‘कुकुर तिहार’ में कुत्तों को मिलता है शाही सम्मान, प्रकृति और पशु-पक्षियों के प्रति आस्था का अनोखा उत्सव

नेपाल में तिहार पर्व के दौरान बहन भाई को टीका लगाती हुई, पृष्ठभूमि में कुत्ता, गाय और कौवा पूजा के दृश्य

मिश्रीलाल कोरी की रिपोर्ट

समाचार दर्पण 24.कॉम की टीम में जुड़ने का आमंत्रण पोस्टर, जिसमें हिमांशु मोदी का फोटो और संपर्क विवरण दिया गया है।
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Meta Description: नेपाल में दीपावली को ‘तिहार’ के रूप में मनाया जाता है। पांच दिवसीय यह पर्व पशु-पक्षियों, प्रकृति और परिवार के बीच प्रेम, आस्था और सामंजस्य का अद्भुत उदाहरण है। इसमें ‘कुकुर तिहार’ विशेष आकर्षण होता है।


कुकुर तिहार (Kukur Tihar Celebration 2025) नेपाल का वह अनोखा पर्व है जो पशु-पक्षियों, मनुष्य और प्रकृति के बीच प्रेम, आस्था और सहअस्तित्व का संदेश देता है। भारत में जहां दीपावली रोशनी, धन और लक्ष्मी पूजन का पर्व है, वहीं नेपाल में यही उत्सव ‘तिहार’ कहलाता है — एक पांच दिवसीय आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और मानवीय उत्सव जो जीव-जंतुओं को ईश्वर का रूप मानकर उनकी पूजा करता है।

तिहार पर्व: मानव और प्रकृति के बीच प्रेम का बंधन

नेपाल में तिहार पर्व केवल दीपों की सजावट का नाम नहीं, बल्कि यह मनुष्य और प्रकृति के सामंजस्य की जीवंत मिसाल है। यह पर्व धनतेरस से भाई टीका तक पांच दिनों तक चलता है और प्रत्येक दिन किसी जीव या देवता को समर्पित होता है। यह पर्व नेपाल के लोगों की आस्था, सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक बन चुका है।

नेपाल के नागरिक मानते हैं कि पशु-पक्षी केवल सहचर नहीं, बल्कि ईश्वरीय दूत हैं, जो जीवन में शुभ संकेत लेकर आते हैं। इसलिए तिहार 2025 के दौरान नेपाल में हर गली-मोहल्ला श्रद्धा, भक्ति और प्रेम के दीपों से जगमगाता है।

पहला दिन – ‘काग तिहार’: कौवों के प्रति कृतज्ञता

तिहार पर्व की शुरुआत ‘काग तिहार’ से होती है। इस दिन लोग कौवों को पकवान और मिठाइयाँ खिलाते हैं। कौवा शुभ समाचार और संदेश लाने वाला पक्षी माना जाता है। नेपाल के लोग मानते हैं कि कौवों का सम्मान कर वे आने वाले वर्ष के शुभ संकेतों का स्वागत करते हैं। यह परंपरा मानव और पक्षियों के बीच गहरे संबंध की अभिव्यक्ति है।

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कुकुर तिहार में कुत्ते को मालाएं पहनाकर पूजा करते हुए और काग तिहार में कौवों को भोजन अर्पित करते हुए व्यक्ति का दृश्य
नेपाल में तिहार पर्व के दौरान कुकुर तिहार और काग तिहार के विशेष दृश्य, जहाँ कुत्तों और कौवों की पूजा की जाती है।

दूसरा दिन – ‘कुकुर तिहार’: जब कुत्ते बनते हैं शाही मेहमान

कुकुर तिहार नेपाल का सबसे प्रसिद्ध और अनूठा पर्व है। इस दिन कुत्तों को शाही सम्मान दिया जाता है। उन्हें तिलक लगाकर, फूलों की मालाएं पहनाई जाती हैं और स्वादिष्ट भोजन खिलाया जाता है। नेपाल के लोग इस दिन ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि कुत्ते जैसे वफादार जीव मनुष्य के जीवन में सदैव प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक बने रहें।

महाभारत की कथा के अनुसार, जब युधिष्ठिर स्वर्ग की यात्रा पर निकले, तो एक कुत्ता अंत तक उनके साथ रहा। उसी श्रद्धा की भावना को ‘कुकुर तिहार’ जीवंत करता है। नेपाल की सड़कों पर इस दिन सजे-संवरे कुत्ते, उनके गलों में गेंदा फूलों की मालाएं और माथे पर लाल तिलक का दृश्य हृदय को स्पर्श करता है।

यह पर्व Kukur Tihar Celebration 2025 को वैश्विक पहचान देता है, और पशु अधिकारों के प्रति नेपाल की संवेदनशीलता को दर्शाता है।

