Sunday, July 20, 2025
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ग्राम प्रधान की मौन सहमति में दरिंदगी, रैपुरा पुलिस की लापरवाही ने किया न्याय को शर्मसार

चित्रकूट के रैपुरा क्षेत्र में एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म की घटना सामने आई है। ग्राम प्रधान की सहमति, आरोपी के परिजनों की मिलीभगत और पुलिस की लापरवाही ने पीड़िता को न्याय से वंचित कर दिया। दुष्कर्म की जगह सिर्फ अपहरण का केस दर्ज हुआ।

संजय सिंह राणा की रिपोर्ट

चित्रकूट जनपद के रैपुरा कोतवाली क्षेत्र के गांव भखरवार में एक नाबालिग लड़की के साथ दिल दहला देने वाली वारदात हुई है, जिसने समाज की सुरक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक जिम्मेदारी पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। इस पूरे घटनाक्रम में ग्राम प्रधान की कथित सहमति और पुलिस की निष्क्रियता ने अपराधियों को खुली छूट दे दी है।

घटना का क्रम

मामला 12 जून 2025 की रात का है। लगभग 12 बजे से 1 बजे के बीच, गांव के ही निवासी नीरज यादव ने एक नाबालिग लड़की का अपहरण कर लिया। इसके बाद उसे अपने चचेरे भाई चंदन यादव के घर ले जाया गया, जहां रातभर उसके साथ दुष्कर्म किया गया। और सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि आरोपी के पिता शिवप्रताप यादव को इस घिनौनी हरकत की पूरी जानकारी थी।

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अगले दिन यानी 13 जून को नाबालिग लड़की आरोपी नीरज यादव के साथ बरामद की गई। मगर इसके बावजूद, ग्राम प्रधान ने लड़की को समाज के सामने उसी आरोपी के हवाले कर दिया, जैसे कोई अपराध ही न हुआ हो। यह रवैया न केवल अमानवीय है, बल्कि अपराध को प्रोत्साहित करने जैसा है।

पुलिस की भूमिका पर गहरा संदेह

इस गंभीर अपराध के बाद जब पीड़िता खुद रैपुरा कोतवाली पहुंची, तो उसकी बात को नजरअंदाज कर दिया गया। थाना प्रभारी और हल्का इंचार्ज ने मामले की सही तरीके से जांच करने की बजाय सिर्फ “अपहरण” की एफआईआर दर्ज कर ली। दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध को दरकिनार कर पूरा मामला दबाने की कोशिश की जा रही है।

सवाल जो अब भी अनुत्तरित हैं

क्या ग्राम प्रधान, आरोपी के चचेरे भाई चंदन यादव और पिता शिवप्रताप यादव पर दुष्कर्म के सहयोगी के रूप में एफआईआर दर्ज होगी?

क्या पुलिस अधीक्षक महोदय संबंधित अधिकारियों पर लापरवाही के लिए कार्रवाई करेंगे?

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क्या पीड़िता और उसके परिवार को मिलेगा न्याय, या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

परिजन कर रहे न्याय की गुहार

नाबालिग लड़की के परिजन लगातार न्याय के लिए भटक रहे हैं, लेकिन प्रशासनिक तंत्र की खामोशी उनके घावों को और गहरा कर रही है। जब समाज के रक्षक ही अपराधियों के पक्ष में खड़े दिखें, तो पीड़ितों के पास रास्ते कम रह जाते हैं।

यह घटना महज एक आपराधिक मामला नहीं, बल्कि प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और पुलिस व्यवस्था की सामूहिक असफलता का प्रतीक बन चुकी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या पुलिस अधीक्षक महोदय इस पूरे मामले को संज्ञान में लेकर कठोर कार्रवाई करेंगे या फिर अपराधियों की बेलगाम हिम्मत को और खुली छूट मिलेगी?

अगले अंक में पढ़ें:

पीड़िता की आपबीती, ग्रामीणों की प्रतिक्रिया, और पुलिस अधीक्षक से विशेष संवाद।

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