
पुनीत नौटियाल की रिपोर्ट
जब दीपावली की रोशनी भी मातम में डूब गई
मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की एक तंग गली में जब रात ढलती है, तो घरों से दीपों की हल्की झिलमिलाहट दिखाई देती है। परंतु कुछ घरों में इस बार न दीये जले, न मिठाई बंटी, न हंसी की कोई गूंज सुनाई दी। वहाँ सन्नाटा है — ऐसा सन्नाटा जो किसी के चले जाने के बाद भी कई वर्षों तक पीछा नहीं छोड़ता।
दिवाली के इस मौसम में, जब पूरा देश रोशनी से जगमगा रहा था, छिंदवाड़ा और आसपास के 24 परिवारों के घरों में अंधकार उतर आया। वहाँ अब तस्वीरों के सामने टिमटिमाते दीये हैं, और आंखों में ठहरी हुईं बूंदें।
“मेरी ऋषिका को सिरफ दिया था ताकि उसे राहत मिले, पर वो राहत हमेशा की नींद बन गई।”
एक सिरप जिसने उम्मीद छीन ली
छिंदवाड़ा के जिस कफ सिरप ने बच्चों की जान ली, उसका नाम था कोल्ड्रिफ। यह वही दवा थी जो बच्चों को सामान्य जुकाम या बुखार में दी जाती थी। माता-पिता ने भरोसे से अपने बच्चों को इसे पिलाया, क्योंकि डॉक्टर ने सलाह दी थी। पर उन्हें क्या पता था कि यही सिरप बच्चों के शरीर में ज़हर बनकर उतर जाएगा।
तमिलनाडु के कांजीपुरम में बनी इस दवा में डाईएथिलीन ग्लाईकोल (DEG) नामक जहरीला रसायन 48.6% तक पाया गया, जो किडनी को नष्ट कर देता है। अब तक 24 मासूम बच्चों की मौत हो चुकी है।
दीपावली 2025 की उदासी : किसानों की बुझी मुस्कान, बरसात ने फसलें चौपट कीं“डॉक्टर साहब ने कहा था कि सर्दी-जुकाम के लिए 2 एमएल सिरप दिन में चार बार देना। हमने वही किया, लेकिन दो दिन में बच्चे की तबीयत और बिगड़ गई।”
लालच, लापरवाही और लचर सिस्टम की त्रासदी
यह त्रासदी इंसान की बनाई हुई थी — लालच, भ्रष्टाचार और लापरवाही का परिणाम।
- कंपनी का लालच — मुनाफे के लिए सस्ता केमिकल इस्तेमाल।
- डॉक्टरों की कमीशनखोरी — बिना जांच वही सिरप लिखना।
- सरकारी ढिलाई — समय पर सैंपल या क्वालिटी जांच न होना।
जब तक सरकार ने इसे बैन किया, तब तक 24 मासूम दम तोड़ चुके थे।
“हमने जेवर बेचे, पर बच्चा नहीं बचा”
“डायलिसिस के पैसे जुटाने के लिए हमने जेवर तक गिरवी रख दिए। लेकिन डॉक्टर ने कहा — अब कुछ नहीं हो सकता।”
अर्जुन यादव की आंखों में अब आँसू नहीं, केवल खालीपन है। वह कहते हैं — “अगर सरकार समय पर जांच करती, तो मेरा बेटा आज स्कूल जाता।”
जब दिवाली मातम बन गई
जहां पहले पटाखों की गूंज थी, वहां अब सन्नाटा है — “वो भी कोल्ड्रिफ से गया था…”
“हमारे मुहल्ले में सब दीये जला रहे हैं, पर हमारे घर में बस एक दीया है — हमारे बेटे की तस्वीर के सामने।”
सरकारी बयान बनाम सच्चाई
राज्य सरकार ने बयान दिया — “जांच जारी है, दोषियों पर कार्रवाई होगी।” लेकिन हर बीते दिन के साथ इन शब्दों की चमक फीकी पड़ती जा रही है।
ड्रग कंट्रोल सिस्टम पर बड़ा सवाल
भारत में दवा निरीक्षण व्यवस्था कमजोर है। WHO के अनुसार हर 25 फार्मेसी पर एक निरीक्षक चाहिए, लेकिन मध्यप्रदेश में एक निरीक्षक सैकड़ों दुकानों की देखरेख करता है। यही वजह है कि छिंदवाड़ा कांड जैसी घटनाएं होती हैं।
मीडिया की भूमिका : आवाज़ जो गूंज उठी
जब स्थानीय पत्रकारों ने इस खबर को उठाया, तब इसे “संयोग” कहा गया। पर जब 24 मौतों की पुष्टि हुई, तो यह एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया।
हर मां ने कहा — “इंसाफ चाहिए।”
कानूनी लड़ाई और उम्मीद
कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है और जांच जारी है। सवाल यह है — क्या यह सब बच्चों को लौटा सकता है? शायद नहीं। पर अगर इससे नीति बदले, तो यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
“मेरे बच्चे की मौत व्यर्थ न जाए”
“अगर मेरी बच्ची की मौत से सरकार जाग जाए और किसी और मां की गोद सूनी न हो, तो यही हमारे बच्चों की सच्ची दिवाली होगी।”
समाप्ति पर एक सवाल
क्या हमारी संवेदनाएं केवल सोशल मीडिया पोस्ट तक सीमित हैं? क्यों हम तब तक नहीं बोलते जब तक मौतें दर्जन पार न कर जाएं? जवाब हमें खुद से देना होगा।
श्रद्धांजलि
यह फीचर उन सभी 24 मासूम आत्माओं को समर्पित है जिन्होंने जहरीले सिरप से जान गंवाई। हर दीपक जो जलेगा, वह अब केवल अंधकार नहीं, बल्कि व्यवस्था के अंधेपन को रोशन करने के लिए जलेगा।
क्लिक कर जानें (FAQ)
क्या कोल्ड्रिफ सिरप अब भी बाजार में बिक रहा है?
क्या दोषियों पर कार्रवाई हुई?
भविष्य में ऐसी घटनाएं कैसे रोकी जा सकती हैं?