तीसरा दिन – गाय पूजा और लक्ष्मी पूजन

तिहार का तीसरा दिन गाय पूजा और लक्ष्मी पूजन के लिए समर्पित होता है। गाय को समृद्धि, पवित्रता और मातृत्व का प्रतीक माना गया है। सुबह गाय की पूजा कर लोग उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। शाम को घरों में माता लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन किया जाता है। दीपों की रौशनी से पूरा नेपाल जगमगा उठता है।

युवक-युवतियाँ पारंपरिक परिधानों में भैलो गीत गाते हुए घर-घर जाते हैं और नृत्य करते हुए अन्न, मिठाइयाँ और धन एकत्र करते हैं। यह सामूहिक उल्लास नेपाल की लोक-संस्कृति की आत्मा है।

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चौथा दिन – गोवर्धन पूजा और बैल पूजा

तिहार पर्व के चौथे दिन किसान अपने परिश्रम के प्रतीक बैलों की पूजा करते हैं। बैलों को स्नान कराकर उन्हें रंग-बिरंगी मालाओं और कपड़ों से सजाया जाता है। यह दिन किसान समुदाय के प्रति सम्मान प्रकट करने का अवसर होता है। नेपाल के ग्रामीण क्षेत्रों में यह दिन गोवर्धन पूजा और बैल पूजा के रूप में अत्यंत हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

पांचवां दिन – भाई टीका: स्नेह और सुरक्षा का पर्व

तिहार का पांचवां और अंतिम दिन भाई टीका कहलाता है, जो भारत के भैया दूज जैसा ही है। इस दिन बहनें भाइयों के माथे पर सात रंगों का टीका लगाकर उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। भाई बहनों को उपहार देते हैं और यह दिन पारिवारिक स्नेह और एकता का प्रतीक बन जाता है।

नेपाल में तिहार और मिथिला परंपरा का संबंध

ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान राम वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे, तब दीपावली मनाई गई। उसी समय मिथिला नगरी (जो आज नेपाल के जनकपुर क्षेत्र में है) में पांच दिनों तक तिहार उत्सव आयोजित हुआ। यह परंपरा आज तक कायम है। सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे जनकपुर, कंचनपुर, कैलाली और झापा में दीपावली और तिहार एक समान उत्साह से मनाए जाते हैं।

महिलाओं की भूमिका और लोक गीतों की परंपरा

तिहार के दौरान महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वे पारंपरिक ‘गुंजा चोली’ पहनकर समूहों में भैलो गीत गाती हैं और वातावरण को संगीत से भर देती हैं। उनके गीतों में प्रेम, प्रकृति, कृतज्ञता और भक्ति का भाव झलकता है। महिलाएँ घरों को सजाने, पशु-पक्षियों की पूजा करने और समाज में सौहार्द बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभाती हैं।

क्यों की जाती है पशु-पक्षियों की पूजा?

नेपाल के लोगों का विश्वास है कि कौवा शुभ सूचना देता है, कुत्ता सच्चा साथी है, गाय माता समान है और बैल किसान का मित्र है। इसलिए इन सभी जीवों की पूजा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह पर्व सिखाता है कि ईश्वर केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि हर जीव में बसते हैं

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तिहार पर्व 2025 का संदेश

कुकुर तिहार 2025 हमें यह सिखाता है कि आस्था केवल इंसान तक सीमित नहीं, बल्कि उस समस्त सृष्टि में फैली है, जो हमारी जीवनरेखा है। यह पर्व भारत और नेपाल के सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत बनाता है, तथा प्रेम, सह-अस्तित्व और कृतज्ञता की भावना को पुष्ट करता है।


🪔 संबंधित सवाल-जवाब (FAQ)

1. नेपाल में तिहार पर्व कब मनाया जाता है?

तिहार पर्व धनतेरस से भाई टीका तक पांच दिनों तक मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर के बीच होता है।

2. ‘कुकुर तिहार’ किस दिन मनाया जाता है?

तिहार पर्व का दूसरा दिन ‘कुकुर तिहार’ कहलाता है, जब कुत्तों की पूजा की जाती है।

3. नेपाल में पशु-पक्षियों की पूजा क्यों की जाती है?

नेपाल में यह विश्वास है कि हर जीव ईश्वरीय शक्ति का रूप है। पशु-पक्षियों की पूजा कर लोग प्रकृति के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करते हैं।

4. नेपाल में तिहार और भारत की दीपावली में क्या अंतर है?

भारत में दीपावली मुख्यतः लक्ष्मी पूजन का पर्व है, जबकि नेपाल में तिहार में पशु-पक्षियों, गायों, बैलों और भाइयों की पूजा की जाती है।

5. कुकुर तिहार का धार्मिक महत्व क्या है?

कुकुर तिहार का संबंध महाभारत की उस कथा से है जब युधिष्ठिर स्वर्ग जाते समय एक कुत्ते के साथ थे, जो अंत तक उनके साथ रहा। इसलिए कुत्ते को वफादारी और आस्था का प्रतीक माना गया है।



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