📝 जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में दशकों से लंबित चले आ रहे चकबंदी मामलों के निस्तारण की दिशा में राज्य सरकार और चकबंदी विभाग ने एक ऐतिहासिक पहल करते हुए बड़ा कदम उठाया है। वर्षों से फाइलों में उलझे, अभिलेखों के अभाव और आपसी विवादों के कारण रुके पड़े चकबंदी कार्य अब आखिरकार अपने अंजाम तक पहुंचे हैं।
चकबंदी विभाग ने उप्र जोत चकबंदी अधिनियम के तहत सभी कानूनी और प्रशासनिक औपचारिकताएं पूरी करते हुए प्रदेश के 17 जिलों के 25 गांवों में चकबंदी प्रक्रिया को पूर्ण घोषित कर दिया है। इस फैसले से न केवल हजारों ग्रामीण परिवारों को सीधी राहत मिली है, बल्कि जमीन से जुड़े लंबे समय से चले आ रहे विवादों के समाधान का रास्ता भी साफ हुआ है।
ग्रामीणों के लिए क्यों अहम है चकबंदी की यह पहल
चकबंदी का मूल उद्देश्य कृषि भूमि का वैज्ञानिक और न्यायसंगत पुनर्विन्यास करना होता है, ताकि किसानों को बिखरी हुई जोतों के बजाय एक स्थान पर समेकित भूमि मिल सके। लेकिन उत्तर प्रदेश के कई जिलों में यह प्रक्रिया दशकों पहले शुरू तो हुई, परंतु विवाद, प्रशासनिक उदासीनता और अभिलेखों की गड़बड़ी के चलते अधूरी ही रह गई।
अब जब इन गांवों में चकबंदी को अंतिम रूप दे दिया गया है, तो ग्रामीणों को अपनी भूमि के स्पष्ट, वैध और अद्यतन अभिलेख प्राप्त हो सकेंगे। इससे न केवल खेती-बाड़ी में सहूलियत होगी, बल्कि जमीन की खरीद-बिक्री, बैंक ऋण और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में भी बाधाएं कम होंगी।
किन जिलों के गांवों में पूरी हुई चकबंदी
चकबंदी आयुक्त डॉ. हृषिकेश भास्कर याशोद के अनुसार जिन जिलों के गांवों में वर्षों से लंबित चकबंदी कार्यों को पूरा किया गया है, उनमें बस्ती, संतकबीरनगर, देवरिया, कानपुर नगर, प्रयागराज, उन्नाव, मऊ, आजमगढ़, लखीमपुर खीरी, कन्नौज, प्रतापगढ़, फतेहपुर, बरेली, मीरजापुर, सीतापुर, सुलतानपुर और सोनभद्र शामिल हैं।
इन सभी गांवों के मामलों में संबंधित जिलाधिकारियों द्वारा भेजे गए प्रस्तावों के आधार पर चकबंदी प्रक्रिया को अंतिम स्वीकृति दी गई। प्रशासनिक स्तर पर यह निर्णय इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि इससे वर्षों से लंबित मामलों का स्थायी समाधान सुनिश्चित हुआ।
आजमगढ़ के दो गांव : दशकों की प्रतीक्षा का अंत
आजमगढ़ जिला इस पूरी प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बनकर सामने आया है। जिले के गांव उबारपुर लखमीपुर में चकबंदी प्रक्रिया 30 दिसंबर 1967 को गजट की गई थी, लेकिन समय के साथ अभिलेखों के गायब हो जाने के कारण यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि अभिलेख न मिलने पर संबंधित मामले में एफआईआर तक दर्ज करानी पड़ी। कुल मिलाकर यह चकबंदी प्रक्रिया लगभग 58 वर्षों तक अधर में लटकी रही। अब प्रशासनिक हस्तक्षेप के बाद नए सिरे से अभिलेख तैयार कर इस प्रक्रिया को पूरा किया गया है।
इसी तरह गांव गहजी में चकबंदी की अधिसूचना 8 मई 1972 को जारी हुई थी। यहां ग्रामीणों के बीच गहरे विवाद और आपसी सहमति के अभाव में यह प्रक्रिया करीब 53 वर्षों तक अधूरी रही। मामला इतना उलझा कि एक पक्ष ने वर्ष 2016 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख भी किया।
हालांकि स्थगन समाप्त होने के बावजूद 2019 तक निस्तारण नहीं हो सका, जिससे प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई। अंततः चकबंदी आयुक्त के हस्तक्षेप और प्रशासनिक सक्रियता के चलते इस जटिल मामले को भी सुलझा लिया गया।
अधिकारियों की सख्ती और संवाद से निकला समाधान
चकबंदी आयुक्त डॉ. हृषिकेश भास्कर याशोद ने इन लंबित मामलों की व्यक्तिगत रूप से समीक्षा की और संबंधित जिलों के डीएम तथा चकबंदी अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए। अधिकारियों ने गांव-गांव जाकर ग्रामीणों से संवाद किया, आपसी विवादों को सुलझाया और सहमति के आधार पर नए अभिलेख तैयार किए।
इस पूरी प्रक्रिया में प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी पक्ष के अधिकारों का हनन न हो और चकबंदी का उद्देश्य वास्तविक रूप में पूरा हो। यही कारण है कि कई वर्षों से जमे हुए मामले अपेक्षाकृत कम समय में निपटाए जा सके।
प्रशासनिक और सामाजिक दृष्टि से क्या है इसका महत्व
सरकार के इस कदम को उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। इससे न केवल जमीन से जुड़े कानूनी विवादों में कमी आएगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक तनाव भी कम होगा।
साफ-सुथरे और अद्यतन भूमि अभिलेख ग्रामीण विकास योजनाओं की सफलता के लिए भी बेहद जरूरी हैं। चकबंदी पूरी होने से पंचायत स्तर पर विकास परियोजनाओं को लागू करने में भी आसानी होगी।
कुल मिलाकर, यह पहल प्रशासनिक इच्छाशक्ति, संवाद और सतत प्रयासों का उदाहरण है, जिसने दशकों पुराने लंबित मामलों को समाधान तक पहुंचाया और ग्रामीणों को उनका वैध अधिकार दिलाने का काम किया।
🔎 महत्वपूर्ण सवाल-जवाब
चकबंदी पूरी होने से ग्रामीणों को क्या लाभ होगा?
चकबंदी पूरी होने से ग्रामीणों को उनकी जमीन के स्पष्ट और वैध अभिलेख मिलते हैं, जिससे भूमि विवाद कम होते हैं और सरकारी योजनाओं का लाभ लेना आसान हो जाता है।
क्या वर्षों पुराने विवादों का भी समाधान संभव है?
हां, प्रशासनिक पहल, आपसी संवाद और कानूनी प्रक्रिया के जरिए दशकों पुराने विवादों का भी समाधान संभव है, जैसा कि हालिया मामलों में देखने को मिला।
क्या अन्य लंबित गांवों में भी जल्द चकबंदी पूरी होगी?
चकबंदी विभाग के अनुसार शेष लंबित मामलों की भी समीक्षा की जा रही है और चरणबद्ध तरीके से उन्हें पूरा करने की योजना है।






