किसानों की खेती का एक साल :
राहत, रुकावटें और अधूरे जवाब

बांदा जिले में बुंदेलखंड का किसान खेत की रखवाली करता हुआ, पास में नहर की सिंचाई और आवारा पशु, सूर्यास्त के समय ग्रामीण कृषि परिदृश्य




संतोष कुमार सोनी की रिपोर्ट
IMG_COM_202512190117579550
previous arrow
next arrow

बांदा— बुंदेलखंड का यह जिला खेती के लिहाज़ से जितना जिद्दी है, उतना ही संवेदनशील भी। यहां की जमीन मेहनत मांगती है, पानी पर निर्भर है और मौसम की बेरुख़ी से जल्दी आहत हो जाती है। बीता वर्ष किसानों के लिए केवल मौसम की परीक्षा नहीं था; यह प्रशासनिक व्यवस्थाओं, योजनाओं की पहुंच और जमीनी क्रियान्वयन की भी कसौटी बन गया। खेतों में पसीना बहाने वाले किसानों ने एक साथ कई मोर्चों पर जूझते हुए साल काटा—कहीं सूखे का डर, कहीं अतिवृष्टि की मार; कहीं आवारा पशुओं की तबाही, तो कहीं कर्ज़ और लागत का दबाव।

यह रिपोर्ट उसी साल की परतें खोलती है—किसानों को किन समस्याओं ने सबसे ज़्यादा घेरा, प्रशासन ने क्या-क्या कदम उठाए और वे कितने असरदार रहे, तथा कौन-सी समस्याएं संज्ञान में होने के बावजूद अब भी अनसुलझी हैं और क्यों। उदाहरणों और ज़मीनी अनुभवों के साथ, यह एक पाठ्य-पुस्तकीय नहीं, बल्कि खेत-खलिहान से निकली कथा है।

मौसम की मार: कभी पानी नहीं, कभी पानी ही पानी

बांदा में वर्ष की शुरुआत से ही बारिश का पैटर्न असंतुलित रहा। खरीफ के लिए जून-जुलाई में समय पर और पर्याप्त बारिश न होना, फिर अगस्त-सितंबर में कहीं-कहीं तेज़ बौछारों का पड़ना—इस दोहरी मार ने बुवाई और फसल-स्थिरता दोनों बिगाड़ीं।

इसे भी पढें  कर लें जल्दी ये काम नहीं तो वोटर लिस्ट से हो जाएंगे बेनाम उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची अद्यतन अभियान तेज़ी पर

अतर्रा और बिसंडा ब्लॉकों के कई गांवों में जून के अंत तक खेत सूखे रहे। किसानों ने धान/अरहर की बुवाई टालनी पड़ी। बाद में जब बारिश आई, तो निचले खेतों में पानी भर गया—धान को तो राहत मिली, लेकिन अरहर और तिलहन को नुकसान पहुंचा।

रबी की तैयारी में भी यही अस्थिरता दिखी। अक्टूबर-नवंबर में अपेक्षित नमी न मिलने से गेहूं की बुवाई देर से हुई, जिससे उत्पादन पर असर पड़ा। बीज और खाद पर पहले से खर्च, फिर दोबारा बुवाई की मजबूरी—उत्पादन घटा, लागत बढ़ी और मुनाफ़ा सिकुड़ा।

सिंचाई की पुरानी परेशानी: नहरें हैं, पानी भरोसेमंद नहीं

बांदा में केन नदी और नहर-तंत्र मौजूद हैं, पर नहरों का समय पर पानी और टेल-एंड तक आपूर्ति अब भी बड़ी समस्या है। कई जगह सिल्ट, टूट-फूट और प्रबंधन की कमी दिखी।

नरैनी क्षेत्र में किसानों ने बताया कि मुख्य नहर में पानी छोड़ा गया, लेकिन अंतिम छोर के गांवों तक पहुंचते-पहुंचते दबाव कम हो गया। जिनके पास निजी बोरवेल थे, वे किसी तरह सिंचाई कर पाए; शेष किसानों की फसल प्रभावित हुई। कुछ माइनर नहरों की सफाई कागज़ पर हुई, खेतों तक असर नहीं दिखा। असमानता बढ़ी—संसाधन वाले किसान टिके, छोटे किसान पिछड़े। सिंचाई पर निजी खर्च (डीज़ल/बिजली) बढ़ा।

आवारा पशु: दिन-रात की रखवाली, फिर भी तबाही

बांदा के किसानों के लिए आवारा पशु साल भर की सबसे बड़ी सिरदर्दी बने रहे। गौशालाएं हैं, लेकिन क्षमता, रख-रखाव और निगरानी की कमी साफ़ दिखी।

बाबेरू ब्लॉक के गांवों में रात में खेतों की रखवाली आम दृश्य रही। फिर भी कई किसानों की गेहूं और चना की फसल झुंडों में आए पशुओं ने चट कर दी। शिकायतें दर्ज हुईं, पंचायत स्तर पर चर्चा भी हुई, पर स्थायी समाधान नहीं निकला—नतीजा: उत्पादन में सीधी गिरावट और सामाजिक तनाव।

इसे भी पढें  बांदा फावड़ा हमला: खेत में भैंस घुसने के विवाद में चचेरे भाई ने किया खौफनाक वार, युवक की मौत से गांव में मातम

