2025 के दौरान पंचायत-स्तरीय विकास: “पैसा आया—काम कहाँ, कैसे और कितना टिकाऊ हुआ?”

बलरामपुर में 2025 के दौरान पंचायत-स्तरीय विकास कार्य, ग्रामीण सड़क, नाली, पेयजल और पंचायत भ्रष्टाचार की प्रतीकात्मक तस्वीर



अब्दुल मोबीन सिद्दीकी की रिपोर्ट
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वर्ष 2025 उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले की पंचायतों के लिए किसी बड़े विकासात्मक छलांग का नहीं, बल्कि सीमित संसाधनों में व्यवस्था को संभालने का वर्ष रहा।
इस साल पंचायत-स्तरीय विकास का सबसे बड़ा सवाल यही रहा कि
जो पैसा आया, वह जमीन पर कहाँ खर्च हुआ, किस तरह हुआ और क्या वह टिकाऊ साबित हुआ?

जिले की 801 ग्राम पंचायतों, 1015 गांवों और 9 विकासखंडों में फैला यह विकास तंत्र 2025 में
15वें वित्त आयोग के टाइड ग्रांट पर निर्भर रहा।
कुल ₹30.59 करोड़ की राशि जिला, क्षेत्र और ग्राम पंचायतों को मिली,
जिसमें से ₹21.43 करोड़ सीधे ग्राम पंचायतों के खाते में पहुंचे।
औसतन देखें तो प्रति पंचायत यह राशि ढाई से तीन लाख रुपये के बीच रही।

■ 2025 का पंचायत विकास: क्यों बना “प्रबंधन का वर्ष”, परिवर्तन का नहीं?

इतनी सीमित राशि में पंचायतों से बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की अपेक्षा करना अव्यावहारिक था।
इसी कारण 2025 में विकास का स्वरूप नाली, जलनिकासी, पेयजल-स्रोत सुधार, स्वच्छता ढांचे और सार्वजनिक परिसंपत्तियों की मरम्मत तक सीमित रहा।

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टाइड ग्रांट की शर्तों ने पंचायतों को पानी और स्वच्छता तक सीमित कर दिया।
कई जगह स्थानीय प्राथमिकताएं—जैसे संपर्क मार्ग या बाढ़ नियंत्रण—सीधे नहीं उठाई जा सकीं।
परिणामस्वरूप पंचायतों ने “घुमाकर समाधान” खोजे—नाली बनाकर सड़क बचाना, तालाब सफाई के नाम पर जलनिकासी सुधारना।

■ विकासखंडों की अलग ज़रूरतें, लेकिन एक-सा नतीजा

हर्रैया सतघरवा जैसे सीमा क्षेत्रीय ब्लॉकों में बाढ़ और जलभराव प्राथमिक समस्या रही।
यहाँ पंचायतों ने छोटी-छोटी नालियों और आउटलेट पर खर्च किया, लेकिन सीमा-पार जलप्रवाह के कारण स्थायी समाधान नहीं बन सका।

बलरामपुर सदर में जनसंख्या दबाव के चलते विकास अधिक “दिखने वाला” रहा—पैचवर्क, प्रकाश व्यवस्था और सार्वजनिक स्थलों का सौंदर्यीकरण।
तुलसीपुर में अर्ध-शहरी दबाव के कारण स्वच्छता पर जोर रहा, लेकिन मेंटेनेंस कमजोर कड़ी साबित हुई।

गैंसड़ी, पचपेड़वा और गैंडास बुजुर्ग जैसे ब्लॉकों में विकास अधिक जरूरत-आधारित रहा,
जबकि श्रीदत्तगंज में प्रक्रिया और दस्तावेजी अनुशासन अपेक्षाकृत बेहतर दिखा।

■ 2025 की दूसरी तस्वीर: अनियमितता, गबन और टूटता भरोसा

जहाँ एक ओर पंचायतें सीमित संसाधनों में जूझती दिखीं,
वहीं दूसरी ओर कुछ ग्राम पंचायतों में अनियमितता और गबन के आरोप भी सामने आए।
इन मामलों में फर्जी माप, अधूरा कार्य दिखाकर भुगतान और मदों की दोहरी एंट्री जैसे आरोप उभरे।

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विशेष रूप से उन पंचायतों में गड़बड़ी की शिकायतें सामने आईं,
जहाँ ग्राम सभा और सामाजिक निगरानी कमजोर रही।

■ कार्रवाई का स्पष्ट उदाहरण: रेहरा बाजार ब्लॉक

2025 में रेहरा बाजार विकासखंड की बत्तखपुरवा सोमरहा ग्राम पंचायत एक अहम उदाहरण बनी।
यहाँ के ग्राम प्रधान राज किशोर यादव के विरुद्ध गंभीर आरोपों के बाद
जिलाधिकारी द्वारा पद से बर्खास्तगी की कार्रवाई की गई।

यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इसने यह साबित किया कि
यदि प्रशासनिक इच्छाशक्ति हो, तो पंचायत-स्तर पर भी जवाबदेही तय की जा सकती है।

■ जहाँ आरोप लगे, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई

इसके उलट पचपेड़वा, गैंसड़ी और तुलसीपुर जैसे ब्लॉकों की कुछ पंचायतों में
मनरेगा, स्वच्छता और निर्माण कार्यों को लेकर शिकायतें तो सामने आईं,
लेकिन 2025 के अंत तक कोई ठोस दंडात्मक कार्रवाई सार्वजनिक नहीं हो सकी।

इन मामलों ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या पंचायतों में
जवाबदेही की प्रक्रिया सभी के लिए समान है?

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■ जिला स्तर पर प्रशासनिक संकेत

वर्ष के अंत में प्रशासन ने 33 पंचायत सचिवों को नोटिस जारी किए
और 80 ग्राम पंचायतों के भुगतान सत्यापन के आदेश दिए।
यह संकेत था कि निगरानी का दायरा बढ़ रहा है,
लेकिन अंतिम निष्कर्ष और दंडात्मक कार्रवाई अभी भी समय ले रही है।

■ निष्कर्ष: 2025 से 2026 के लिए सबसे बड़ा सबक

2025 का पंचायत-स्तरीय विकास यह सिखाता है कि
सिर्फ पैसा आना ही पर्याप्त नहीं है।
जरूरी है योजना की गुणवत्ता, मेंटेनेंस की व्यवस्था और जवाबदेही

यदि 2026 में पंचायतें केवल काम दिखाने से आगे बढ़कर
भरोसा बनाने में सफल होती हैं,
तो ही ग्राम स्तर पर वास्तविक विकास संभव हो पाएगा।

■ सवाल–जवाब

2025 में पंचायतों को मुख्य फंड कहाँ से मिला?

15वें वित्त आयोग के टाइड ग्रांट के तहत जिला, क्षेत्र और ग्राम पंचायतों को फंड मिला।

क्या सभी पंचायतों में विकास समान रहा?

नहीं, विकासखंडों की सामाजिक और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार विकास का स्वरूप अलग रहा।

क्या 2025 में पंचायतों पर कार्रवाई भी हुई?

हाँ, रेहरा बाजार ब्लॉक की एक पंचायत में प्रधान को पद से बर्खास्त किया गया।

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