चित्रकूट कोषागार घोटाला : मुख्य आरोपी संदीप श्रीवास्तव की संदिग्ध मौत ने मचाया हड़कंप, पुलिस और प्रशासन पर उठे गंभीर सवाल



संजय सिंह राणा की रिपोर्ट, चित्रकूट।

समाचार दर्पण 24.कॉम की टीम में जुड़ने का आमंत्रण पोस्टर, जिसमें हिमांशु मोदी का फोटो और संपर्क विवरण दिया गया है।
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उत्तर प्रदेश के चित्रकूट कोषागार घोटाला मामले में रविवार को एक बड़ा मोड़ आ गया। इस बहुचर्चित 43.13 करोड़ रुपये के घोटाले के मुख्य आरोपी संदीप श्रीवास्तव की इलाज के दौरान प्रयागराज मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई। अब इस मृत्यु को लेकर न केवल चित्रकूट पुलिस बल्कि पूरे जिला प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़े हो गए हैं। विपक्ष ने इसे “संदिग्ध हिरासत मौत” करार देते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की है।

मामला सिर्फ एक आर्थिक घोटाले का नहीं रह गया है, बल्कि अब यह प्रशासनिक जवाबदेही और पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर रहा है। क्योंकि जो घटनाक्रम सामने आए हैं, वे बताते हैं कि आरोपी की मौत एक सामान्य चिकित्सकीय घटना नहीं थी, बल्कि इसमें चित्रकूट कोषागार घोटाले से जुड़े कई छिपे पहलुओं की परतें खुलने की संभावना को भी दफन कर दिया गया।

पूरे घटनाक्रम की समयरेखा: कैसे बिगड़ी आरोपी की तबीयत?

जानकारी के अनुसार, चित्रकूट कोषागार घोटाला उजागर होने के बाद पुलिस ने मुख्य आरोपी संदीप श्रीवास्तव को दो दिन पहले पूछताछ के लिए बुलाया था। सदर कोतवाली कर्वी पुलिस उसे कथित तौर पर “पूछताछ के लिए” लेकर गई, लेकिन बाद में खबर आई कि वह लगातार 24 घंटे से अधिक समय तक वहीं मौजूद रहा।

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शनिवार शाम को अचानक संदीप श्रीवास्तव की तबीयत बिगड़ने लगी। आनन-फानन में पुलिस ने उसे चित्रकूट जिला चिकित्सालय पहुंचाया। वहां सीएमओ डॉ. भूपेश द्विवेदी, सीएमएस शैलेंद्र कुमार और अपर पुलिस अधीक्षक सत्यपाल सिंह की मौजूदगी में इलाज शुरू किया गया। हालत गंभीर होने पर उसे प्रयागराज मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर किया गया, जहां रविवार को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

बिना आदेश हिरासत में रखने का आरोप

अब सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या चित्रकूट कोषागार घोटाला के आरोपी संदीप श्रीवास्तव को पुलिस ने कानूनन अनुमति के बिना हिरासत में रखा था? सूत्रों के अनुसार, पुलिस के पास कोई मजिस्ट्रेटी आदेश या लिखित अनुमति नहीं थी। बावजूद इसके उसे लगातार कोतवाली में पूछताछ के नाम पर रोका गया।

इस दौरान आरोपी के परिवार को उसकी स्थिति की पूरी जानकारी नहीं दी गई। इतना ही नहीं, जिला चिकित्सालय में भर्ती की प्रक्रिया भी पुलिस द्वारा नहीं, बल्कि उसके भाई सचिन श्रीवास्तव के माध्यम से कराई गई। इससे यह शक और गहरा हो गया है कि कहीं पूरी प्रक्रिया को प्रशासनिक स्तर पर दबाने की कोशिश तो नहीं की गई?

एसपी का बयान और घटनाक्रम में विरोधाभास

इस मामले पर चित्रकूट के पुलिस अधीक्षक अरुण कुमार सिंह ने बयान जारी किया कि “संदीप श्रीवास्तव को केवल पूछताछ के लिए बुलाया गया था, उसे हिरासत में नहीं रखा गया।” लेकिन घटनाक्रम इस बयान से मेल नहीं खाता। सवाल यह उठता है कि यदि वह हिरासत में नहीं था तो उसकी तबीयत कोतवाली में ही क्यों बिगड़ी? और उसे अस्पताल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी पुलिस की क्यों रही?

