केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा का नाम बदलकर ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) 2025’ किए जाने की तैयारी ने देश की राजनीति, संसद और ग्रामीण विकास से जुड़े विमर्श को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है। प्रस्तावित नए नाम को संक्षेप में ‘वीबी जी राम जी योजना’ कहा जा रहा है। सरकार का दावा है कि यह बदलाव केवल नाम का नहीं, बल्कि सोच, संरचना और लक्ष्य का है, जबकि विपक्ष इसे महात्मा गांधी के नाम को योजनाबद्ध तरीके से हटाने की कोशिश के रूप में देख रहा है। इस पूरे घटनाक्रम ने रोजगार की गारंटी, ग्रामीण आजीविका, संघीय वित्तपोषण और वैचारिक प्रतीकों—चारों मोर्चों पर बहस को तेज कर दिया है।
मनरेगा से ‘वीबी जी राम जी योजना’ तक: बदलाव का प्रस्ताव
वर्ष 2005 में शुरू हुई महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को भारत की सबसे व्यापक और अधिकार-आधारित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में गिना जाता है। यह कानून ग्रामीण परिवारों को प्रति वर्ष 100 दिनों के मजदूरी आधारित रोजगार की कानूनी गारंटी देता रहा है। अब केंद्र सरकार नए बिल के जरिए इस ढांचे को अद्यतन करते हुए रोजगार के दिनों को बढ़ाकर 125 दिन करने, काम के स्वरूप में बदलाव करने और खेती के पीक सीजन में मनरेगा कार्य रोकने जैसे प्रावधान जोड़ने की बात कर रही है। सरकार का तर्क है कि पिछले दो दशकों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था, कृषि चक्र और श्रम बाजार में बड़े बदलाव आए हैं और योजना को “विकसित भारत” के विज़न से जोड़ना समय की मांग है।
नाम में ‘गांधी’ का हटना: राजनीति क्यों गरमाई
नए नाम की जानकारी सामने आते ही कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने इसे वैचारिक हमला बताया। विपक्ष का कहना है कि मनरेगा केवल एक योजना नहीं बल्कि गांधी के श्रम, स्वावलंबन और ग्राम स्वराज के विचारों का आधुनिक रूप है। उनका आरोप है कि रोजगार की गारंटी को ‘मिशन’ में बदलना अधिकार आधारित ढांचे को कमजोर करने का संकेत हो सकता है।
भाजपा का पक्ष: नाम नहीं, नीयत और परिणाम अहम
भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि नए नाम में गारंटी, रोजगार और आजीविका—तीनों शब्द मौजूद हैं। पार्टी के अनुसार 125 दिन का रोजगार, कौशल आधारित कार्य और ग्रामीण परिसंपत्तियों का सृजन गांधीवादी सोच के अनुरूप है। खेती के पीक सीजन में काम रोकने का उद्देश्य कृषि कार्यों को श्रमिक संकट से बचाना है।
शशि थरूर का बयान: ‘राम’ से परहेज गांधीवाद नहीं
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि ‘राम’ से परहेज करना गांधीवाद नहीं है और गांधी स्वयं रामराज्य की कल्पना करते थे। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि किसी योजना से गांधी का नाम हटाना एक अलग और गंभीर राजनीतिक प्रश्न है।
टीडीपी की चिंता: पैसा कहां से आएगा?
सरकार की सहयोगी टीडीपी ने योजना के विस्तार के लिए पर्याप्त वित्तपोषण की मांग उठाई है। पार्टी का कहना है कि समय पर भुगतान और केंद्र–राज्य के बीच वित्तीय संतुलन के बिना 125 दिन रोजगार की घोषणा व्यवहारिक नहीं होगी।
अधिकार बनाम मिशन और आगे की राह
सबसे बड़ा सवाल यही है कि अधिनियम से मिशन की ओर बढ़ना कहीं रोजगार की कानूनी गारंटी को कमजोर तो नहीं करेगा। ग्रामीण भारत के लिए नाम से ज्यादा मायने यह रखता है कि काम मिले, मजदूरी समय पर मिले और सम्मान बना रहे। ‘वीबी जी राम जी योजना’ अब सरकार, विपक्ष और संघीय ढांचे—तीनों के लिए एक निर्णायक परीक्षा बन चुकी है।
❓ सवाल–जवाब
मनरेगा का नाम क्यों बदला जा रहा है?
सरकार का कहना है कि योजना को विकसित भारत के विज़न से जोड़ने और रोजगार के साथ आजीविका पर फोकस बढ़ाने के लिए नाम बदला जा रहा है।
क्या रोजगार की कानूनी गारंटी खत्म होगी?
सरकार इससे इनकार करती है, लेकिन विपक्ष चाहता है कि इसे विधेयक में स्पष्ट रूप से दर्ज किया जाए।
125 दिन का रोजगार सभी को मिलेगा?
यह राज्य सरकारों की मांग, बजट और क्रियान्वयन क्षमता पर निर्भर करेगा।






