जब माँ की ममता हारी मासूम की जान गई

महोबा में मासूम की मौत के बाद कमरे में जांच करती यूपी पुलिस टीम





महोबा की घटना : जब माँ की मानवता हारी, मासूम की जान गई

ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट

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महोबा (उत्तर प्रदेश): उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में एक ऐसी दर्दनाक घटना सामने आई जिसने पूरे समाज को झकझोर दिया। यहां एक मां ने अपने पति से फोन पर झगड़े के बाद अपनी एक साल की मासूम बेटी को फांसी के फंदे पर लटका दिया। इस हादसे में सिर्फ एक बच्ची की जान नहीं गई, बल्कि माँ की मानवता भी हार गई। पुलिस ने आरोपी मां को गिरफ्तार कर लिया है और पूरे मामले की जांच जारी है।

पति से झगड़ा बना माँ की मानवता के हारने का कारण

महोबा शहर कोतवाली क्षेत्र के सुभाष नगर की रहने वाली उमारानी की बेटी खुशबू की शादी चरखारी निवासी अरविंद से हुई थी। अरविंद की शराब पीने की आदत ने घर का माहौल बिगाड़ दिया था। अक्सर पति-पत्नी में विवाद होता था, और कई बार मामला मारपीट तक पहुंच जाता था। खुशबू लगातार कहती थी कि वह अरविंद से अलग रहना चाहती है, लेकिन पति तैयार नहीं था। अंततः यह विवाद उस मोड़ पर पहुंचा, जहां माँ की मानवता ने दम तोड़ दिया।

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मंगलवार की सुबह पति और पत्नी के बीच फोन पर फिर से कहासुनी हुई। खुशबू ने गुस्से में अपने गले का नहीं, बल्कि अपनी मासूम बेटी ऋषिका का गला फांसी के फंदे से लटका दिया। इसी क्षण, माँ की मानवता अपने सबसे कमजोर रूप में दिखी — वह ममता जो दुनिया को जन्म देती है, आज मौत का कारण बन गई।

खुद मां ने दी घटना की जानकारी — माँ की मानवता पर उठे सवाल

घटना के बाद खुशबू ने खुद अपने भाई को बुलाकर कहा — “मैंने ऋषिका को फांसी दे दी।” भाई जब कमरे में पहुंचा, तो सामने बच्ची लटकी हुई थी। यह दृश्य किसी के भी होश उड़ा देने के लिए काफी था। पुलिस को सूचना दी गई और तुरंत महोबा कोतवाली पुलिस मौके पर पहुंची।

फॉरेंसिक टीम ने साक्ष्य जुटाए और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। पुलिस ने आरोपी मां को हिरासत में ले लिया है। पूछताछ में उसने स्वीकार किया कि वह मानसिक तनाव में थी और झगड़े से परेशान थी। लेकिन समाज आज यही पूछ रहा है — क्या तनाव इतना बड़ा हो सकता है कि माँ की मानवता मर जाए?

मानसिक तनाव और सामाजिक दबाव ने छीनी माँ की मानवता

खुशबू की मां उमारानी ने बताया कि खुशबू पहले से ही मानसिक रूप से कमजोर थी और उसका इलाज चल रहा था। घर में लगातार झगड़ों और आर्थिक तनाव ने उसकी हालत और बिगाड़ दी थी। इस बार जब झगड़ा बढ़ा, तो उसने नियंत्रण खो दिया।

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यह घटना दिखाती है कि माँ की मानवता केवल जैविक भावना नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक स्थिरता पर भी निर्भर करती है। जब समाज और परिवार का सहारा टूट जाता है, तो सबसे मजबूत संबंध भी दरकने लगते हैं।

पति-पत्नी का विवाद और माँ की मानवता का पतन

स्थानीय लोगों का कहना है कि अरविंद की शराबखोरी और गुस्से ने खुशबू को बार-बार अपमानित किया। कई बार पंचायत में सुलह की कोशिशें भी हुईं, मगर नतीजा सिफर रहा। किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह पति-पत्नी का विवाद माँ की मानवता को निगल जाएगा।

मासूम ऋषिका की मौत के बाद पूरा इलाका सन्न है। हर कोई पूछ रहा है — क्या एक मां इतना अमानवीय कदम उठा सकती है? क्या यह गुस्से का क्षण था या माँ की मानवता पर छाया मानसिक अंधेरा?

महोबा पुलिस की जांच और समाज की जिम्मेदारी

महोबा पुलिस ने आरोपी मां को गिरफ्तार कर लिया है और विस्तृत जांच शुरू कर दी है। पुलिस अधीक्षक ने कहा — “यह केवल अपराध नहीं, एक मनोवैज्ञानिक त्रासदी है। हमें यह समझना होगा कि समाज में ऐसे तनाव क्यों बढ़ रहे हैं।”

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फिलहाल पुलिस मानसिक चिकित्सकों की मदद से आरोपी की स्थिति का आकलन कर रही है। माँ की मानवता का यह पतन पूरे समाज के लिए चेतावनी है कि घरेलू हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर समय रहते ध्यान दिया जाए।

समाज में करुणा की जरूरत — ताकि न टूटे माँ की मानवता

यह घटना केवल महोबा समाचार नहीं, बल्कि एक आईना है — जो दिखाता है कि माँ की मानवता को बचाए रखने के लिए समाज को मानसिक स्वास्थ्य, संवाद और सहानुभूति पर काम करना होगा। जब कोई महिला अकेली पड़ जाती है, तो उसकी सोच पर अंधेरा छा जाता है।

जरूरत है कि हर मोहल्ले, हर परिवार में ऐसा माहौल बनाया जाए जहां कोई “खुशबू” अपनी पीड़ा कह सके। ताकि अगली बार कोई माँ की मानवता हार न जाए।

निष्कर्ष : एक बच्ची की मौत, और माँ की मानवता का प्रश्न

महोबा की घटना ने एक सवाल हमारे सामने छोड़ दिया है — क्या रिश्तों की कड़वाहट इंसानियत से भी ऊपर हो सकती है? जब ममता अपनी संतान को बचाने के बजाय मिटा दे, तो वह केवल अपराध नहीं, बल्कि माँ की मानवता का अंत होता है।



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