अपने हुए बेगाने ;दर्द में डूबे बुजुर्गों की कहानी, बेटे ने माता-पिता को सड़क पर छोड़ा






अपने हुए बेगाने ;दर्द में डूबे बुजुर्गों की कहानी, बेटे ने माता-पिता को सड़क पर छोड़ा



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ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट

आगरा: बुजुर्ग माता-पिता जिनकी पूरी जिंदगी बच्चों की परवरिश और पालन-पोषण में बीती, उन्हें कभी-कभी उनके ही संतान द्वारा धोखा मिलता है। हाल ही में आगरा में सामने आया मामला इस दर्दनाक सच को उजागर करता है। बुजुर्ग दंपती, जिन्होंने एक बेटे को गोद लिया था, वह बेटा अब उनके लिए अपने हुए बेगाने जैसा बन गया और उन्हें सड़क पर छोड़ दिया। यह घटना बुजुर्ग परित्याग और वृद्धाश्रम आगरा जैसी कीवर्ड्स के लिए गूगल ट्रेंडिंग लायक है।

गोद लिया बेटा, अपने हुए बेगाने

सिकंदरा स्थित रामलाल वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों की आंखों में आज भी उस दर्द की झलक दिखाई देती है। यहां 350 से अधिक बुजुर्ग रहते हैं, जिनमें अधिकांश वे हैं जिन्हें उनके अपने हुए बेगाने बच्चों ने घर से निकाल दिया।

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70 वर्षीय राजेश अग्रवाल और उनकी पत्नी गीता रानी सिकंदरा के निवासी हैं। राजेश बताते हैं, “हमारे कोई संतान नहीं थी, इसलिए हमने एक बेटे को गोद लिया। उसे पढ़ाया-लिखाया और कारोबार में लगाया। लेकिन वही बेटा, जो कभी हमारा अपना था, अब हमारे लिए अपने हुए बेगाने जैसा बन गया। दो साल पहले बेटे ने हमें मकान बेचने के लिए राजी किया। 46 लाख रुपये की डील हुई, लेकिन बेटा पैसा लेकर ससुराल चला गया। अब हम पिछले पांच महीने से वृद्धाश्रम आगरा में रह रहे हैं।”

भूखा रखता था बेटा, बेटी आती थी सहारा

बेलनगंज के सीमेंट व्यापारी श्यामलाल खंडेलवाल और उनकी पत्नी शकुंतला देवी की कहानी भी बेहद भावुक कर देने वाली है। श्यामलाल कहते हैं, “बुढ़ापे में जब हमारा शरीर कमजोर हो गया, तो बेटा हमें दो-दो दिन भूखा रखता था। एक दिन धक्का देकर घर से निकाल दिया। अब हम पिछले नौ महीने से वृद्धाश्रम आगरा में रह रहे हैं। हमारी बेटी कभी-कभी हालचाल लेने आती है, मगर बेटे ने दोबारा कभी देखा नहीं। सच में, बेटा अपने हुए बेगाने जैसा हो गया।”

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दिवाली की यादें, अब सिर्फ आंखों में

रामलाल वृद्धाश्रम में रहने वाले छोटेलाल, रमेशचंद गर्ग, महेंद्र शर्मा और ओमकार जैसे बुजुर्ग अपने घर की याद करते ही भावुक हो जाते हैं। वे कहते हैं, “जब बच्चे छोटे थे, दिवाली पर पटाखे मांगते थे। जेब खाली होती थी, फिर भी उनकी खुशी के लिए सब करते थे। अब वही बच्चे हमें भूल गए। हम अब वृद्धाश्रम आगरा को अपना घर मानते हैं और दिवाली यहीं सबके साथ मनाएंगे। यही हमारा परिवार है।”

आगरा वृद्धाश्रम में बुजुर्ग

आगरा में बुजुर्ग परित्याग: सामाजिक चुनौती

यह आगरा का मामला केवल व्यक्तिगत धोखे का नहीं है। यह बुजुर्गों की दुर्दशा और परित्याग को उजागर करता है। बुजुर्ग माता-पिता जिन्होंने जीवन बच्चों के लिए समर्पित किया, अब अपने हुए बेगाने बच्चों के कारण अकेलापन महसूस कर रहे हैं। यह घटना समाज के लिए चेतावनी है कि बुजुर्गों का सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करना हम सभी की जिम्मेदारी है।

बुजुर्ग परित्याग से बचाव के उपाय

  • बुजुर्गों के लिए कानूनी सुरक्षा बढ़ाना।
  • वृद्धाश्रमों में सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना।
  • समाज में बुजुर्गों के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता बढ़ाना।
  • बच्चों को बुजुर्ग माता-पिता के अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना।
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FAQ: अपने हुए बेगाने बच्चों और वृद्धाश्रम आगरा

अपने हुए बेगाने बच्चों का मतलब क्या है?
अपने हुए बेगाने बच्चे वे हैं जो कभी माता-पिता के अपने थे, लेकिन बुढ़ापे में उनका ध्यान नहीं रखते या धोखा देते हैं।
आगरा में वृद्धाश्रम बुजुर्गों के लिए कैसे मददगार है?
वृद्धाश्रम आगरा बुजुर्गों को सुरक्षित आवास, खाना और सामाजिक सहयोग प्रदान करता है। यहां बुजुर्ग अपने बुढ़ापे के दिन सम्मान और सुरक्षा के साथ बिता सकते हैं।
बुजुर्ग परित्याग से कैसे बचा जा सकता है?
बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा, कानूनी संरक्षण, समाजिक जागरूकता और बच्चों को संवेदनशील बनाने से बुजुर्ग परित्याग को रोका जा सकता है।

आगरा में अपने हुए बेगाने बच्चों के कारण बुजुर्गों की यह कहानी समाज के लिए चेतावनी है। बुजुर्ग माता-पिता का सम्मान करना हम सभी की जिम्मेदारी है।



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