
मृदुल वारसी की रिपोर्ट
यह दर्द सिर्फ एक मां-बाप का नहीं, बल्कि उन हजारों बूढ़ी आंखों की कहानी है, जिनके बेटे विदेश में बस गए और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आज देश में हर राज्य से ऐसे किस्से सामने आते हैं, जहां बेटा विदेश में बस गया और मां-बाप जिंदगी के अंतिम पड़ाव में अकेले रह गए।
पैसा, नौकरी, पैकेज, विदेशी जीवन—सबके पीछे छूटती है सिर्फ एक चीज, और वह है रिश्तों की गरमाहट। शिमला के संजौली से सामने आया यह मामला भी उसी पीड़ा की कड़ी है।
शिमला में बुजुर्ग दंपति की पीड़ा—बेटा विदेश में बस गया, अब घर नहीं आता
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के संजौली में रहने वाला एक बुजुर्ग दंपति पिछले तीन साल से अपने बेटे का इंतजार कर रहा है।
कभी जिस बेटे के लिए उन्होंने दिन-रात मेहनत की, उसी बेटा विदेश में बस गया और धीरे-धीरे रिश्तों की दूरियां बढ़ती चली गईं।
पहले वह फोन करता था, हालचाल लेता था, मां की दवा और पिता की कमजोरी के बारे में पूछता था।
लेकिन अब फोन भी बंद है।
मां की आंखों में हर शाम वही सवाल उभर आता है—
“बेटा विदेश में बस गया… पर क्या तुझे अपना घर याद नहीं आता?”
पिता के होंठ भीग जाते हैं यह कहते हुए—
“हमारे पास पैसों की नहीं, अपने बच्चे की जरूरत है।”
दिल को चीर देने वाली यह कहानी उन हजारों भारतीय परिवारों की सच्चाई है, जहां बेटा विदेश में बस गया और बुजुर्ग मां-बाप अकेलेपन की तपती धूप में झुलसते रह गए।
उम्र के इस पड़ाव पर अकेलापन असहनीय—बुजुर्गों की व्यथा
दंपति जब पूर्ण निराशा में घिर गया, तो वह उपायुक्त कार्यालय पहुंचा। वहां परामर्श केंद्र में डॉक्टरों और अधिकारियों को उन्होंने अपना दर्द सुनाया।
उन्होंने कहा—
“हमें पैसों की जरूरत नहीं… हमें हमारा बेटा चाहिए। हम बस उसके एक बार घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन बेटा विदेश में बस गया और हमसे दूर हो गया।”
उन्होंने यह भी बताया कि बेटा अमेरिका में शादी कर चुका है और वहीं सेटल है। वहां की चकाचौंध, नई जिंदगी और काम के बीच शायद उसे अपने घर, अपने कमरे और अपने बूढ़े मां-बाप की याद भी नहीं आती।
एडीएम ज्योति राणा ने सोशल मीडिया पर दंपति का वीडियो शेयर करते हुए लिखा—
“आपके बच्चे हमेशा आपके करीब होते हैं, वे लौटें या न लौटें।”
लेकिन क्या यह बात उन माता-पिता के खाली आंगन का सन्नाटा भर सकती है? नहीं।
हिमाचल में बढ़ रही ऐसी घटनाएं—जब बेटा विदेश में बस गया और माता-पिता अकेले रह गए
यह पहला मामला नहीं है। हिमाचल में ऐसे कई परिवार हैं जहां बेटा विदेश में बस गया—
कहीं अमेरिका,
कहीं कनाडा,
कहीं न्यूजीलैंड,
कहीं इंग्लैंड,
तो कहीं जर्मनी।
विदेश में पढ़ाई और नौकरी की शुरुआत तो एक सपने की तरह होती है, लेकिन धीरे-धीरे यह सपना रिश्तों की डोर को कमजोर कर देता है।
जब बेटा विदेश जाता है, तो मां-बाप के लिए वह पल सबसे भारी होता है। आंसुओं में डूबा हुआ एयरपोर्ट का वह दृश्य, बेटे की आखिरी झप्पी और खाली होते कमरे की खामोशी—सब कुछ उम्रभर याद रहता है।
लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है, बेटा विदेश में बस गया और फोन कॉल भी कम होते जाते हैं।
फिर किसी दिन वह फोन घंटों इंतजार के बाद भी नहीं बजता।
उसके बाद धीरे-धीरे संपर्क टूटने लगता है—
और इंतजार स्थायी हो जाता है।
माता-पिता की भावनात्मक टूटन—विदेश में बसे बच्चों का बदलता व्यवहार
बुजुर्गों का कहना है कि जब बेटा छोटा था, तभी से उन्होंने उसके लिए सपने बुने।
बेहतर पढ़ाई, अच्छी परवरिश, खिलौने, तमाम सुविधाएं—सब कुछ दिया ताकि बेटा जीवन में आगे बढ़ सके।
लेकिन आज बेटा विदेश में बस गया और उन्हीं सपनों को पीछे छोड़ गया।
मां अपने बेटे को याद करते हुए उसकी बचपन की तस्वीरें सीने से लगाती है।
पिता अपने बेटे के बचपन के खिलौने आज भी संभालकर रखते हैं।
लेकिन वे जानते हैं—
“बेटा विदेश में बस गया और अब शायद लौटकर न आए।”
विदेश में बसना गलत नहीं—पर अपने ही रिश्तों को भूल जाना क्या सही है?
