संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट। 17 अक्तूबर को प्रकाश में आए कोषागार घोटाले में अब एसआईटी द्वारा तकनीकी व प्रशासकीय स्तर पर गंभीर पूछताछ की जा रही है। वरिष्ठ कोषाधिकारी रमेश सिंह से लंबी पूछताछ के साथ-साथ आरोपियों पर जमानत की याचिकाएँ और रिकवरी प्रक्रिया मामले की दूसरी बड़ी कड़ी बन चुकी है। इस समाचार में हमने जांच की परतें, प्रक्रियात्मक कमज़ोरियाँ, पेंशनरों पर प्रभाव और संभावित कदम विस्तार से रखे हैं।
घोटाले का संक्षेप और प्राथमिक कार्रवाइयाँ
स्थानीय प्रशासन व विभागीय स्रोतों के अनुसार 17 अक्तूबर को सामने आया कोषागार घोटाला कुल 43.13 करोड़ रुपये के परिमाण का है। प्रारम्भिक विभागीय जांच की रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए कई कर्मचारियों के विरुद्ध शिकायत दर्ज की गई और एटीओ विकास सचान तथा एकाउंटेट अशोक कुमार को निलंबित कर दिया गया। कुल मिलाकर इस मामले में 93 पेंशनरों के अलावा चार कोषागार विभाग के अधिकारी/कर्मचारी रिपोर्ट में शामिल बताए जा रहे हैं। मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक एटीओ संदीप की मृत्यु का भी उल्लेख रिपोर्ट में है।
एसआईटी की जांच — वरिष्ठ कोषाधिकारी से क्या पूछा गया?
25 दिनों तक चली प्रारम्भिक पड़ताल के बाद एसआईटी ने वरिष्ठ कोषाधिकारी रमेश सिंह को बुधवार को तलब किया। एसआईटी प्रभारी अरविंद वर्मा व जांच अधिकारी अजीत पांडेय ने उनसे लगभग तीन घंटे तक विस्तृत और तकनीकी सवाल पूछे। मुख्य प्रश्न इस प्रकार थे: पेंशन राशि किस प्रक्रिया से पास होकर पेंशनर के खाते में जाती है; किन-किन तालिकाओं (tables) और फ़ील्ड्स से भुगतान जाता है; भुगतान एप्लिकेशन में किस तरह का लॉग/ऑडिट ट्रेल रहता है; और कौन किस स्तर पर वेरिफिकेशन करता है।
रमेश सिंह ने इन सवालों का चरण-दर-चरण डेमो देते हुए बताया कि कैसे फाइलें विभाग के तीन अलग-अलग हिस्सों से होकर गुजरती हैं और नियमित ऑडिट होता है। लेकिन एसआईटी ने कहा कि जिन तरीकों से भुगतान और रिकॉर्डिंग की जाँच की जाती है, उनमें छिपे हुए एप-लॉग्स या थर्ड-पार्टी मॉडिफिकेशन्स के चिह्न मिल सकते हैं — और इन्हीं विसंगतियों की जाँच के लिए अतिरिक्त दस्तावेजों और तकनीकी स्पष्टीकरण की मांग की गई है।
एसआईटी की असंतुष्टि और दोबारा तलब
तीन घंटे की पूछताछ के दौरान टीम संतुष्ट नहीं दिखी और वरिष्ठ कोषाधिकारी से कहा गया कि वे कुछ अतिरिक्त कागजात् व डिजिटल लॉग्स के साथ दो दिन बाद पुनः उपस्थिति दें। इसका अर्थ है कि जांच अभी गहन स्तर पर जारी है और टीम तकनीकी सबूतों पर विशेष ध्यान दे रही है।
कानूनी दिशा — जमानत याचिकाएँ और हाईकोर्ट स्टे
मामले का कानूनिक पहलू भी सक्रिय है। जेल में बंद कुछ पेंशनरों व आरोपियों ने जमानत के लिए याचिका दायर की है। निर्मला देवी के मामले में हाईकोर्ट से गिरफ्तारी पर अग्रिम स्टे से सम्बंधित कागजात फिर मांगे गए हैं। अधिवक्ता आशीष तिवारी ने बताया कि अभी जमानत नहीं मिली है और अदालत ने सुनवाई की तिथियाँ निर्धारित कर दी हैं। इसके साथ ही रिटायर्ड एटीओ अवधेश प्रताप सिंह ने हाईकोर्ट से गिरफ्तारी पर स्टे प्राप्त किया हुआ है, इसलिए उनकी गिरफ्तारी फिलहाल रुकी हुई है।
