
पं. छन्नूलाल मिश्रा का निधन और उठ खड़ा हुआ विवाद
संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट: भारत रत्न की दौड़ में कभी शामिल रहे पद्म विभूषण पं. छन्नूलाल मिश्रा का निधन 2 अक्टूबर 2025 को हुआ। वे बनारस की संगीत परंपरा के महान स्तंभ और काशी की पहचान माने जाते थे। लेकिन उनके निधन के बाद जो हुआ, उसने संगीत प्रेमियों और भक्तों को स्तब्ध कर दिया।
परिवार के भीतर विवाद इस कदर बढ़ा कि अब पं. छन्नूलाल मिश्रा की तेरहवीं भी अलग-अलग की जा रही है।
रामकुमार मिश्रा और नम्रता मिश्रा में मतभेद
पं. मिश्रा के बेटे रामकुमार मिश्रा और बेटी नम्रता मिश्रा के बीच अंतिम संस्कार के वक्त से ही मतभेद की खबरें सामने आई थीं।
रामकुमार मिश्रा ने अपनी बहन पर संपत्ति और प्रचार से जुड़े आरोप लगाए, जबकि नम्रता मिश्रा ने कहा कि “भाई ने पिता के संस्कारों और परंपराओं की बजाय अपनी सुविधाओं को प्राथमिकता दी।”
स्थानीय लोगों का कहना है कि नम्रता मिश्रा अपने पिता पं. छन्नूलाल मिश्रा की निरंतर सेवा में रहीं और उनकी अंतिम घड़ी तक साथ थीं। इस वजह से उनके समर्थकों का मानना है कि पिता की तेरहवीं का आयोजन वे स्वयं करें, यह उनका अधिकार है।
अलग-अलग तेरहवीं का निर्णय
अब दोनों भाई-बहन ने अलग-अलग तेरहवीं करने का निर्णय लिया है।
- रामकुमार मिश्रा द्वारा 14 अक्टूबर को दुर्गाकुंड स्थित अंध विद्यालय में अपने पिता पं. छन्नूलाल मिश्रा की तेरहवीं आयोजित की जाएगी।
- नम्रता मिश्रा उसी दिन रोहनिया स्थित पैतृक आवास पर तेरहवीं संस्कार करवाएंगी।
दोनों पक्षों ने अलग-अलग तेरहवीं के कार्ड भी बांटे हैं, जिससे यह पारिवारिक विवाद अब सार्वजनिक हो गया है।
काशी के विद्वानों की प्रतिक्रिया: “यह शास्त्र-संवत नहीं”
काशी की धार्मिक परंपराओं और संस्कारों से भलीभांति परिचित विद्वानों ने इस विवाद पर अपनी चिंता व्यक्त की है।
धर्मशास्त्रों के ज्ञाता पं. विश्वकांताचार्य ने कहा—
“मां गंगा की कृपा से पं. छन्नूलाल मिश्रा की आत्मा को शांति मिले, यही हमारी प्रार्थना है। लेकिन अलग-अलग तेरहवीं करना आत्मा के लिए कष्टदायक है और यह शास्त्र-संवत नहीं है। एक ही आत्मा के लिए दो अलग संस्कार करना परंपरागत रूप से अनुचित माना गया है।”
काशी के अन्य आचार्यों ने भी कहा कि तेरहवीं संस्कार का उद्देश्य आत्मा को मोक्ष की ओर अग्रसर करना होता है, न कि परिजनों के बीच विभाजन को प्रदर्शित करना।
काशी में उठे सवाल : परंपरा बनाम आधुनिकता
पं. छन्नूलाल मिश्रा जैसे विद्वान, जिन्होंने पूरी जिंदगी संस्कार, परंपरा और संगीत साधना को समर्पित किया, उनकी मृत्यु के बाद यह विभाजन काशीवासियों के लिए भी भावनात्मक झटका है।
काशी की गलियों में अब एक ही चर्चा है—“जिसने पूरी उम्र एकता और भक्ति का संदेश दिया, उसके संस्कार में विभाजन क्यों?”
धार्मिक संगठनों का कहना है कि यह सिर्फ एक पारिवारिक विवाद नहीं, बल्कि भारतीय संस्कारों की मूल भावना पर चोट है।
कई संगीत प्रेमियों ने भी सोशल मीडिया पर लिखा—“पं. छन्नूलाल मिश्रा का संगीत तो अमर रहेगा, लेकिन परिवार का यह बिखराव दुखद है।”
पं. छन्नूलाल मिश्रा की विरासत
पद्म विभूषण पं. छन्नूलाल मिश्रा का जन्म 1936 में हुआ था। वे बनारस घराने के शास्त्रीय संगीत के सबसे प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों में से एक थे।
ठुमरी, दादरा, चैती, कजरी और भजन गायन में उनकी आवाज़ का जादू आज भी गूंजता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर संगीत जगत की दिग्गज हस्तियों तक, हर किसी ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया।
उनका जीवन भारतीय संगीत परंपरा का जीवंत उदाहरण रहा—जहां सुर, साधना और संस्कार एकाकार थे।
संपत्ति और परंपरा के बीच उलझा परिवार
सूत्रों के मुताबिक, विवाद की जड़ संपत्ति और प्रतिष्ठा से जुड़ी है।
कहा जा रहा है कि रामकुमार मिश्रा और नम्रता मिश्रा दोनों ही पं. छन्नूलाल मिश्रा के संगीत संस्थान और निजी संपत्ति से संबंधित फैसलों पर असहमति जता रहे हैं।
इस मतभेद ने ही तेरहवीं विवाद को जन्म दिया, जो अब पूरे काशी में चर्चा का विषय बना हुआ है।
तेरहवीं विवाद पर जनता की राय
काशीवासियों का कहना है कि पं. छन्नूलाल मिश्रा जैसे महान व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए परिवार को एकजुट होना चाहिए था।
अलग-अलग तेरहवीं कराना परंपराओं के अपमान के समान है।
वहीं कुछ लोग इसे “परिवार का निजी मामला” मानते हुए कहते हैं कि “सत्य तो आत्मा जानती है, जनता को नहीं।”
संगीत का स्वर अमर, पर संस्कारों पर सवाल
पं. छन्नूलाल मिश्रा का संगीत, उनका योगदान और उनका संस्कार अमर रहेगा। लेकिन उनके निधन के बाद परिवार में उपजा यह तेरहवीं विवाद एक ऐसे समाज के लिए संकेत है जो आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन खो रहा है।
काशी के विद्वान और भक्तजन यही कामना कर रहे हैं कि इस विवाद का जल्द समाधान हो और पं. छन्नूलाल मिश्रा की आत्मा को वह शांति मिले जिसकी उन्होंने पूरी जिंदगी साधना की थी।