक और सामाजिक बहस को जन्म दे दिया है। जानिए कौन कर रहा समर्थन, कौन है विरोध में और क्या कहती है आम जनता।

ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट

हरदोई का नाम बदलने की पहल ने छेड़ी बहस — ‘प्रह्लाद नगरी’ का प्रस्ताव विवादों में

हरदोई(उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले का नाम बदलकर ‘प्रह्लाद नगरी’ करने का प्रस्ताव हाल ही में पारित हुआ है, जिसने जिले में न केवल सामाजिक और राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है, बल्कि आम जनता को भी दो भागों में बाँट दिया है। एक ओर यह प्रस्ताव अपनी पौराणिक पहचान के आधार पर समर्थन पा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसे गैर-जरूरी, जनविरोधी और विकास-विरोधी बताया जा रहा है।

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📌 जिला पंचायत बोर्ड का फैसला और उसका आधार

जिला पंचायत अध्यक्ष प्रेमावती वर्मा की अध्यक्षता में शुक्रवार को आयोजित बोर्ड बैठक में यह विवादित प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ। बैठक में यह तर्क दिया गया कि हरदोई की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थान भक्त प्रह्लाद की तपोस्थली रहा है, अतः इसका नाम “प्रह्लाद नगरी” रखा जाना चाहिए।

बोर्ड का प्रस्ताव अब राज्य शासन को भेजा जाएगा, जहाँ इसे अंतिम निर्णय के लिए परखा जाएगा।

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🕉️ धार्मिक संगठनों का समर्थन

श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति दल, एक धार्मिक संगठन, इस प्रस्ताव के समर्थन में खुलकर सामने आया है। संगठन की प्रदेश महामंत्री अनुराधा मिश्रा ने कहा:

 “हरदोई को उसकी वास्तविक पौराणिक पहचान दिलाना अब समय की मांग है। भक्त प्रह्लाद की भूमि को ‘प्रह्लाद नगरी’ के नाम से जाना जाना चाहिए।’

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संगठन ने जिला पंचायत अध्यक्ष को प्रशस्ति पत्र, पुष्पगुच्छ और स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित भी किया।

⚠️ भाजपा विधायक का विरोध—श्याम प्रकाश का सख्त बयान

भाजपा विधायक श्याम प्रकाश (गोपामऊ) ने इस प्रस्ताव को न केवल जनविरोधी बताया, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि यह निर्णय प्रशासनिक उलझनों और भ्रष्टाचार को जन्म देगा। अपने फेसबुक पोस्ट में उन्होंने तीखा हमला बोलते हुए लिखा:

 “नाम बदलने से कोई व्यावहारिक लाभ नहीं होगा। जनता को दस्तावेज बदलवाने में वर्षों तक परेशान होना पड़ेगा और अफसर इस बहाने घूसखोरी करेंगे।”

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उन्होंने सुझाव दिया कि नाम बदलने के बजाय भक्त प्रह्लाद का स्मृति स्थल या भव्य पार्क बनाया जाए, जिससे भावनात्मक और पर्यटन दोनों लाभ मिल सकें।

🌐 सोशल मीडिया की दो फाड़—बहस के केंद्र में हरदोई

प्रस्ताव पारित होते ही सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों पर इस मुद्दे पर ज़बरदस्त बहस छिड़ गई। अधिकांश यूजर्स इस कदम को गैर-ज़रूरी और दिखावटी बता रहे हैं।

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जनता की प्रतिक्रियाएं ❞

एक यूजर ने तंज कसते हुए लिखा:

“नाम बदलने से विकास की गंगा बहाई जाएगी शायद, क्योंकि अब तक तो हरदोई नाम ने ही विकास रोका था!”

दूसरे यूजर ने व्यंग्य किया:

“गलियों का भी नाम बदल दो – हिरण्यकश्यप गली, रावण चौराहा, और होलिका चौक!”

हालांकि, कुछ लोगों ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए लिखा:

“प्रह्लाद नगरी एक सुंदर और पवित्र नाम है। हमारी पौराणिकता की पहचान लौटानी चाहिए।”

🛠️ जनता की प्राथमिकता: विकास, न कि नाम

बड़ी संख्या में लोगों ने ज़ोर देकर कहा कि नाम बदलने से पहले सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा और बेरोजगारी जैसे मूलभूत मुद्दों पर ध्यान देना ज़रूरी है। एक यूजर ने कटाक्ष किया:

“हरदोई की हालत देखो, और नाम बदलने की बात करते हो? सबसे पहले यहां के वर्षों से जमे नेताओं को बदलो।”

एक अन्य यूजर ने साफ कहा:

 “हमें ‘हरदोई की तस्वीर’ बदलनी है, नाम नहीं।”

🔎 नाम परिवर्तन की राजनीति — सिर्फ प्रतीकवाद या कुछ और?

इस पूरे घटनाक्रम ने एक गंभीर सवाल खड़ा किया है—क्या नाम बदलने से सचमुच सांस्कृतिक गौरव लौटता है, या फिर यह राजनीतिक लाभ के लिए किया गया प्रतीकात्मक कदम है? जबकि कुछ इसे संस्कृति से जुड़ने का प्रयास मानते हैं, कई लोग इसे वोट बैंक साधने की रणनीति मानते हैं।

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🧠 पहचान से पहले प्राथमिकताएं तय हों

हरदोई का नाम ‘प्रह्लाद नगरी’ करने का प्रस्ताव भले ही धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं के अनुरूप हो, लेकिन यह भी सच है कि ज़मीनी हकीकत इससे कहीं ज़्यादा जटिल है। जब जिले की जनता बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रही हो, तब नाम परिवर्तन को प्राथमिकता देना एक गंभीर सोच का विषय है।

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समय की मांग यह है कि सरकार और प्रशासन जनता की समस्याओं को केंद्र में रखकर निर्णय ले — न कि केवल प्रतीकों और पौराणिक संदर्भों के आधार पर।

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