नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण लगातार गंभीर स्तर पर पहुंचता जा रहा है। इसके बावजूद स्कूलों में छात्रों और शिक्षकों की सुरक्षा को लेकर जारी किए गए सरकारी निर्देश ज़मीनी हकीकत में उतरते नहीं दिख रहे। हाइब्रिड मोड को लेकर जो दावे और आदेश सामने आए, वे कागज़ों तक सीमित रह गए हैं। छठी से लेकर ग्यारहवीं तक के छात्र आज भी रोज़ाना स्कूल आने को मजबूर हैं और पढ़ाई सामान्य दिनों की तरह पूरी तरह ऑफलाइन चल रही है।
प्रदूषण के बीच सामान्य दिनचर्या जैसा स्कूल संचालन
दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) लंबे समय से ‘गंभीर’ श्रेणी में बना हुआ है। ऐसे हालात में दिल्ली सरकार ने सरकारी और निजी कार्यालयों में 50 प्रतिशत कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम अनिवार्य किया। साथ ही शिक्षा निदेशालय ने भी छठी से नौवीं और ग्यारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए हाइब्रिड मोड में पढ़ाई कराने के निर्देश जारी किए।
हालांकि, स्कूलों में इन निर्देशों का कोई ठोस असर दिखाई नहीं देता। अधिकांश सरकारी स्कूलों में न तो विद्यार्थियों की संख्या सीमित की गई और न ही ऑनलाइन कक्षाओं को व्यवहारिक विकल्प के रूप में अपनाया गया। छात्रों को नियमित रूप से स्कूल बुलाया जा रहा है, मानो प्रदूषण कोई मुद्दा ही न हो।
छात्रों के लिए हाइब्रिड, शिक्षकों के लिए क्यों नहीं?
हाइब्रिड मोड का मूल उद्देश्य यही था कि बच्चों को प्रदूषण के दुष्प्रभाव से बचाया जा सके। लेकिन व्यवहार में देखा जाए तो स्कूलों ने इसे केवल एक औपचारिक आदेश मानकर छोड़ दिया। शिक्षक रोज़ाना स्कूल पहुंचने को बाध्य हैं, उनके लिए न तो वर्क फ्रॉम होम की व्यवस्था है और न ही 50 प्रतिशत उपस्थिति के आधार पर कोई रोस्टर।
इस स्थिति पर राजकीय विद्यालय शिक्षक संघ के महासचिव अजय वीर यादव ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब लगभग सभी छात्र ऑफलाइन बुलाए जा रहे हैं, तो हाइब्रिड मोड का औचित्य ही समाप्त हो जाता है। यदि छात्रों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर ऑनलाइन विकल्प दिया गया है, तो शिक्षकों को इससे बाहर क्यों रखा गया?
स्पष्ट दिशा-निर्देशों की कमी, स्कूल प्रबंधन भ्रमित
शिक्षक संगठनों का आरोप है कि सरकार की ओर से स्पष्ट और सख्त दिशा-निर्देश जारी नहीं किए गए। यही कारण है कि प्रधानाचार्य हाइब्रिड मोड को लेकर असमंजस में रहते हैं और सुरक्षित विकल्प के बजाय छात्रों को नियमित स्कूल बुलाना आसान समझते हैं।
स्थिति यह है कि प्रधानाचार्य, डिप्टी डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन (जोन और डिस्ट्रिक्ट) तथा यहां तक कि निदेशालय स्तर के अधिकारी भी इस सवाल पर स्पष्ट जवाब नहीं दे पा रहे कि हाइब्रिड मोड को किस तरह लागू किया जाए। जब प्रशासनिक अधिकारी स्वयं अनजान दिखते हैं, तो ज़मीनी स्तर पर आदेशों के पालन की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
अभिभावकों की चिंता: बच्चों की सुरक्षा या सिर्फ औपचारिकता?
अभिभावकों में भी इस स्थिति को लेकर गहरी नाराज़गी है। उनका कहना है कि जब प्रदूषण को लेकर अधिकारी ही स्पष्ट नहीं हैं, तो सरकार बच्चों की सुरक्षा का दावा कैसे कर सकती है। रोज़ाना स्कूल आने-जाने में बच्चों को जहरीली हवा में सांस लेनी पड़ रही है, जिसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय तक प्रदूषित वातावरण में रहने से बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां, आंखों में जलन और इम्यूनिटी कमजोर होने जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। ऐसे में हाइब्रिड मोड को सख्ती से लागू करना सिर्फ प्रशासनिक आदेश नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य का सवाल है।
हाइब्रिड मोड: समाधान या सिर्फ दिखावा?
हाइब्रिड मोड की अवधारणा तब तक प्रभावी नहीं हो सकती, जब तक उसके क्रियान्वयन के लिए ठोस योजना और निगरानी तंत्र न हो। केवल सर्कुलर जारी कर देना पर्याप्त नहीं है। ज़रूरत इस बात की है कि स्कूलों में ऑनलाइन और ऑफलाइन कक्षाओं का संतुलित रोस्टर तैयार किया जाए, शिक्षकों को भी समान सुरक्षा दी जाए और पालन न करने वाले स्कूलों पर जवाबदेही तय हो।
जब दिल्ली जैसे महानगर में, जहां संसाधनों की कोई कमी नहीं मानी जाती, वहां हाइब्रिड मोड कागज़ों से आगे नहीं बढ़ पा रहा, तो यह पूरे शिक्षा तंत्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
क्या दिल्ली के स्कूलों में हाइब्रिड मोड लागू है?
कागज़ों में हाइब्रिड मोड के निर्देश हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर अधिकांश स्कूलों में पढ़ाई पूरी तरह ऑफलाइन ही चल रही है।
शिक्षकों को वर्क फ्रॉम होम क्यों नहीं दिया जा रहा?
स्पष्ट सरकारी दिशा-निर्देशों के अभाव में स्कूल प्रबंधन शिक्षकों के लिए वर्क फ्रॉम होम लागू नहीं कर रहे हैं।
क्या प्रदूषण का बच्चों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है?
विशेषज्ञों के अनुसार लगातार प्रदूषित हवा में रहने से बच्चों में सांस और आंखों से जुड़ी समस्याएं बढ़ने का खतरा रहता है।
हाइब्रिड मोड को प्रभावी बनाने के लिए क्या ज़रूरी है?
सख्त निर्देश, स्पष्ट रोस्टर व्यवस्था, ऑनलाइन कक्षाओं की गुणवत्ता और पालन न करने वालों पर जवाबदेही तय करना आवश्यक है।






