यूपी चुनाव 2027: एनडीए की मजबूती, इंडिया गठबंधन में खींचतान और तीसरे मोर्चे के उभार से बदलते राजनीतिक समीकरण

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

Red and Blue Geometric Patterns Medical Facebook Post_20251110_094656_0000
previous arrow
next arrow

उत्तर प्रदेश में यूपी चुनाव 2027 का काउंटडाउन शुरू होते ही राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ गई है। हर दल अपनी चुनावी जमीन मजबूत करने में लगा है। बिहार विधानसभा चुनाव के ताज़ा नतीजों ने यूपी की राजनीति में नई बहस को जन्म दिया है। सत्तारूढ़ एनडीए के भीतर एकजुटता दिख रही है, जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन में खींचतान और अविश्वास की स्थिति और गहराती नज़र आ रही है। इसके साथ ही एआईएमआईएम–बसपा के संभावित गठबंधन से तीसरे मोर्चे की चर्चाएँ भी जोर पकड़ चुकी हैं।

एनडीए की रणनीति: यूपी में भी बिहार वाला फॉर्मूला लागू?

बिहार चुनाव में एनडीए ने जिस मजबूती के साथ प्रदर्शन किया है, उसने यूपी में भी भाजपा को ऊर्जा दी है। बिहार में भाजपा–जदयू–लोजपा रामविलास सहित सभी सहयोगी दलों ने लगभग 80–90% सीटों पर जीत दर्ज कर एकजुटता की मिसाल पेश की। सीट बंटवारे को लेकर कई बार असंतोष जरूर दिखा, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने सभी विवाद सुलझा लिए।

यूपी में भाजपा अपने पुराने साथियों अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ मिलकर ही यूपी चुनाव 2027 के मैदान में उतरने की तैयारी में है। बिहार के परिणाम देखकर यह भी साफ लगता है कि रालोद और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भाजपा-विरोध की राजनीति में अधिक आक्रामक कदम नहीं उठाएँगे।

इसे भी पढें  एंटी करप्शन टीम की बड़ी कार्रवाई : चौकी प्रभारी दरोगा 2 लाख की रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार

वीआईपी का सबक: गठबंधन छोड़ने वालों को हो सकता है नुकसान

बिहार की पार्टी वीआईपी ने 2020 में एनडीए का हिस्सा रहते हुए चार सीटें जीती थीं, लेकिन बाद में गठबंधन से अलग होकर नुकसान झेलना पड़ा। यूपी के संदर्भ में यह उदाहरण इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सुभासपा और कुछ अन्य दल समय-समय पर एनडीए से नाराजगी दिखाते रहे हैं।

लेकिन यूपी चुनाव 2027 के नजदीक आते ही ये सभी दल बिहार का उदाहरण देखते हुए फिर से एकजुट होने की कोशिश कर सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत यही है कि वह चुनाव आते ही अपने सहयोगियों को साधने में सफल रहती है।

इंडिया गठबंधन में खींचतान गहराई, कांग्रेस बढ़ा रही दावेदारी

विपक्षी इंडिया गठबंधन में सबसे ज्यादा खींचतान समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच दिख रही है। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद से ही कांग्रेस यूपी में जमीन तलाशने में जुटी है। उपचुनाव 2024 में दस में से पाँच सीटों पर कांग्रेस ने दावा ठोक दिया था, जिसने सपा–कांग्रेस के रिश्तों में तनाव पैदा किया।

बिहार चुनाव में कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन ने उसकी bargaining power को और कमजोर कर दिया है। वहीं, गठबंधन की कई पार्टियां चाहती हैं कि विपक्ष का चेहरा राहुल गांधी नहीं, बल्कि अखिलेश यादव हों। इससे राजनीतिक समीकरण और उलझते दिख रहे हैं।

इसे भी पढें  जिला युवा महोत्सव - 2025' : युवा प्रतिभा को मिला सशक्त मंच — 12 नवंबर को होगा भव्य आयोजन

