अर्जुन वर्मा की रिपोर्ट
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में भर्ती भाजपा बूथ अध्यक्ष व उनके परिवार पर जमीनी विवाद को लेकर हमला। चार साल से प्रशासन की लापरवाही बनी रही वजह। आरोपी फरार, लार थाना क्षेत्र की बड़ी घटना।
लार(देवरिया)। नगर पंचायत लार क्षेत्र के वैश्करनी वार्ड में जमीनी विवाद ने शनिवार को हिंसक रूप ले लिया, जब कुछ दबंगों ने भाजपा बूथ अध्यक्ष राजू गोंड व उनके पूरे परिवार पर जानलेवा हमला कर दिया। इस हमले में राजू गोंड, उनके माता-पिता और बहन को गंभीर चोटें आईं, जिन्हें तत्काल गोरखपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया।
चार साल से न्याय की गुहार, लेकिन प्रशासन बना रहा मूकदर्शक
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पीड़ित राजू गोंड बीते चार वर्षों से अपनी पट्टे की जमीन को लेकर नगर पंचायत लार व तहसील कार्यालय का लगातार चक्कर काट रहा था, लेकिन हर बार उसे सिर्फ आश्वासन मिला। इस दौरान न तो प्रशासन ने कोई ठोस कदम उठाया, और न ही विवादित जमीन की स्थिति स्पष्ट की।
दबंगों का हमला: जब कानून का डर न हो
इस बार, विवाद इस कदर बढ़ा कि स्थानीय दबंगों ने खुलेआम भाजपा नेता और उनके परिवार पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया। चश्मदीदों के अनुसार, हमलावरों की संख्या आधा दर्जन से अधिक थी और वे पूरी तैयारी के साथ आए थे। पहले घर में घुसकर तोड़फोड़ की गई और फिर पूरे परिवार को बेरहमी से पीटा गया।
मेडिकल कॉलेज में भर्ती, हालत गंभीर
हमले में राजू गोंड, उनके माता-पिता और बहन को गंभीर रूप से घायल अवस्था में गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहां उनका इलाज चल रहा है। डॉक्टरों के अनुसार, राजू गोंड के सिर और पीठ पर गहरी चोटें हैं, जबकि उनकी माँ को कई फ्रैक्चर हुए हैं।
हमलावर फरार, पुलिस के हाथ खाली
घटना के बाद सभी आरोपी अपने घर छोड़कर फरार हो गए हैं। लार थाना पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है, लेकिन अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। यह भी एक बड़ा सवाल है कि जब एक राजनीतिक पार्टी का बूथ अध्यक्ष भी सुरक्षित नहीं है, तो आम जनता की सुरक्षा की स्थिति क्या होगी?
राजनीतिक हलकों में आक्रोश
घटना के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में गहरा रोष देखा जा रहा है। स्थानीय नेताओं ने प्रशासनिक लापरवाही को लेकर नाराज़गी जताई है और निष्पक्ष जांच व आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की है। वहीं कुछ समाजसेवी संगठनों ने भी प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की अपील की है।
प्रशासन पर सवाल: क्या यह मिलीभगत है?
इतना सब कुछ होने के बावजूद नगर पंचायत और तहसील प्रशासन की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। आखिर चार साल तक क्यों नहीं सुनी गई एक गरीब व्यक्ति की गुहार? क्या दबंगों को सरकारी संरक्षण प्राप्त है? और अगर नहीं, तो कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
आम आदमी को न्याय कब मिलेगा?
यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की पीड़ा नहीं, बल्कि उस तंत्र की विफलता का उदाहरण है जो ‘सबका साथ, सबका विकास’ का दावा करता है। यदि जल्द ही न्याय नहीं मिला, तो यह मामला एक बड़ा जन आंदोलन भी बन सकता है।