लागत का दबाव और बाज़ार का असंतुलन

बीज, उर्वरक, कीटनाशक, डीज़ल—सब महंगे। दूसरी ओर, फसल की कीमत स्थिर या कई बार लागत से नीचे। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का लाभ सीमित फसलों और सीमित किसानों तक सिमटा रहा।

अरहर और तिल की बिक्री में कई किसानों को स्थानीय मंडी में घोषित दर से कम भाव मिला। सरकारी खरीद केंद्र खुले, लेकिन समय, तौल और भुगतान में देरी की शिकायतें रहीं—परिणामस्वरूप नकदी संकट और कर्ज़ पर निर्भरता बढ़ी।

फसल बीमा: काग़ज़ों में सुरक्षा, खेत में संदेह

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत नामांकन तो हुआ, लेकिन आकलन, सर्वे और भुगतान को लेकर भरोसा कमजोर रहा। अतिवृष्टि/सूखे से प्रभावित खेतों का सर्वे देर से हुआ। कुछ किसानों के अनुसार नुकसान स्पष्ट था, पर मुआवज़ा आंशिक या शून्य मिला—क्लेम प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल।

कर्ज़ और ऋण-माफी की उम्मीद

सहकारी और राष्ट्रीयकृत बैंकों से ऋण लेने वाले किसानों को किस्तों का दबाव झेलना पड़ा। ऋण-माफी की चर्चाएं रहीं, लेकिन व्यापक राहत नहीं दिखी। छोटे किसानों के लिए पुनर्गठन/री-शेड्यूलिंग की प्रक्रिया जटिल रही; अनौपचारिक कर्ज़ और महंगा पड़ा।

प्रशासन के कदम: जहां राहत दिखी, वहां असर

यह कहना अनुचित होगा कि प्रशासन निष्क्रिय रहा। सूखा/अतिवृष्टि प्रभावित क्षेत्रों में सर्वे, आंशिक राहत, नहर सफाई के निर्देश, गौशाला क्षमता बढ़ाने के प्रयास और खरीद केंद्रों के जरिए डिजिटल भुगतान—इनका सीमित लेकिन वास्तविक असर दिखा। हालांकि लाभ समान रूप से नहीं पहुंच पाया।

जहां प्रशासन चूका: संज्ञान के बावजूद अधूरे समाधान

(i) आवारा पशु— स्थायी नीति का अभाव; क्षमता सीमित, संचालन/फंडिंग अनियमित, निगरानी कमजोर।
(ii) नहर टेल-एंड— संरचनात्मक सुधार धीमे, जल-वितरण अनुशासन कमजोर।
(iii) फसल बीमा— सर्वे पद्धति, डेटा और संचार में पारदर्शिता की कमी।
(iv) उचित दाम— MSP की सीमित पहुंच, विविध फसलों की सरकारी खरीद का अभाव।

इसे भी पढें  जी एम एकेडमी बरहज में शिक्षा और संस्कृति का संगम, संस्थापक गौरीशंकर द्विवेदी को दी गई श्रद्धांजलि

किसान की आवाज़: खेत से प्रशासन तक

किसानों की मांगें नई नहीं—पानी समय पर, फसल सुरक्षित, दाम उचित, बीमा भरोसेमंद। ग्राम सभाओं में प्रस्ताव, ज्ञापन और संवाद हुए—कहीं समाधान निकला, पर व्यापक नीति नहीं बदली।

आगे की राह: क्या किया जाए?

आवारा पशु नीति (क्षमता-विस्तार, सख़्त निगरानी, स्थायी फंडिंग), टेल-एंड फोकस्ड सिंचाई, पारदर्शी बीमा सर्वे व समयबद्ध भुगतान, विविध फसलों की सरकारी खरीद और सरल ऋण पुनर्गठन—यही वह समन्वित रास्ता है जिससे बांदा की खेती उबर सकती है।

बांदा का किसान इस साल भी अकेला नहीं था—प्रशासनिक पहलें थीं, पर अधूरी। जहां राहत पहुंची, वहां भरोसा बना; जहां समाधान अटका, वहां असंतोष बढ़ा। मेहनत हमारी, जोखिम भी हमारा—तो सुरक्षा आधी क्यों?


क्लिक करें और जानें (सवाल–जवाब)

बांदा में किसानों की सबसे बड़ी समस्या क्या रही?

मौसम की अनिश्चितता, आवारा पशु, सिंचाई के टेल-एंड तक पानी न पहुंचना और बाज़ार में उचित दाम—ये प्रमुख समस्याएं रहीं।

प्रशासन के कौन से कदम प्रभावी रहे?

आंशिक राहत वितरण, कुछ नहर सेक्शनों की सफाई, गौशालाओं के अस्थायी विस्तार और गेहूं खरीद में डिजिटल भुगतान।

कौन-सी समस्या अब भी अनसुलझी है?

आवारा पशुओं का स्थायी समाधान, नहर टेल-एंड संकट और फसल बीमा की विश्वसनीयता।

आगे क्या सुधार जरूरी हैं?

स्थायी पशु नीति, रियल-टाइम जल प्रबंधन, पारदर्शी बीमा सर्वे, विविध फसलों की सरकारी खरीद और सरल ऋण पुनर्गठन।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Language »
Scroll to Top