“जिंदगी भर गोलू के साथ ही रहूंगी” —थाने में बेटी के फैसले से पिता की बिगड़ी तबीयत, बबीना का मामला

📝 ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट

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झांसी के बबीना में प्रेम-विवाह का मामला भावनात्मक मोड़ पर पहुँचा, जहाँ बेटी के स्पष्ट निर्णय के सामने पिता असहज हो उठे। पुलिस के सामने दोनों पक्ष आए—कानून ने बालिग जोड़े का साथ दिया, परिवार की पीड़ा ने माहौल भारी कर दिया।


उत्तर प्रदेश के बबीना कस्बे से सामने आया यह मामला महज़ एक प्रेम-विवाह की कहानी नहीं, बल्कि परिवार, समाज और कानून के टकराव की संवेदनशील तस्वीर है। यहाँ रहने वाले वासुदेव दुबे ने अपनी बेटी नम्रता दुबे को पढ़ाया-लिखाया, आगे बढ़ने के अवसर दिए और जब बेटी 22 वर्ष की हुई तो उसके भविष्य की चिंता स्वाभाविक थी। परिवार ने विवाह की तैयारियाँ शुरू कीं, पर उन्हें यह अंदाज़ा नहीं था कि बेटी का दिल वर्षों पहले ही एक युवक को दे चुकी है—और वह रिश्ता अब कानूनन विवाह में बदल चुका है।

नम्रता दुबे की कहानी में प्रेम कोई अचानक उपजा भाव नहीं था। छह वर्षों से चले आ रहे इस रिश्ते में भरोसा, साथ और भविष्य की योजनाएँ थीं। नम्रता के अनुसार, उसके प्रेमी गोलू भार्गव उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही हैं और वर्तमान में 37वीं पीएसी वाहिनी से जुड़े हुए हैं। दोनों विवाह करना चाहते थे, लेकिन परिवार की असहमति दीवार बनकर खड़ी थी।

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परिवार की चिंता अपनी जगह थी। वे चाहते थे कि बेटी का विवाह सामाजिक सहमति और पारिवारिक निर्णय से हो। इसी क्रम में 3 दिसंबर को नम्रता की सगाई भी तय कर दी गई। मगर बेटी का मन कहीं और था। उसने बताया कि वह बीते एक साल से परिवार को मनाने की कोशिश कर रही थी, पर हर बार अस्वीकार मिला। अंततः उसने वह निर्णय लिया, जो उसके जीवन की दिशा बदलने वाला था।

4 दिसंबर को नम्रता अपने प्रेमी के साथ घर से चली गई। परिवार के लिए यह अचानक और पीड़ादायक क्षण था। बेटी के लापता होने से व्यथित पिता ने 6 दिसंबर को गोलू भार्गव के खिलाफ थाने में तहरीर दी, जिसमें अपहरण और अनहोनी की आशंका जताई गई। पुलिस ने मामला दर्ज कर जाँच शुरू की। परिवार का दर्द, अनिश्चितता और भय—तीनों एक साथ थे।

इसी बीच 8 दिसंबर को घटनाक्रम ने नया मोड़ लिया। गोलू भार्गव ने स्वयं थाना प्रभारी को वीडियो कॉल कर नम्रता को सुरक्षित बताया और यह जानकारी दी कि दोनों ने हिंदू रीति-रिवाजों से विवाह कर लिया है। इसके साथ ही उन्होंने प्रयागराज हाईकोर्ट में सुरक्षा की गुहार लगाते हुए याचिका दायर करने की बात भी कही। सूचना मिलते ही पुलिस ने दोनों पक्षों को थाने बुलाया।

