गाजा से वायरल वीडियो में एक दो साल की बच्ची भारी जेरिकेन उठाकर पानी लाती दिखती है। यह दृश्य युद्ध, भुखमरी और प्यास से तड़पते बच्चों की हृदयविदारक कहानी बयान करता है।
मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
गाजा से आई एक तस्वीर ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। एक दो साल की नन्हीं बच्ची, दोनों हाथों में भारी-भरकम जेरिकेन उठाए, डगमगाते कदमों से अपनी झोपड़ी की ओर बढ़ रही है—ताकि अपने परिवार के लिए पीने का पानी ला सके। यह दृश्य महज़ एक वीडियो नहीं, बल्कि उस त्रासदी की जीवंत झलक है जिसे गाजा के बच्चे हर दिन जी रहे हैं।
आज का गाजा सिर्फ़ एक युद्ध क्षेत्र नहीं, बल्कि मानवता की सबसे बड़ी परीक्षा बन चुका है।
युद्ध की मार, बच्चों पर सबसे भारी
गाजा में हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि सामान्य जीवन की कल्पना भी असंभव हो गई है। इज़रायल की ओर से जारी नाकेबंदी (ब्लॉकेड) ने पूरे क्षेत्र को भोजन, पानी और दवाओं से लगभग वंचित कर दिया है। हालांकि इसे सैन्य रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन इस रणनीति का सबसे क्रूर असर उन मासूमों पर हो रहा है जो न तो इस संघर्ष का कारण हैं और न ही उसका समाधान।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, गाजा में लाखों बच्चे ऐसे हैं जिन्हें रोजाना सिर्फ़ 1.5 से 2 लीटर पानी ही मिल पा रहा है। जबकि इंसान की बुनियादी ज़रूरतों के लिए कम से कम 15 लीटर पानी रोजाना आवश्यक होता है। इससे भी खतरनाक बात यह है कि बहुत से बच्चे ‘सर्वाइवल थ्रेशोल्ड’ के 3 लीटर तक भी नहीं पहुंच पा रहे।
बाढ़, बीमारियां और बेघर लोग
इसके साथ ही दिसंबर से लेकर अब तक लाखों लोग—जिनमें से आधे बच्चे हैं—गाजा छोड़ने पर मजबूर हो चुके हैं। वे राफा की ओर पलायन कर रहे हैं, लेकिन वहां भी हालात किसी राहत से कम नहीं। भारी बारिश और बाढ़ ने तंबुओं में रह रहे परिवारों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। नतीजतन, हैजा, दस्त, डिहाइड्रेशन और कुपोषण जैसी गंभीर समस्याएं बच्चों को अपनी चपेट में ले रही हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि गाजा के बच्चे न केवल शारीरिक रूप से कमजोर हो रहे हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी गहरे आघात में हैं। उनका बचपन युद्ध, डर और भूख के साए में दम तोड़ रहा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठी आवाज़
इस हृदयविदारक वीडियो के वायरल होते ही दुनिया भर में आक्रोश फैल गया है। राहत एजेंसियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने गाजा की भयावह स्थिति पर तत्काल अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग की है।
अब सवाल यह नहीं है कि कौन सही है और कौन गलत, बल्कि यह है कि क्या हम बच्चों की पुकार को सुन पा रहे हैं?
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गाजा में आज एक-एक बूंद पानी के लिए संघर्ष हो रहा है और इसकी सबसे भीषण कीमत मासूम बच्चे चुका रहे हैं। दो साल की वह बच्ची, जो जेरिकेन उठाए अपने घर की ओर लौट रही है, आज पूरे विश्व से एक ही सवाल पूछ रही है — “क्या मेरी प्यास की कोई कीमत नहीं?”