संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट। पुरानी बाजार स्थित स्वर्गीय राजेंद्र पांडेय के आवास पर शनिवार का दिन एक असाधारण आध्यात्मिक अनुभव का साक्षी बना।
उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर आयोजित भागवत कथा चित्रकूट ने न केवल परिवार, बल्कि पूरे इलाके को भाव-विह्वल कर दिया।
पत्रकारिता जगत में अपनी निर्भीक लेखनी, ईमानदार सोच और संवेदनशील दृष्टि के लिए विख्यात रहे राजेंद्र पांडेय भले ही अब इस दुनिया में नहीं हैं,
लेकिन उनकी स्मृतियाँ और उनके कर्म आज भी लोगों को उतनी ही मजबूती से छूते हैं।
इस अवसर पर आयोजित भागवत कथा चित्रकूट का वातावरण ऐसा था मानो आध्यात्मिक ऊर्जा पूरे आँगन में धीरे-धीरे उतर रही हो।
परिवार के सभी सदस्यों की उपस्थिति ने इस आयोजन को और भी अधिक भावपूर्ण बना दिया।
कथा के मुख्य श्रोता के रूप में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रेखा पांडेय उपस्थित रहीं, जिनकी आँखों में पूरे समय अपने जीवनसाथी की स्मृतियों की कोमल चमक तैरती रही।
ऐसा प्रतीत हो रहा था कि भागवत कथा चित्रकूट के प्रत्येक शब्द के साथ वे अपने पति के प्रेम, उनके मार्गदर्शन और उनकी उपस्थिति को महसूस कर रही हों।
इस भावनात्मक आयोजन का वाचन नया गांव के प्रसिद्ध व्यास पंडित रवि शास्त्री द्वारा किया गया,
जिनकी मधुर वाणी और गहन व्याख्या ने उपस्थित जनों को भक्ति, ज्ञान और अध्यात्म के गहरे सागर में डुबो दिया।
उनकी आवाज़ जब-जब श्रीमद्भागवत का कोई पावन प्रसंग सुनाती, ऐसा लगता मानो स्वर्गीय राजेंद्र पांडेय स्वयं इस भागवत कथा चित्रकूट के साक्षी बनकर परिवार को आशीर्वाद दे रहे हों।
भागवत कथा चित्रकूट ने भरा घर-आँगन को आध्यात्मिक ऊर्जा से
आँगन में बैठे परिवार और समाज के लोगों के बीच इतनी शांति और श्रद्धा थी कि हर कोई इस दिव्य वातावरण में डूब गया।
भागवत कथा चित्रकूट के दौरान श्रद्धा का ऐसा अद्भुत प्रवाह दिखाई दिया, जिसने यह महसूस करा दिया कि सच्चे कर्मयोगी भले ही शरीर से दूर हो जाएँ,
परंतु वे अपने संस्कारों और आदर्शों के रूप में सदैव जीवित रहते हैं।
कथा के समय अनेक प्रसंग ऐसे आए जब परिवार के सदस्य भावुक हो उठे। विशेषकर उस वक्त जब व्यास जी ने “कर्म ही मनुष्य की सबसे बड़ी पहचान है” जैसे गूढ़ वचनों को विस्तार से बताया।
यह सुनकर उपस्थित लोग स्वर्गीय राजेंद्र पांडेय के कर्मों को याद कर भाव-विह्वल हो उठे।
क्योंकि पूर्ण निष्ठा और सत्यनिष्ठा से किया हुआ उनका काम ही उन्हें आज भी अमर बनाए हुए है।
राजेंद्र पांडेय की पत्रकारिता और उनका व्यक्तित्व क्यों आज भी प्रेरणा है?
