
बन्थरा (लखनऊ) — ग्राम पंचायत न\u00edवा में आज रात के अंधेरे का फायदा उठाकर सक्रिय अवैध मिट्टी खनन माफियाओं ने पोकलैंड मशीन के माध्यम से रात 7:30 बजे के आसपास खुलेआम खनन शुरू कर दिया। स्थानीय लोगों और मीडिया टीम के अनुसार यह कार्य ग्राम प्रधान के कुछ हितैषियों की मौजूदगी में और उनके कथित संरक्षण में चल रहा था।
घटना की गवाही देने वाले ग्रामीणों का कहना है कि मिट्टी खनन माफिया अपने साथ 10-20 सहयोगियों के साथ आये थे और जमीन को क्षत-विक्षत करने का काम तेज गति से जारी रखा गया। घटनास्थल पर पहुंचे मीडिया कर्मियों ने जब पूछताछ की तो माफियाओं ने अभद्रता की और कुछ ग्रामीणों के इशारे पर उन्होंने मीडिया कर्मियों को 500-1000 रुपये की पेशकश कर चुप कराने का प्रयास भी किया। इस प्रस्ताव को मीडिया टीम ने ठुकरा दिया, जिसके बाद खुलेआम इस सत्यापन के अनुरोध को भी टाला गया।
स्थानीय निवासी बताते हैं कि ग्राम प्रधान के कुछ कारिंदे एवं क्षेत्रीय लेखपाल की मिलीभगत के आरोप पहले से ही चर्चा का विषय रहे हैं। पिछले वर्षों में भी इस तरह के सैकड़ों आरोप शासन प्रशासन के संज्ञान में आए हैं, परन्तु राजस्व विभाग के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत के चलते जांच लंबित रही या फिर आधी-अधूरी रही। आज की घटना इससे अलग नहीं दिखी — ऐसा प्रतित होता है कि सत्ता के कुछ स्थानीय कद्दावरों द्वारा अवैध व्यापारिक गतिविधियों को संरक्षण दिया जा रहा है।
मामले की समयरेखा और प्रशासन को सूचित करने का प्रयास
दिनांक 11/12/2025 को शाम लगभग 7:30 बजे की घटना की सूचना मिलने पर संवाददाता और स्थानीय ग्रामीणों ने तुरन्त थाना बन्थरा के थाना प्रभारी को फोन किया — कॉल दो बार करने के बावजूद फोन रिसीव नहीं हुआ। इसके बाद हलका इन्चार्ज श्रीमान एसआई हरेंद्र को सूचना दी गई। उपजिलाधिकारी सरोजिनी नगर व तहसीलदार को भी सूचित करने का प्रयास किया गया, परन्तु उनकी ओर से कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला। यह निष्क्रियता स्थानीय लोगों में रोष का कारण बनी है।
ग्रामसभा और राजस्व विभाग पर आरोप
स्थानीय लोगों का आरोप है कि ग्राम पंचायत न\u00edवा की सरकारी भूमि का बड़े पैमाने पर घोर अनाचार हुआ है। कुछ जमीनों का मूल्यांकन आज अनुमानतः करोडों में है — ग्रामीणों का दावा है कि नज़दीकी सरकारी भूमि लगभग 100 करोड़ से अधिक के मूल्य की बताई जाती है, जिसे भूमाफियाओं के हवाले कर दिया गया। इनके अनुसार लेखपाल, ग्राम प्रधान और राजस्व के कुछ भ्रष्ट अधिकारी मिलकर जमीन की नीलामी और बिक्री करके मुनाफा बाँटते हैं।
ग्रामीण यह बताने से भी नहीं चूकते कि शिकायत के बावजूद भ्रष्ट अधिकारियों के कारण कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती — शिकायतें दर्ज तो कर दी जाती हैं पर राष्ट्रीयकृत रवैया और सिस्टमिक भ्रष्टाचार के कारण मुकदमों की पैरवी या तहकीकात ढंग से नहीं होती।
समाज पर प्रभाव और स्थानीय जीवन पर असर
खनन का यह कार्य न केवल कृषि योग्य जमीन को बर्बाद कर रहा है, बल्कि नदियों और नालियों के किनारे जलस्रोतों को भी प्रभावित कर रहा है। मिट्टी की कटाई से बाढ़ का खतरा बढ़ता है, पेयजल स्तर प्रभावित होता है और प्राकृतिक आवासों का क्षरण होता है। इससे छोटे किसान, मरम्मत और घर निर्माण करने वाले ग्रामीण तथा आगामी पीढि़यों की जमीन संवर्धन क्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।
कानूनी पक्ष और आवश्यक कार्रवाई
अवैध खनन और सरकारी भूमि के अधिग्रहण के मामलों में संबंधित विभागों—पुलिस, राजस्व, और राज्य खनन विभाग—को मिलकर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए। घटनास्थल पर पोकलैंड और अन्य मशीनरी जब्त कर आवश्यक प्रमाण जुटाये जाने चाहिये। साथ ही स्थानीय लेखपालों और ग्राम प्रधानों की भूमिका की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। जो अधिकारी और किन लोगोंने संरक्षण दिया, उन पर भी कड़ी कार्रवाई आवश्यक है ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं पर अंकुश लग सके।
मौजूदा समय में जरूरत है कि उत्तर प्रदेश शासन तथा स्थानीय प्रशासन स्वतः संज्ञान लेकर निष्पक्ष जांच समिति गठित करे और पीड़ित परिवारों को कानूनी सहायता मुहैया कराई जाए। साथ ही शिकायतकर्ता की सुरक्षा का पूरा प्रबंध किया जाना चाहिए, क्योंकि भय के माहौल में लोग न्याय के लिए आगे आने में हिचकिचाते हैं।
स्थानीय लोगों की आवाज़ — क्या बदलेगा?