मामले की गहराई से जांच की जाए तो यह स्पष्ट होता है कि चित्रकूट कोषागार घोटाला केवल आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि एक सिस्टम की विफलता और प्रशासनिक पारदर्शिता पर भी सवालिया निशान है।

परिजनों में कोहराम, न्याय की मांग तेज

मुख्य आरोपी संदीप श्रीवास्तव की मौत के बाद परिजनों में मातम छा गया। परिवार का आरोप है कि पुलिस की पूछताछ के दौरान संदीप पर दबाव बनाया गया और उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। अब परिजन न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं ताकि सच्चाई सामने आ सके।

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परिवार का कहना है कि अगर उसे सही समय पर और उचित चिकित्सकीय सुविधा मिलती, तो शायद उसकी जान बचाई जा सकती थी। लेकिन पुलिस की भूमिका शुरू से संदिग्ध रही। चित्रकूट कोषागार घोटाला का यह पहलू अब मानवाधिकार के प्रश्न से भी जुड़ गया है।

अखिलेश यादव ने उठाए सवाल, सरकार पर किया हमला

इस मामले में अब राजनीति भी गरमा गई है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक्स (ट्विटर) पर लिखा—

चित्रकूट ट्रेजरी में हुए करोड़ों के घोटाले के मामले में मुख्य आरोपी की हिरासत में मौत बेहद गंभीर है। इतना बड़ा घोटाला कोई अकेले नहीं कर सकता, इसमें कई लोगों की संलिप्तता रही होगी। इसलिए इसे सामान्य मौत मानना उचित नहीं है। इसकी निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को सख्त सजा दी जाए।

अखिलेश यादव के इस बयान के बाद चित्रकूट कोषागार घोटाला फिर से सुर्खियों में आ गया है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस घोटाले में शामिल बड़े अधिकारियों और नेताओं को बचाने की कोशिश कर रही है।

प्रशासनिक लीपापोती या सच्चाई की शुरुआत?

अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह मौत वास्तव में एक प्राकृतिक घटना थी या फिर एक “कवर-अप ऑपरेशन”? क्योंकि चित्रकूट कोषागार घोटाला का दायरा केवल चित्रकूट जिले तक सीमित नहीं रहा। इस घोटाले के जरिए सरकारी फंड को कैसे siphon किया गया, यह जांच का गंभीर विषय है।

यदि संदीप श्रीवास्तव वाकई मुख्य सूत्रधार था, तो उसके पास ऐसे कई राज हो सकते थे जो कई प्रभावशाली चेहरों को बेनकाब कर सकते थे। ऐसे में उसकी संदिग्ध मृत्यु पूरे तंत्र पर सवाल खड़े करती है।

इस बीच, शासन स्तर पर भी रिपोर्ट मांगी गई है। प्रयागराज मेडिकल कॉलेज से शव को पोस्टमॉर्टम के बाद चित्रकूट लाया गया, जहां कड़ी सुरक्षा में अंतिम संस्कार कराया गया। सूत्रों के अनुसार, चित्रकूट कोषागार घोटाला से जुड़ी फाइलों की जांच अब वित्त विभाग और विजिलेंस टीम के अधीन है।

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सवालों के घेरे में पुलिस और प्रशासन

  • क्या आरोपी को बिना आदेश हिरासत में रखना कानून का उल्लंघन नहीं?
  • यदि वह सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया गया था, तो रातभर कोतवाली में क्यों रहा?
  • भर्ती प्रक्रिया आरोपी के भाई से क्यों कराई गई, पुलिस ने स्वयं क्यों नहीं?
  • क्या यह मृत्यु घोटाले के बड़े चेहरों को बचाने की साजिश का हिस्सा थी?

इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में तय करेंगे कि चित्रकूट कोषागार घोटाला आखिर प्रशासनिक जवाबदेही की दिशा में जाता है या फिर यह भी किसी फाइल में दबा रह जाएगा।



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चित्रकूट कोषागार घोटाला क्या है?

यह उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले का 43.13 करोड़ रुपये का वित्तीय घोटाला है, जिसमें कोषागार से सरकारी राशि का दुरुपयोग किया गया।

संदीप श्रीवास्तव कौन थे?

संदीप श्रीवास्तव चित्रकूट कोषागार घोटाले के मुख्य आरोपी थे, जिनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हुई।

क्या आरोपी की मृत्यु हिरासत में हुई?

पुलिस का दावा है कि वह हिरासत में नहीं थे, लेकिन घटनाक्रम बताता है कि वह कोतवाली में लंबे समय तक मौजूद थे, जिससे संदेह गहराया है।

अखिलेश यादव का इस मामले पर क्या बयान है?

अखिलेश यादव ने कहा कि यह सामान्य मौत नहीं, बल्कि गंभीर मामला है। उन्होंने निष्पक्ष जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।

क्या जांच के आदेश दिए गए हैं?

हाँ, शासन ने प्रारंभिक जांच के निर्देश दिए हैं और विजिलेंस टीम को इस घोटाले के वित्तीय पहलुओं की समीक्षा के लिए लगाया गया है।

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