
नयन ज्योति की रिपोर्ट
रायपुर की अवधिया पारा की तंग गलियों के बीच खड़ा एक जर्जर मकान आज भी
जागेश्वर प्रसाद अवधिया मामला की लंबी पीड़ा का गवाह है। लगभग 84 वर्ष के जागेश्वर प्रसाद अवधिया, जिन पर 1986 में 100 रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा था,
39 वर्ष तक न्याय की उम्मीद में संघर्ष करते रहे और आखिरकार हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया।
लेकिन यह आदेश उस जीवन को नहीं लौटा सका जो आरोपों और अपमान की धूल में दफन हो चुका था।
जागेश्वर प्रसाद अवधिया मामला सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं; यह भारतीय न्याय व्यवस्था की उस धीमी रफ्तार को उजागर करता है जहां न्याय की मंज़िल पर पहुंचते-पहुंचते जीवन के कई अध्याय खत्म हो जाते हैं।
39 साल की सज़ा, जो अदालत ने कभी सुनाई ही नहीं
1986 में लोकायुक्त टीम ने उन्हें 100 रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया।
स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन में क्लर्क पद पर कार्यरत अवधिया ने रिश्वत लेने से इनकार किया था।
लेकिन नाराज कर्मचारी और उसके पुलिसकर्मी पिता ने मिलकर उन्हें फंसा दिया।
यही वह पल था जब जागेश्वर प्रसाद अवधिया मामला उनकी जिंदगी की सबसे क्रूर सच्चाई बन गया।
1988 में उनका निलंबन हुआ, 1994 तक निलंबित रहे, फिर रीवा तबादला।
आधी तनख्वाह में घर चलाना असंभव था।
चार बच्चों की पढ़ाई एक-एक करके छूटती गई।
घर का आर्थिक पतन शुरू हो चुका था और सामाजिक अपमान उन्हें अंदर से तोड़ने लगा।
बच्चों का बचपन, पत्नी की जिंदगी—सब निगल गया यह केस
उनके बेटे नीरज बताते हैं—
“हमारे स्कूल में बच्चे चिढ़ाते— रिश्वतखोर का बेटा।
फीस भरने के पैसे नहीं थे, कई बार स्कूल से निकाल दिया गया।
रिश्तेदारों ने नाता तोड़ लिया।”
अवधिया की पत्नी इंदू हर दिन समाजिक अपमान, गरीबी और चिंता में टूटती रहीं।
24 दिन अस्पताल में रहने के बाद इलाज के अभाव में उनकी मृत्यु हो गई।
अवधिया कहते हैं—
“मेरे पास अंतिम संस्कार तक के पैसे नहीं थे। एक दोस्त ने तीन हजार रुपये दिए।”
जागेश्वर प्रसाद अवधिया मामला सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि एक परिवार के बिखर जाने की दास्तान बन चुका था।
2004 में दोषी करार, 2025 में बेगुनाह – 21 साल की और प्रतीक्षा
2004 में जब ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी माना, तब सभी गवाह अपने बयान से पलट गए थे।
फिर भी अदालत ने उन्हें एक साल की सज़ा सुनाई।
अवधिया ने हिम्मत नहीं हारी और हाईकोर्ट पहुंचे।
लेकिन जागेश्वर प्रसाद अवधिया मामला यहाँ भी 20 साल से अधिक समय तक चला।
फिर आया 2025— जब हाईकोर्ट ने कहा—
“आप निर्दोष हैं।”
पर तब तक जीवन का बहुत कुछ खत्म हो चुका था।
छत्तीसगढ़ में 30–50 साल तक लटकते केस—न्याय कैसे मिलेगा?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार—
- 77,616 केस छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में लंबित
- 19,154 केस 5–10 साल पुराने
- 4,159 केस 10–20 साल पुराने
- 105 केस 20 साल से अधिक समय से लंबित
सिर्फ जागेश्वर प्रसाद अवधिया मामला ही नहीं,
दुर्ग और सरगुजा जैसे जिलों में कई केस 40–50 साल से लंबित हैं।
अब क्या चाहते हैं जागेश्वर प्रसाद?
वे कहते हैं—
“अब कोई न्याय नहीं चाहिए। बस मेरी पेंशन और बकाया दे दें…
मेरे हाथ किसी के सामने न फैलें।”
जागेश्वर प्रसाद अवधिया मामला बताता है कि देर से मिला न्याय कैसे जीवन की कीमत वसूल लेता है।
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