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार उच्च अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के समक्ष यह मामला उठाया, परन्तु इस शासन में आर्थिक और राजनीतिक दबदबे ने आम जनता की आवाज़ को दबा दिया है। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो ऐसे कांडों से क्षेत्र की जमीन और परंपरागत जीवनशैली हमेशा के लिए प्रभावित हो सकती है।
हमारी टीम ने संबंधित अधिकारीयों को सूचना दी — परन्तु रिस्पॉन्स न मिलने की स्थिति चिंताजनक है। अब यह देखना होगा कि स्थानीय प्रशासन और शासन-तंत्र इस गंभीर आरोप पर क्या कार्रवाई करते हैं और किन प्रमुख प्रतिकूल तत्वों पर संदेह की छानबीन होती है।
पढ़ने वालों के लिए कार्रवाई के सुझाव
- घटना की शिकायत स्थानीय पुलिस स्टेशन (ठाना बन्थरा) में लिखित रूप में दर्ज करायें और आरटीआई के माध्यम से कार्रवाई की स्टेटस रिपोर्ट मागें।
- उपजिलाधिकारी/तहसीलदार कार्यालय में भी कड़ी कार्रवाई के लिए पत्राचार करें और नोटिस की कॉपी सुरक्षित रखें।
- यदि स्थानीय स्तर पर सुनवाई न हो तो मानवाधिकार आयोग या राज्य लोक शिकायत कार्यालय से संपर्क करें।
- घटना स्थल की तस्वीरें, वीडियो और गवाहों के बयान सुरक्षित रखें — ये साक्ष्य आगे की कानूनी कार्रवाई में उपयोगी होंगे।
क्लिकेबल सवाल-जवाब (FAQ)
1. क्या यह अवैध खनन है?
स्थानीय दावों और घटनास्थल पर पोकलैंड के माध्यम से बिना दिखाये गये किसी स्पष्ट अनुमति के खनन को अवैध माना जा सकता है। परन्तु कानूनी नतीजा तभी संभव है जब प्रशासन द्वारा औपचारिक जांच कर अनुमति के कागजात पेश न किये जाएँ।
2. मैंने शिकायत दर्ज कराई — क्या होगा?
शिकायत दर्ज होने के बाद पुलिस व राजस्व विभाग की तरफ से जांच होनी चाहिए। यदि जांच टलती है, तो शिकायतकर्ताओं को उच्च अधिकारियों, मानवाधिकार आयोग या लोक शिकायत पोर्टल पर अपील कर आगे की कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी।
3. स्थानीय प्रशासन से मदद न मिले तो क्या करें?
ऐसी स्थिति में नागरिक संगठन, स्थानीय मीडिया, मानवाधिकार आयोग और न्यायालय का सहारा लिया जा सकता है। साक्ष्य-सबूत के साथ पब्लिक फाइलिंग और PIL (जनहित याचिका) दायर करने का विकल्प भी उपलब्ध है।
4. क्या मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है?
बिलकुल — मीडिया द्वारा खुलासे और सतर्क रिपोर्टिंग से दबाव बनता है और प्रशासन को जवाबदेह ठहराने में मदद मिलती है। इसलिए स्थानीय मीडिया और रिपोर्टर का सुरक्षा और स्वतंत्रता बहुत आवश्यक है।
कथन: कमलेश कुमार चौधरी — स्थानीय रिपोर्टर, बन्थरा (लखनऊ)