रिकवरी की ताज़ा स्थिति
रिकवरी के प्रयासों में शुरुआती दिनों की रफ्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ती दिख रही है। विभागीय स्रोतों के अनुसार अब तक कुल 3,60,74,016 रुपये की रिकवरी दर्ज की गई है। सामने आया एक ताज़ा उदाहरण यह है कि सात दिन के अंतराल के बाद सावित्रीदेवी के खाते में 2,20,000 रुपये जमा किए गए। हालांकि यह सकारात्मक कदम है, फिर भी कुल आरोपित राशि के मुकाबले यह मामूली दिखता है और व्यापक रिकवरी की आवश्यकता बरकरार है।
टेक्निकल और प्रक्रियात्मक कमज़ोरियाँ — एसआईटी की चिंताएँ
जांच टीम ने जिन तकनीकी मुद्दों पर विशेष प्रश्न उठाए वे हैं: भुगतान एप्लिकेशन में अनधिकृत परिवर्तन, लॉग का अभाव या अधूरा ऑडिट ट्रेल, फ़ाइल-फ्लो में दोष, और डबल-एंट्री / मैनुअल ओवरराइट की सम्भावना। जांचकर्ता मानते हैं कि कुछ मामलों में भुगतान प्रक्रिया में कस्टम स्क्रिप्ट्स या थर्ड-पार्टी टूल्स का प्रयोग कर के वास्तविक वेरिफिकेशन को छिपाया गया होगा। इन मुद्दों की जांच के लिए डिजिटल फॉरेंसिक और लॉग-रिव्यू की आवश्यकता होगी।
जिम्मेदार इकाइयाँ कौन-कौन?
प्रारम्भिक रिपोर्ट में पेंशनर सूची, फाइनेंस टीम, एटीओ, एकाउंटेंट और वरिष्ठ कोषाधिकारी के नाम प्रमुख रूप से सामने आए हैं। प्रशासन ने एटीओ विकास सचान व एकाउंटेट अशोक कुमार को निलंबित कर दिया — यह कदम बताता है कि विभाग ने जवाबदेही तय करने की दिशा में त्वरित कार्रवाई की है।
पेंशनरों पर प्रभाव और लोक विश्वास
सार्वजनिक धन से जुड़ा यह मामला सीधे तौर पर पेंशनरों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी पर असर डालता है — पेंशन मिलने में देरी या भुगतान न होना वृद्ध नागरिकों की आर्थिक निर्भरता को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, ऐसे मामलों से विभाग और प्रशासन के प्रति लोक-भरोसा भी चोटिल होता है। इसलिए यह ज़रूरी है कि जांच पारदर्शी, निष्पक्ष और समयबद्ध तरीके से हो, ताकि न केवल दोषियों पर कार्रवाई हो बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रणालीगत सुधार हो सकें।
आगे की प्रक्रिया और संभावित परिणाम
एसआईटी के अनुरोधों के अनुसार अतिरिक्त दस्तावेज और टेक्निकल लॉग मिलते ही आगे की पूछताछ और गिरफ्तारी/अभियोग की प्रक्रिया तेज हो सकती है। कोर्ट में चल रहीं जमानत याचिकाओं के नतीजे भी मामले की दिशा तय करेंगे। साथ ही विस्तृत डिजिटल फॉरेंसिक रिपोर्ट, थर्ड-पार्टी ऑडिट और प्रशासनिक सुधारों की सिफारिशें इस पूरे मामले के समापन व पुनर्रचना के प्रमुख हिस्से होंगी।
पारदर्शिता व सुधार अनिवार्य
यह मामला यह स्पष्ट करता है कि देरी और पारदर्शिता की कमी सार्वजनिक तंत्रों में किस हद तक हानि पहुँचा सकती है। दोषियों की उचित कानूनी कार्रवाई और प्रभावी रिकवरी के साथ-साथ प्रक्रियात्मक सुधार (मजबूत ऑडिट ट्रेल, एप-एक्सेस कंट्रोल, समय-समय पर थर्ड-पार्टी सिक्योरिटी रिव्यू) करना आवश्यक है। यह तभी संभव होगा जब जांच निष्पक्ष, डिटेल्ड और साफ-सुथरी तरीके से पूरी हो।
रिपोर्ट: संजय सिंह राणा | स्थान: चित्रकूट | तिथि: 17 अक्तूबर (जांच प्रचलित)