
लखनऊ रैली से बसपा की वापसी, आकाश आनंद बने सियासी फोकस
अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने अपने संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर आयोजित विशाल रैली के जरिए सूबे की राजनीति में नया संदेश दे दिया।
जो बसपा अब तक विधानसभा चुनाव की दौड़ से बाहर मानी जा रही थी, वो अब अचानक सियासी केंद्र में लौट आई है। इस रैली के बाद मायावती ने पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने का ऐलान किया, वहीं उनके भतीजे आकाश आनंद ने सियासत के मैदान में हलचल मचा दी।
राजनीतिक गलियारों में अब सबसे ज्यादा चर्चा आकाश आनंद की है। उनका नाम न सिर्फ सोशल मीडिया पर बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों की बहस में भी छा गया है।
अखिलेश यादव का बयान बना विवाद का कारण
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आकाश आनंद को लेकर तीखा बयान दिया। उन्होंने कहा — “आकाश आनंद की जरूरत अब बसपा से ज्यादा बीजेपी को है।”
इस बयान ने यूपी की राजनीति में भूचाल ला दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव के इस बयान के पीछे “राजनीतिक डर” छिपा है।
वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम का कहना है कि अखिलेश यादव जानते हैं कि मायावती अब आकाश आनंद को आगे बढ़ाने जा रही हैं, और अगर ऐसा हुआ तो पीडीए राजनीति (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) में सपा की पकड़ कमजोर हो सकती है।
आकाश आनंद – बसपा की नई ऊर्जा और युवाओं की उम्मीद
आकाश आनंद फिलहाल बहुजन समाज पार्टी के युवाओं के बीच नई ऊर्जा का प्रतीक बन चुके हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान उनके भाषणों ने खासकर मुस्लिम समुदाय और युवा वोटरों के बीच प्रभाव डाला था।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, मायावती और अखिलेश यादव जैसे वरिष्ठ नेता हर विधानसभा क्षेत्र तक नहीं पहुंच सकते, लेकिन आकाश आनंद का ग्राउंड लेवल कनेक्शन और जनसभाओं में सक्रियता सपा के लिए चुनौती साबित हो सकती है।
सैयद कासिम कहते हैं – “आकाश आनंद जितना सक्रिय होंगे, उतना ही समाजवादी पार्टी को नुकसान होगा। उनके भाषण और युवाओं से जुड़ाव उन्हें बसपा का भविष्य बना रहे हैं।”
मायावती अब तक साइलेंट, आकाश आनंद के जरिए बदलेंगी रणनीति
अब तक मायावती साइलेंट मोड में थीं। वे न बीजेपी पर बोल रही थीं, न विपक्षी दलों पर। इस चुप्पी से सपा को राजनीतिक फायदा मिल रहा था।
लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। लखनऊ रैली में मायावती ने संकेत दे दिया कि आकाश आनंद को अब यूपी की विधानसभा राजनीति में उतरने का मौका मिलेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जैसे ही आकाश आनंद विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय होंगे, अखिलेश यादव के लिए मैदान कठिन हो जाएगा।
युवा, खासकर दलित और मुस्लिम वोट बैंक, जो अब तक सपा के साथ झुके हुए थे, उनका रुख बसपा की ओर झुक सकता है।
अखिलेश यादव के सामने दोहरी चुनौती
सैयद कासिम के शब्दों में – “अखिलेश यादव के लिए यह स्थिति कुएं और खाई जैसी है।”
अगर वे मायावती को सीधा निशाना बनाते हैं, तो दलित वोटर नाराज होंगे। लेकिन अगर वे चुप रहते हैं, तो आकाश आनंद का ग्राफ लगातार बढ़ेगा।
इसलिए अखिलेश यादव ने एक रणनीतिक रास्ता चुना है — वे मायावती को नहीं, बल्कि आकाश आनंद को निशाने पर रख रहे हैं।
राजनीतिक रूप से देखा जाए तो यह एक “सुरक्षित हमला” है — जिससे दलितों की नाराजगी भी न हो और विपक्ष की आवाज पर भी प्रहार हो जाए।
आकाश आनंद की सक्रियता से क्यों घबराए अखिलेश यादव
दरअसल, आकाश आनंद बसपा में वह चेहरा हैं, जो दलित, पिछड़े और मुस्लिम समुदायों के बीच समन्वय की नई जमीन तैयार कर रहे हैं।
उनका बेबाक अंदाज, स्पष्ट भाषा और सोशल मीडिया पर लोकप्रियता ने उन्हें नई राजनीतिक पहचान दी है।
वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि अखिलेश यादव को यह समझ आ गया है कि आकाश आनंद का राजनीतिक उभार सिर्फ बसपा के लिए नहीं, बल्कि पूरी पीडीए राजनीति के लिए चुनौती बन सकता है।
उनकी रैलियों में युवाओं की भीड़ और सोशल मीडिया पर बढ़ता समर्थन इस बात का प्रमाण है।
बसपा के पुनरुत्थान का प्रतीक बनी लखनऊ रैली
लखनऊ में आयोजित इस रैली को राजनीतिक जानकार बसपा के पुनरुत्थान का प्रतीक मान रहे हैं।
मायावती ने इस रैली में कहा कि वे एक बार फिर बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनाएंगी और दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखेंगी।
रैली में कांशीराम की विचारधारा और आंबेडकरवादी राजनीति को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया।
मंच पर जब आकाश आनंद पहुंचे, तो युवाओं में खासा उत्साह देखा गया। यही उत्साह अब राजनीतिक दलों में चिंता का कारण बना हुआ है।

अखिलेश बनाम आकाश — यूपी की नई सियासी जंग का केंद्र
अब यूपी की राजनीति में मुकाबला सिर्फ सपा बनाम बीजेपी नहीं, बल्कि सपा बनाम बसपा (आकाश आनंद) भी बनने जा रहा है।
जहां एक ओर अखिलेश यादव अनुभवी और स्थापित चेहरा हैं, वहीं आकाश आनंद नई पीढ़ी की उम्मीद बनते जा रहे हैं।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में बसपा अगर आकाश आनंद को मोर्चे पर उतारती है, तो दलित-मुस्लिम गठजोड़ सपा के लिए सिरदर्द बन सकता है।
निष्कर्ष — आकाश आनंद की बढ़ती लोकप्रियता से बदलेगा यूपी का समीकरण
लखनऊ रैली ने यह स्पष्ट कर दिया कि मायावती अब चुप नहीं रहेंगी और उनकी अगली रणनीति में आकाश आनंद अहम भूमिका निभाएंगे।
वहीं, अखिलेश यादव की चिंता इस बात से है कि अगर आकाश आनंद मैदान में उतरते हैं, तो सपा की जमीन खिसक सकती है।
आने वाले महीनों में यूपी की राजनीति में आकाश आनंद, मायावती, और अखिलेश यादव के बीच यह त्रिकोणीय मुकाबला निर्णायक साबित हो सकता है।