Sunday, July 20, 2025
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मजबूरी में खुले में शौच, महिलाओं के लिए बढ़ता संकट

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

प्रयागराज (घूरपुर)। सरकार भले ही ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के तहत गांव-गांव शौचालय बनवाने का दावा करती हो, लेकिन प्रयागराज के घूरपुर इलाके में सच्चाई इसके ठीक उलट है। यहां स्थित कई ईंट भट्ठों पर करीब 150 मजदूर, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा के बिना काम करने को मजबूर हैं। इससे न केवल उनकी दिनचर्या प्रभावित हो रही है, बल्कि महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा है।

मजबूरी में खुले में शौच, महिलाओं के लिए बढ़ता संकट

छत्तीसगढ़ की ललिता देवी बताती हैं कि यदि दिन में कभी पेट खराब हो जाए, तो शौच के लिए बैठने तक की जगह नहीं मिलती। चूंकि ईंट भट्ठे हाईवे के किनारे स्थित हैं, इसलिए आसपास सुरक्षित स्थान भी नहीं है। बड़ी उम्र की लड़कियों और महिलाओं को सबसे अधिक परेशानी होती है, क्योंकि खुले में जाना न केवल असहज है, बल्कि असुरक्षित भी।

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परिवार सहित काम पर, लेकिन मूल सुविधाओं से वंचित

छत्तीसगढ़ के रामबहोरन, जो पिछले चार महीने से अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ ईंट पथाई का काम कर रहे हैं, बताते हैं कि उन्हें एक छोटी झोपड़ी और लकड़ी तो मिलती है, लेकिन शौचालय और नहाने की कोई व्यवस्था नहीं है। उनका कहना है कि काम बंद होने पर मजदूरी से कटौती कर दी जाती है, जिससे आर्थिक संकट और गहरा जाता है।

“बेटियों के बाहर जाने पर हमेशा डर बना रहता है। न किसी को जानते हैं, न पहचानते हैं।”

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नहाने तक की सुविधा नहीं, एक ही झोपड़ी में पूरा परिवार

गुलाब देवी बताती हैं कि नहाने और कपड़े बदलने की सुविधा तक नहीं है। एक ही झोपड़ी में पूरा परिवार रहता है, जिससे महिलाओं को निजता नहीं मिल पाती। कई बार भट्ठा मालिक से शौचालय बनवाने की मांग की गई, लेकिन अब तक केवल आश्वासन ही मिला है।

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बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित, स्कूल की व्यवस्था नहीं

स्थानीय निवासी गीता बताती हैं कि उनके चार छोटे बच्चे हैं, लेकिन भट्ठे पर कोई स्कूल नहीं है। मजबूरन बच्चों को गांव भेजना पड़ता है जो कि यहां से 10-15 किलोमीटर दूर है।

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वह कहती हैं, “बहुत गर्मी होती है, इसलिए हम पेड़ के नीचे बैठते हैं। अधिकारी आते हैं, फोटो खींचते हैं और चले जाते हैं, कोई समाधान नहीं होता।”

भट्ठा मालिक का जवाब: अगली बार शौचालय बनवाएंगे

भट्ठा मालिक चिंटू उर्फ कुंवर बहादुर सिंह ने बताया कि उनके भट्ठे पर 150 मजदूर काम करते हैं। सभी के लिए कमरे, बिजली, राशन और ईंधन की व्यवस्था है। हालांकि, उन्होंने यह स्वीकार किया कि अभी शौचालय की सुविधा नहीं है, लेकिन उन्होंने आश्वासन दिया कि अगली बार इसका निर्माण कराया जाएगा।

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यह रिपोर्ट न केवल सरकारी दावों की पोल खोलती है, बल्कि यह भी उजागर करती है कि प्रवासी और असंगठित क्षेत्र के मजदूर आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। महिलाओं की सुरक्षा, बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सवाल आज भी अनुत्तरित हैं। समय की मांग है कि स्थानीय प्रशासन हस्तक्षेप कर इन मजदूरों को शौचालय, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराए।


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