भारत से लाखों युवा विदेश में पढ़ाई और नौकरी के लिए जाते हैं।
यह अच्छी बात है।
देश की प्रगति के लिए भी जरूरी है।
लेकिन जब बेटा विदेश में बस गया और मां-बाप को पूरी तरह भूल गया—
यह बात समाज को सोचने पर मजबूर करती है।
क्या पैसा रिश्तों से बड़ा हो सकता है?
क्या आधुनिकता मां-बाप को भुला देने का नाम है?
क्या चमकते शहरों में बसने का मतलब है कि गांव-घर याद न किया जाए?
हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड—लगभग हर राज्य में यह दर्द तेजी से बढ़ रहा है।
हर गांव में ऐसे बूढ़े माता-पिता मिल जाते हैं, जिनका बेटा विदेश में बस गया और वे केवल तस्वीरों के सहारे जी रहे हैं।
समाज के लिए चेतावनी—बुजुर्गों की देखभाल सिर्फ कानून का नहीं, संस्कार का विषय
भारत में बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए कई कानून हैं।
लेकिन सबसे बड़ा कानून दिल का होता है—
और जब बेटा विदेश में बस गया और दिल की आवाज तक न सुने, तो कानून भी बेबस हो जाता है।
हिमाचल में बढ़ते ऐसे मामलों ने प्रशासन और समाज दोनों को चिंतित किया है।
समाजशास्त्री कहते हैं कि यह सिर्फ पारिवारिक नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक समस्या बनती जा रही है।
बच्चों का विदेश जाना समस्या नहीं है—
समस्या है मां-बाप से दूरी बढ़ाना, बात न करना, घर न लौटना और माता-पिता को अकेलेपन की दहशत में छोड़ देना।
अंत में—जो बेटा विदेश में बस गया, अगर एक कॉल भी कर दे, तो माता-पिता की जिंदगी खिल उठती है
आज यह बुजुर्ग दंपति सिर्फ एक ही बात कहता है—
“हमें हमारा बेटा चाहिए… उसकी आवाज चाहिए… उसका साथ चाहिए।”
लेकिन उनका बेटा विदेश में बस गया और उन्होंने रिश्तों के दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए लगते हैं।
यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि उन सभी माता-पिता की है जिनके बेटे विदेश में सेटल हो गए और भारतीय भावनाओं से दूर चले गए।
दुनिया की सबसे बड़ी कमाई वही है—
जहां मां-बाप खुश हों,
उनकी आंखों में इंतजार न हो,
और उनका बेटा लौटकर आए…
भले दो दिन के लिए ही सही।
❓ क्लिक करें और जवाब पढ़ें — सवाल-जवाब (FAQ)
1. बेटा विदेश में बस गया तो माता-पिता क्या कर सकते हैं?
सबसे पहले परामर्श केंद्र, सामाजिक संगठन और प्रशासनिक सहायता ली जा सकती है। कई बार काउंसलिंग से रिश्तों में सुधार आता है।
2. क्या बुजुर्गों के लिए कोई सरकारी सहायता उपलब्ध है?
हाँ, मानसिक परामर्श, वरिष्ठ नागरिक कॉल सेंटर, और इमरजेंसी हेल्पलाइन उपलब्ध हैं, जहाँ बुजुर्गों को त्वरित मदद मिलती है।
3. विदेश में बस चुके बच्चों के बदलते व्यवहार के प्रमुख कारण क्या हैं?
अधिक काम का बोझ, नई संस्कृति में ढलना, रिश्तों से दूरी और आधुनिक जीवनशैली कुछ प्रमुख कारण हैं।






