
भारतीय संस्कृति, सनातन परंपरा और राष्ट्रीय एकता के विराट स्वरूप को रेखांकित करता हुआ आज आयोजित हिंदू सम्मेलन केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं रहा, बल्कि यह भारतीय सभ्यता की उस सतत चेतना का जीवंत प्रतीक बनकर उभरा, जिसने सहस्राब्दियों से समाज को दिशा, संतुलन और नैतिक आधार प्रदान किया है। इस सम्मेलन का मूल उद्देश्य सनातन मूल्यों को सशक्त करना, सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना तथा युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से भावनात्मक और वैचारिक रूप से जोड़ना रहा।
कार्यक्रम के आरंभ से ही वातावरण में एक विशेष ऊर्जा और वैचारिक गंभीरता महसूस की जा रही थी। मंच, सभागार और श्रोताओं के बीच केवल शब्दों का आदान–प्रदान नहीं हो रहा था, बल्कि एक साझा सांस्कृतिक स्मृति और सामूहिक उत्तरदायित्व का बोध भी निरंतर प्रवाहित हो रहा था।
सनातन दर्शन: विविधता में निहित एकता का शाश्वत सूत्र
सम्मेलन के दौरान वक्ताओं ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हिंदू समाज की वास्तविक शक्ति उसकी विविधता में निहित एकता है। भारत की सभ्यता किसी एक मत, एक भाषा या एक पंथ की सीमाओं में बंधी नहीं रही, बल्कि उसने सदैव विभिन्न विचारों, परंपराओं और जीवन–दृष्टियों को आत्मसात करते हुए एक समन्वित सांस्कृतिक ढांचा तैयार किया है।
वेद, उपनिषद, श्रीमद्भगवद्गीता और रामायण जैसे पावन ग्रंथ केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि वे जीवन–प्रबंधन, सामाजिक आचरण और नैतिक कर्तव्यों की संपूर्ण मार्गदर्शिका हैं। वक्ताओं ने इस बात पर विशेष बल दिया कि सत्य, अहिंसा, करुणा, सेवा और कर्तव्य जैसे मूल्य आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने प्राचीन काल में थे।
शिक्षा और संस्कार: राष्ट्र निर्माण की आधारशिला
सम्मेलन में इस बात पर गहन चर्चा हुई कि यदि किसी राष्ट्र को दीर्घकाल तक सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना है, तो उसकी शिक्षा–प्रणाली में केवल डिग्री नहीं, बल्कि संस्कारों का समावेश अनिवार्य है। समाज में व्याप्त कुरीतियों, नैतिक विचलन और सामाजिक विघटन को दूर करने के लिए शिक्षा को मूल्य–आधारित बनाना समय की मांग है।
जीएम एकेडमी की डाक्टर संभावना मिश्रा ने कहा कि युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़े बिना केवल भौतिक प्रगति स्थायी नहीं हो सकती। जब तक शिक्षा के साथ चरित्र निर्माण, अनुशासन और सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं जुड़ेंगे, तब तक राष्ट्र निर्माण का सपना अधूरा रहेगा।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ: संस्कारों की जीवंत अभिव्यक्ति
इस अवसर पर जी. एम. एकेडमी के विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत की गई सांस्कृतिक नृत्य प्रस्तुतियाँ सम्मेलन का विशेष आकर्षण रहीं। बच्चों की अनुशासित, भावपूर्ण और कलात्मक प्रस्तुति ने न केवल मंच को जीवंत कर दिया, बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया कि यदि सही मार्गदर्शन मिले, तो नई पीढ़ी भारतीय संस्कृति की सशक्त वाहक बन सकती है।
इन प्रस्तुतियों में भारतीय परंपरा, लोक–संस्कृति और राष्ट्रभक्ति के भाव इतने सहज और प्रभावशाली रूप में प्रकट हुए कि उपस्थित सभी माननीय अतिथि और दर्शक भावविभोर हो उठे। यह दृश्य स्वयं में इस बात का प्रमाण था कि संस्कार केवल पुस्तकों से नहीं, बल्कि व्यवहार और प्रस्तुति से भी आगे बढ़ते हैं।
गरिमामयी उपस्थिति ने बढ़ाई आयोजन की सार्थकता
सम्मेलन में सरकार्यवाह आदरणीय दत्तात्रेय होसबाले जी की गरिमामयी उपस्थिति ने आयोजन को वैचारिक ऊंचाई और प्रेरक दिशा प्रदान की। उनके सान्निध्य से कार्यक्रम न केवल सफल रहा, बल्कि उपस्थित जनसमूह को राष्ट्र, समाज और संस्कृति के प्रति अपने दायित्वों पर पुनः विचार करने का अवसर भी मिला।
इसके साथ ही जी. एम. एकेडमी के चेयरमैन डॉ. श्री प्रकाश मिश्रा, संभावना मिश्रा तथा कार्यक्रम के अध्यक्ष/कार्यकर्ता अध्यक्ष कैप्टन शैलेंद्र कुमार त्रिपाठी की उपस्थिति ने आयोजन की गरिमा को और अधिक सुदृढ़ किया। इन सभी के समन्वित प्रयासों से यह सम्मेलन एक वैचारिक संगम के रूप में स्थापित हुआ।
“वसुधैव कुटुंबकम्” का जीवंत संदेश
यह हिंदू सम्मेलन केवल किसी एक समुदाय तक सीमित संदेश नहीं देता, बल्कि यह भारतीय दर्शन के उस सार्वभौमिक सिद्धांत को सामने रखता है—“वसुधैव कुटुंबकम्”। अर्थात संपूर्ण विश्व एक परिवार है। वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि सनातन संस्कृति का मूल उद्देश्य विभाजन नहीं, बल्कि समन्वय और सहअस्तित्व है।
आज जब विश्व अनेक प्रकार के वैचारिक और सामाजिक संघर्षों से जूझ रहा है, ऐसे समय में भारतीय संस्कृति का यह संदेश और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
पर्यावरण संरक्षण का प्रेरक संदेश
सम्मेलन के पश्चात आदरणीय दत्तात्रेय होसबाले जी का जी. एम. एकेडमी के प्रांगण में भव्य स्वागत किया गया। इस अवसर पर उनके द्वारा विद्यालय परिसर में वृक्षारोपण कर पर्यावरण संरक्षण का सशक्त और प्रेरक संदेश दिया गया। यह संदेश इस बात का प्रतीक था कि भारतीय संस्कृति केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि प्रकृति–संरक्षण की भी पक्षधर रही है।
इसके बाद कार्यकर्ताओं तथा विद्यालय परिवार के साथ आत्मीय संवाद हुआ और सभी ने सौहार्दपूर्ण वातावरण में जलपान कर आपसी परिचय और संवाद को और अधिक प्रगाढ़ किया।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
हिंदू सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य क्या रहा?
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य सनातन मूल्यों को सशक्त करना, सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना और युवा पीढ़ी को भारतीय सांस्कृतिक विरासत से जोड़ना रहा।
सम्मेलन में किन विषयों पर चर्चा की गई?
धर्म, शिक्षा, समाज, संस्कार, राष्ट्रीय एकता, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए गए।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का महत्व क्या रहा?
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने यह सिद्ध किया कि नई पीढ़ी भारतीय परंपरा और संस्कारों को आत्मसात कर उन्हें प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर सकती है।
वृक्षारोपण कार्यक्रम का संदेश क्या था?
वृक्षारोपण के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण, प्रकृति–सम्मान और सतत विकास का प्रेरक संदेश दिया गया।