भागवत कथा चित्रकूट के माध्यम से परिवार ने उनके व्यक्तित्व को दोबारा महसूस किया।
वे पत्रकारिता में उन लोगों में से थे जो दबावों के आगे नहीं झुकते थे।
अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार पर बेबाकी से लिखना ही उनकी पहचान थी।
उनकी लेखनी सिर्फ खबर नहीं लिखती थी, बल्कि सच को समाज के आईने में साफ-साफ दिखाती थी।
उनके साथ काम कर चुके कई लोग बताते हैं कि वे हमेशा युवा पत्रकारों को दो बातें ज़रूर सिखाते थे—
पहली, “सच से कभी समझौता मत करना”
और दूसरी, “पत्रकारिता जनता की सेवा है, किसी सत्ता का हथियार नहीं।”
आज उनकी पुण्यतिथि पर जब भागवत कथा चित्रकूट का आयोजन हुआ, तो ऐसा लगा मानो उनकी दी हुई सीखें,
उनके बताए रास्ते और उनका मजबूत व्यक्तित्व हर किसी को फिर याद दिला रहा हो कि सच्चे कर्मों वाला व्यक्ति कभी नहीं मरता।
परिवार ने दिखाई एकता—सिखाया कि स्मृतियाँ ही सबसे बड़ा धन
कथा स्थल पर परिवार की एकजुटता देखने योग्य थी।
उनकी धर्मपत्नी, पुत्र-पुत्रियाँ, रिश्तेदार और यहां तक कि आसपास के लोग भी भागवत कथा चित्रकूट को सुनने के लिए बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
यह एक तरह से यह संदेश था कि परिवार वही होता है जो दुख-सुख में साथ खड़ा रहे और पूर्वजों के संस्कारों को आगे बढ़ाए।
पंडित रवि शास्त्री ने कथा का समापन करते हुए कहा कि जीवन अनिश्चित है, परंतु अच्छे कर्म, अच्छा चरित्र और परिवार का प्रेम—ये तीन चीज़ें मनुष्य को अमर बनाती हैं।
और यही तीनों देवतुल्य गुण स्वर्गीय राजेंद्र पांडेय के जीवन में स्पष्ट रूप से दिखाई देते थे।
भागवत कथा चित्रकूट—सिर्फ आयोजन नहीं, बल्कि आत्मिक संवाद
कई लोग मानते हैं कि भागवत कथा चित्रकूट सिर्फ धार्मिक कार्यक्रम नहीं था,
बल्कि यह एक आत्मिक संवाद था जिसमें परिवार ने अपने दिवंगत सदस्य से भावनात्मक रूप से जुड़ने का अनुभव किया।
कथा के दौरान बार-बार ऐसा महसूस हुआ कि उनके जीवन मूल्य आज भी परिवार और समाज को दिशा दे रहे हैं।
आयोजन के मंच पर दीप प्रज्वलन से लेकर कथा के समापन तक हर क्षण में शांति, दिव्यता और भावनात्मक गहराई दिखाई दी।
अक्सर कहा जाता है कि स्मृतियाँ ही वह धरोहर हैं जो किसी भी इंसान को जीवित रखती हैं—और इस भागवत कथा चित्रकूट ने यह एक बार फिर सिद्ध कर दिया।
क्लिक करके पढ़ें — सवाल और उनके जवाब
प्रश्न 1: भागवत कथा चित्रकूट का आयोजन क्यों विशेष था?
यह आयोजन स्वर्गीय राजेंद्र पांडेय की प्रथम पुण्यतिथि पर हुआ, जिसमें परिवार और समाज ने भावनात्मक रूप से उन्हें याद किया।
प्रश्न 2: भागवत कथा चित्रकूट किसने संपन्न कराई?
नया गांव के प्रसिद्ध व्यास पंडित रवि शास्त्री द्वारा अत्यंत भावपूर्ण ढंग से कथा का वाचन किया गया।
प्रश्न 3: राजेंद्र पांडेय के परिवार की भूमिका क्या रही?
उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रेखा पांडेय सहित पूरा परिवार पूरी निष्ठा से उपस्थित रहा और आयोजन को भावनात्मक गहराई प्रदान की।
प्रश्न 4: भागवत कथा चित्रकूट का मुख्य संदेश क्या रहा?
इस कथा का मुख्य संदेश था—मनुष्य चला जाता है, पर उसके कर्म, संस्कार और मूल्य हमेशा जीवित रहते हैं।






