काग़ज़ों में मुस्कान, ज़मीन पर मायूसी ; गांव ने भरोसा किया, योजनाएँ आईं लेकिन विकास रास्ते में ही क्यों दम तोड़ गया?

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के ग्रामीण क्षेत्र में अधूरी सड़क, टूटी नाली और विकास कार्यों के बीच मायूस ग्रामीण – पंचायत विकास 2025 की जमीनी हकीकत।



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रितेश गुप्ता की रिपोर्ट

वर्ष 2025 उत्तर प्रदेश में पंचायत-स्तरीय विकास के लिए निर्णायक माना गया। केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं—जैसे 15वां वित्त आयोग, मनरेगा, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), जल जीवन मिशन और राज्य वित्त आयोग—के तहत ग्राम पंचायतों को अपेक्षाकृत अधिक संसाधन मिले। जिले में भी यही स्थिति रही। परंतु सवाल यह नहीं कि पैसा कितना आया, बल्कि यह है कि कितना काम हुआ, कितना अधूरा रहा, कहां शिकायतें आईं और उन पर कार्रवाई कितनी हुई।

यह समीक्षा 2025 में जिले की ग्राम पंचायतों में हुए विकास कार्यों, दर्ज शिकायतों और प्रशासनिक प्रतिक्रिया का तथ्यात्मक, व्याख्यात्मक और संतुलित विश्लेषण प्रस्तुत करती है।

प्रशासनिक ढांचा और संसाधन : आधारभूमि

जिला 19 विकासखंडों में विभाजित है और यहां कुल 847 ग्राम पंचायतें कार्यरत रहीं। 2025 में पंचायतों को मुख्यतः चार स्रोतों से धन मिला—15वां वित्त आयोग से ₹210–220 करोड़ (अनुमानित), राज्य वित्त आयोग से ₹95–105 करोड़, मनरेगा से ₹380–400 करोड़ तथा स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), जल जीवन मिशन और पीएम आवास योजना (ग्रामीण) जैसी अन्य योजनाओं से ₹250–270 करोड़।

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कुल मिलाकर लगभग ₹935–995 करोड़ के आसपास पंचायत-स्तरीय व्यय का लक्ष्य/आवंटन रहा। यह आंकड़े जिला पंचायत, डीपीआर और ब्लॉक-स्तरीय प्रगति रिपोर्टों के समेकन पर आधारित हैं।

किस प्रकार के विकास कार्य हुए?

(क) आधारभूत संरचना

सीसी और इंटरलॉकिंग सड़कों के लिए लगभग 1,900 किलोमीटर का लक्ष्य तय किया गया था, जिनमें से वर्ष के अंत तक करीब 1,520 किलोमीटर सड़कें पूरी हो सकीं, यानी लगभग 80 प्रतिशत। नालियों और जल निकासी से जुड़े 3,400 से अधिक कार्य स्वीकृत हुए, जिनमें से लगभग 2,650 पूरे किए गए। सामुदायिक और पंचायत भवनों के 312 कार्य स्वीकृत थे, लेकिन 221 ही पूर्ण हो सके।

(ख) जल और स्वच्छता

हर घर नल जल योजना के अंतर्गत 2025 में 287 पंचायतों में नेटवर्क विस्तार हुआ, जिनमें से 214 पंचायतें लगभग पूर्ण कवरेज के करीब पहुंचीं। सार्वजनिक शौचालय और ठोस-तरल अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी 1,100 से अधिक इकाइयों में से करीब 72 प्रतिशत कार्य ही पूरे हो पाए।

(ग) रोजगार और आजीविका

मनरेगा के तहत वर्ष 2025 में 1.18 करोड़ मानव-दिवस सृजित हुए, जो निर्धारित लक्ष्य का लगभग 92 प्रतिशत रहा। तालाबों और जल संरक्षण से जुड़े 1,040 कार्य स्वीकृत किए गए, जिनमें से 760 कार्य पूरे हो सके।

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ये आंकड़े बताते हैं कि काग़ज़ों पर प्रगति संतोषजनक दिखती है, लेकिन जमीनी हकीकत शिकायतों के आंकड़ों से झलकती है।

शिकायतों का परिदृश्य: कितनी, कैसी और कहां?

2025 में जनसुनवाई पोर्टल, ब्लॉक कार्यालयों और जिला पंचायत स्तर पर कुल 3,780 शिकायतें दर्ज हुईं। इनमें से लगभग 41 प्रतिशत शिकायतें कार्यों की गुणवत्ता से जुड़ी थीं, 34 प्रतिशत अधूरे या लटके हुए कार्यों से संबंधित रहीं, 17 प्रतिशत मनरेगा भुगतान और मजदूरी में देरी से जुड़ी थीं, जबकि करीब 8 प्रतिशत मामलों में अनियमितता या भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए।

कुछ ब्लॉकों में 20 से 25 पंचायतों से बार-बार शिकायतें दर्ज हुईं, जो यह संकेत देती हैं कि समस्या किसी एक परियोजना या व्यक्ति तक सीमित नहीं थी, बल्कि प्रणालीगत कमजोरियों का परिणाम थी।

कार्रवाई कहां हुई और कैसे?

कुल 3,780 शिकायतों में से लगभग 2,540 मामलों का निस्तारण किया गया, यानी करीब 67 प्रतिशत। वहीं लगभग 1,240 शिकायतें वर्ष के अंत तक लंबित रहीं।

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प्रशासनिक कार्रवाई के तहत 41 मामलों में कुल ₹2.85 करोड़ की रिकवरी की गई। 9 ग्राम सचिवों को निलंबित किया गया, 6 तकनीकी सहायकों पर चार्जशीट दाखिल हुई और 118 प्रधानों व सचिवों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए।

इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि कार्रवाई हुई, लेकिन उसका स्वरूप कई मामलों में चयनात्मक और असमान रहा।

निष्कर्ष: 2025 से क्या सीख?

सीतापुर जिले में पंचायत-स्तरीय विकास की तस्वीर मिश्रित रही। पैसा आया और काम भी हुआ—यह सच है। लेकिन साथ ही अधूरे कार्य, गुणवत्ता की शिकायतें और कार्रवाई में असमानता भी उतनी ही बड़ी सच्चाई हैं।

आगे की राह स्पष्ट है—शिकायतों की समयबद्ध जांच, स्वतंत्र थर्ड-पार्टी ऑडिट, सोशल ऑडिट को वास्तविक अधिकार और बार-बार शिकायत वाली पंचायतों की विशेष निगरानी। यदि ये कदम उठाए जाते हैं, तो पंचायतें केवल फंड खर्च करने की इकाई नहीं, बल्कि स्थायी और जवाबदेह विकास की प्रयोगशाला बन सकती हैं।

यह समीक्षा 2025 के दौरान उपलब्ध जिला और ब्लॉक-स्तरीय संकलनों, शिकायत रजिस्टरों और योजना प्रगति रिपोर्टों के समेकित अध्ययन पर आधारित है। इसका उद्देश्य आरोप लगाना नहीं, बल्कि सुधारोन्मुख और तथ्यपरक सार्वजनिक विमर्श को आगे बढ़ाना है।

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