
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट,
अरछा बरेठी गांव चित्रकूट जिले के राजापुर तहसील में स्थित है और आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। हर बरसात में पैसुनी नदी के कटान से अरछा बरेठी में भारी तबाही होती है। नदी का उग्र प्रवाह घरों, खेतों और मवेशियों को प्रभावित कर रहा है और अरछा बरेठी के सैकड़ों परिवार हर वर्ष बेघर हो जाते हैं।
युवा समाजसेवी की आवाज
युवा समाजसेवी शंकर यादव पिछले पांच वर्षों से अरछा बरेठी के लिए लगातार आवाज उठा रहे हैं। उन्होंने जिलाधिकारी, मुख्यमंत्री और जलशक्ति मंत्री को पत्र लिखकर पैसुनी नदी में पिचिंग व तटबंध निर्माण की माँग की है ताकि अरछा बरेठी बचाई जा सके। ग्रामीणों का कहना है कि बार-बार सर्वे होते हैं पर जमीन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
पैसुनी नदी का जमीनी असर
पैसुनी नदी का कटान रीढ़ की हड्डी की तरह अरछा बरेठी के किनारों को भेद रहा है। स्थानीय किसान बताते हैं कि खेतों की मिट्टी बहकर जा रही है और अरछा बरेठी की कृषि जमीन लगातार कम हो रही है। बरसात के दिनों में महिलाएँ और बच्चे सबसे अधिक असुरक्षित महसूस करते हैं।
समुदाय और सामाजिक प्रभाव
अरछा बरेठी में केवट, राजपूत, यादव, ठाकुर और वैश्य समुदाय के लोग रहते हैं। इन सभी पर बाढ़ का सीधा प्रभाव पड़ता है — घरों का नुकसान, पशुधन की क्षति और रोज़गार के अवसरों में कमी। अगर पैसुनी नदी के कटान पर तुरन्त नियंत्रण नहीं हुआ तो अरछा बरेठी की बस्ती और भी घट सकती है।
प्रशासनिक रुख और नाराज़गी
सिंचाई विभाग ने सर्वे किया, पर मुख्य अभियंता बेतवा झांसी सर्किल के अनुसार “इस क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति नहीं बनती”—जिस पर अरछा बरेठी के लोग असहमति जाहिर करते हैं। पूर्व प्रधानों और अन्य ग्रामीणों ने कई बार अधिकारियों से मुलाकात की, पर अरछा बरेठी को अभी तक ठोस राहत नहीं मिली।
जिलाधिकारी से अपेक्षाएँ
चित्रकूट के नवागंतुक जिलाधिकारी पुलकित गर्ग से अरछा बरेठी के निवासियों को उम्मीद है कि वे पैसुनी नदी के कटान पर त्वरित और दीर्घकालिक कदम उठाएंगे, जैसे पिचिंग, तटबंध निर्माण और सामुदायिक जागरूकता अभियान। अरछा बरेठी के लोग चाहते हैं कि योजनाएँ केवल कागज़ों तक सीमित न रहें बल्कि जमीन पर लागू हों।
समाधान के सुझाव
विशेषज्ञों का मानना है कि पैसुनी नदी में पिचिंग, ब्रेकर और तटबंध बनवाने के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर वनारोपण और जल-प्रबन्धन से अरछा बरेठी को बचाया जा सकता है। सामुदायिक भागीदारी और सरकारी योजनाओं का संयोजन अरछा बरेठी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।
स्थायी सुरक्षा के लिए क्या चाहिए?
स्थानीय सक्रियता और सरकारी सहयोग के बिना कोई भी राहत दीर्घकालिक नहीं हो सकती। इसीलिए स्थानीय लोग चाहते हैं कि बारिश के मौसम से पहले पैसुनी नदी की किनारों पर पिचिंग कराई जाए, तटबंध बनाए जाएं और कटान प्रभावित इलाकों में वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाए जाएँ। इससे न केवल कटान रोका जा सकता है बल्कि भूमि के कटाव से उपजी समस्याओं पर भी नियंत्रण होगा।
स्थानीयों की आवाज़ — साक्ष्य और बातें
पूर्व प्रधान, किसान और महिलाएँ बताते हैं कि लगभग हर बरसात के बाद उन्हें अपना घर पुनर्गठित करना पड़ता है; बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है और आर्थिक नुकसान बढ़ता है। ग्रामीणों ने कहा कि वे स्वयं भी पैसुनी नदी के किनारों पर अस्थायी रोकथाम करने की कोशिश करते हैं, पर इससे थोड़ा़ बहुत ही फर्क पड़ता है।
घायल चेतावनी
ग्रामीणों की चेतावनी स्पष्ट है — अगर पैसुनी नदी के कटान को नहीं रोका गया तो आने वाले वर्षों में अरछा बरेठी नक्शे से भी मिट सकता है। इसलिए अरछा बरेठी के निवासियों का कहना है कि अब समय कार्रवाई का है।
नागरिक कदम और मीडिया की भूमिका
स्थानीय समुदाय का दावा है कि समस्या को व्यापक रूप से उजागर करने पर ही प्रशासन सतर्क होगा। इसलिए वे मीडिया, सामाजिक संस्थाओं और नागरिक समूहों से समर्थन की गुहार लगा रहे हैं। स्थानीय युवा संगठनों ने आश्वासन दिया है कि वे शांति पूर्ण रूप से आवाज उठाते रहेंगे और आवश्यक कानूनी व प्रशासनिक कदम उठाएँगे।
रिपोर्ट: संजय सिंह राणा
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