Sunday, July 20, 2025
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शिब्ली नेशनल कॉलेज में अंबेडकर जयंती पर हुआ विचारमंथन, वक्ताओं ने बताया संविधान की प्रासंगिकता

जगदम्बा उपाध्याय की रिपोर्ट

आजमगढ़। शिब्ली नेशनल कॉलेज, आजमगढ़ में भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के उपलक्ष्य में सोमवार को एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। ‘हमारा संविधान और हमारा स्वाभिमान’ थीम पर आधारित इस आयोजन की अध्यक्षता कॉलेज के प्राचार्य प्रो. अफसर अली ने की।

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. अंबेडकर के चित्र पर माल्यार्पण से हुई, जिसमें प्रो. अफसर अली के साथ-साथ डॉ. सिद्धार्थ सिंह और डॉ. अखिलेश कुमार त्रिपाठी ने सहभागिता निभाई। इस अवसर पर मंच को भव्य और अनुशासित ढंग से सजाया गया था, जो वातावरण को प्रेरणादायी बना रहा।

मुख्य वक्तव्यों की श्रृंखला में उठे कई महत्वपूर्ण मुद्दे

इसके बाद ‘संविधान और सामाजिक स्वाभिमान’ विषय पर वक्तव्यों की श्रृंखला प्रस्तुत की गई। वक्ताओं ने संविधान के महत्व, नागरिक अधिकारों और कर्तव्यों, सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता पर गहन विचार रखे। साथ ही, संविधान में समय-समय पर हुए संशोधनों और उनके सामाजिक प्रभावों की भी गंभीर विवेचना की गई।

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वक्ताओं ने डॉ. अंबेडकर के विचारों को बताया आज भी प्रासंगिक

इस अवसर पर डॉ. जफर आलम, आशुतोष महेश्वरी, डॉ. शहरयार, डॉ. सीमा सादिक, छात्रा अंजलि यादव, डॉ. जोया फातिमा और प्रो. मोहम्मद खालिद ने अपने विचार व्यक्त किए। सभी वक्ताओं ने डॉ. अंबेडकर के विचारों की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए उन्हें आज के भारत के लिए मार्गदर्शक बताया।

कार्यक्रम संयोजन और संचालन में दिखा टीमवर्क

कार्यक्रम का कुशल मंच संचालन डॉ. अखिलेश कुमार त्रिपाठी द्वारा किया गया। आयोजन के संयोजक प्रो. आसिफ़ कमाल थे, जबकि समिति में डॉ. अखिलेश कुमार त्रिपाठी, मोहम्मद उजैर, मोहम्मद तारिक, मोहम्मद अदनान और डॉ. सिद्धार्थ सिंह ने सक्रिय भूमिका निभाई।

प्राचार्य ने सभी का आभार जताया

समापन सत्र में प्राचार्य प्रो. अफसर अली ने सभी आयोजकों, शिक्षकों, कर्मचारियों एवं छात्र-छात्राओं का आभार जताते हुए कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा,

“बाबा साहब अंबेडकर का जीवन संघर्ष, शिक्षा और समर्पण की मिसाल है। संविधान की आत्मा को समझना और उसका अनुसरण करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”

यह कार्यक्रम न केवल अंबेडकर जयंती के प्रति सम्मान का प्रतीक था, बल्कि युवाओं को संविधान और सामाजिक न्याय के प्रति जागरूक करने का भी सार्थक प्रयास रहा।

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