फ्रेंडली फाइट से बिगड़े समीकरण, यूपी में सपा सावधान

बिहार चुनाव में कांग्रेस द्वारा आखिरी समय में सीटों पर दबाव बनाने से गठबंधन का स्वरूप देर से तय हुआ। लगभग 11 सीटों पर फ्रेंडली फाइट हुई, जिससे न सिर्फ राजद बल्कि वाम दल भी नाराज हुए। प्रियंका गांधी पहली सभा ऐसी ही सीट पर करने गईं जहां फ्रेंडली फाइट थी। इससे गठबंधन के भीतर कांग्रेस की छवि कमजोर हुई।

यही कारण है कि यूपी में अखिलेश यादव 2027 की रणनीति बेहद सावधानी से तैयार कर रहे हैं, ताकि गठबंधन के कारण नुकसान न उठाना पड़े।

यूपी में तीसरे मोर्चे का उभार: AIMIM + BSP का नया फार्मूला?

बिहार में शानदार प्रदर्शन के बाद एआईएमआईएम अब यूपी में अपनी राजनीतिक जमीन बनाने की कोशिश में जुट गई है। असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में राजद का एम–वाई (मुस्लिम–यादव) समीकरण चुनौती दी। अब चर्चा है कि यूपी में वे मायावती के साथ मिलकर नया गठबंधन बना सकते हैं।

अगर बसपा और एआईएमआईएम साथ आती हैं तो डीएम (दलित–मुस्लिम) समीकरण यूपी में बड़ा बदलाव ला सकता है। इससे सपा का PDA (पिछड़ा–दलित–अल्पसंख्यक) राजनीतिक ढांचा कमजोर हो सकता है।

बसपा की वापसी की संभावनाएँ—मुस्लिम चेहरा बनेगा गेमचेंजर?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती लंबे समय से यूपी में सक्रिय नहीं थीं, लेकिन अगर वे 2027 चुनाव में एक दमदार मुस्लिम चेहरे के साथ उतरती हैं, तो बसपा की स्थिति तेजी से मजबूत हो सकती है। दलित–मुस्लिम गठजोड़ राज्य की राजनीति में सबसे निर्णायक कारक बन सकता है।

इसे भी पढें  मायावती का बड़ा दांव : बसपा ने पिछड़ा वर्ग और मुस्लिमों पर साधी नजर, सपा के PDA को सीधी चुनौती

यह सपा के लिए बड़ा खतरा होगा, क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक के खिसकने से उसके पूरे पीडीए मॉडल को झटका लगेगा।

2027 में किसकी होगी बढ़त? बदलते राजनीति समीकरणों से बढ़ी हलचल

यूपी चुनाव 2027 अभी दूर है, लेकिन राजनीति की बिसात बिछ चुकी है।
तीन बड़े केंद्र उभरते दिख रहे हैं—

  • एनडीए अपनी मजबूती और संगठन क्षमता पर भरोसा कर रहा है।
  • इंडिया गठबंधन भीतरूनी टकराव में उलझा है।
  • तीसरा मोर्चा मुस्लिम–दलित समीकरण के दम पर नई चुनौती बन सकता है।

इन तीनों दिशाओं में चल रही हलचल ही आगामी महीनों में यूपी की राजनीति की दिशा तय करेगी।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

यूपी चुनाव 2027 में मुख्य मुकाबला किन दलों के बीच होगा?

मुख्य मुकाबला एनडीए, इंडिया गठबंधन और एक उभरते तीसरे मोर्चे—AIMIM–BSP गठबंधन—के बीच होने की संभावना है।

क्या सपा–कांग्रेस गठबंधन 2027 में कायम रहेगा?

वर्तमान परिस्थितियों में दोनों दलों के बीच तनाव बढ़ रहा है। सीट बंटवारे को लेकर मतभेद गठबंधन को कमजोर कर सकते हैं।

क्या बसपा और AIMIM का गठबंधन संभव है?

बिहार चुनाव के बाद दोनों दलों के बीच बढ़ती निकटता को देखते हुए ऐसा गठबंधन काफी संभावित माना जा रहा है।

2027 में किस समीकरण का सबसे अधिक असर होगा?

दलित–मुस्लिम और पिछड़ा–दलित–अल्पसंख्यक (PDA) समीकरण 2027 के चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Language »
Scroll to Top