बुधवार दोपहर थाने का माहौल बेहद भावुक था। एक ओर प्रेम-विवाह कर चुके पति-पत्नी, दूसरी ओर बेटी को वापस पाने की उम्मीद में बैठे माता-पिता। नम्रता ने पुलिस के सामने स्पष्ट शब्दों में कहा—“मैं बालिग हूँ, मैंने अपनी मर्जी से शादी की है और मैं जिंदगी भर गोलू के साथ ही रहूंगी।” उसका यह कथन कानूनन अधिकारों के अनुरूप था, लेकिन परिवार के लिए इसे स्वीकार करना आसान नहीं था।

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परिजनों ने बेटी को समझाने की हर संभव कोशिश की। माँ की आँखों में आँसू थे, भाइयों के चेहरे पर चिंता और पिता की आवाज़ में टूटन। वे चाहते थे कि नम्रता उनके साथ घर लौट आए, विवाह पर पुनर्विचार करे। मगर बेटी का निर्णय अडिग था। उसने कहा कि वह किसी दबाव में नहीं, बल्कि अपने विवेक और प्रेम के साथ खड़ी है।

बेटी का यह दृढ़ रुख वासुदेव दुबे के लिए असहनीय साबित हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, बातचीत के दौरान उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। कुछ क्षणों के लिए यह आशंका भी जगी कि उन्होंने ज़हर निगल लिया है। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए उन्हें तत्काल उपचार के लिए अस्पताल पहुँचाया, जहाँ से उन्हें मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया।

डॉक्टरों की जाँच में राहत की बात सामने आई—ज़हर जैसी कोई पुष्टि नहीं हुई। चिकित्सकों ने बताया कि पिता को पहले से उच्च रक्तचाप (बीपी) की समस्या थी, भावनात्मक तनाव के कारण बीपी अचानक बढ़ गया, जिससे उनकी तबीयत बिगड़ी। समय पर उपचार मिलने से स्थिति संभल गई।

इस बीच, कानून की प्रक्रिया अपने रास्ते पर थी। पुलिस ने दोनों को बालिग मानते हुए उनके वैवाहिक निर्णय को वैध माना। थाना प्रभारी तुलसीराम पांडेय ने स्पष्ट किया कि युवती ने अपनी इच्छा से विवाह किया है और पिता की तबीयत बीपी के कारण बिगड़ी थी। पुलिस की भूमिका यहाँ मध्यस्थ और कानून पालनकर्ता की रही—भावनाओं से अधिक तथ्यों पर आधारित।

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यह मामला समाज के उस द्वंद्व को उजागर करता है, जहाँ एक ओर प्रेम और व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, तो दूसरी ओर पारिवारिक अपेक्षाएँ और सामाजिक मान्यताएँ। कानून बालिगों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार देता है, लेकिन परिवारों के लिए यह बदलाव कई बार असहज और पीड़ादायक होता है।

नम्रता और गोलू का निर्णय अब उनके भविष्य की दिशा तय करेगा। वहीं, वासुदेव दुबे जैसे माता-पिता के लिए यह सीख भी है कि संवाद और समझदारी से ही ऐसे संवेदनशील मामलों का समाधान संभव है। कानून ने जो रास्ता दिखाया है, समाज को भी समय के साथ उसी के अनुरूप खुद को ढालना होगा।

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क्या नम्रता दुबे और गोलू भार्गव बालिग हैं?

हाँ, पुलिस के अनुसार दोनों बालिग हैं और उन्होंने अपनी मर्जी से विवाह किया है।

पिता वासुदेव दुबे की तबीयत क्यों बिगड़ी?

डॉक्टरों के मुताबिक उन्हें पहले से बीपी की समस्या थी। भावनात्मक तनाव के कारण बीपी बढ़ने से तबीयत बिगड़ी।

क्या इस मामले में कोई आपराधिक आरोप सिद्ध हुआ?

नहीं, युवती सुरक्षित पाई गई और दोनों के बालिग होने के कारण कोई आपराधिक आरोप सिद्ध नहीं हुआ।

पुलिस का अंतिम रुख क्या रहा?

पुलिस ने कानून के अनुसार बालिग जोड़े के फैसले को मान्यता दी और शांति व्यवस्था बनाए रखी।

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