भरतपुर जिले के डीग–कामां क्षेत्र की राजनीति इस समय जबरदस्त उतार–चढ़ाव के दौर से गुजर रही है।
भाजपा का असर लगातार बढ़ रहा है, लेकिन दूसरी तरफ पंचायत स्तर पर सत्ता संघर्ष, प्रशासन के साथ तनाव, विकास कार्यों की सुस्ती और किसानों–महिलाओं की नाराज़गी एक असंतुलित राजनीतिक माहौल तैयार कर रही है।
यहाँ की सियासत अब सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि लोगों की भावनाओं, संघर्षों और जमीनी मुद्दों की असली परीक्षा बन चुकी है।
📌 भाजपा का बढ़ता राजनीतिक प्रभाव
डीग–कामां क्षेत्र में भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनावों के बाद से अपनी शक्ति और संगठन को काफी विस्तारित किया है।
कामां से विधायक नौक्षम चौधरी और डीग–कुम्हेर से विधायक डॉ. शैलेश सिंह क्षेत्रीय जनता से सीधा संवाद बढ़ाने में लगातार जुटे हुए हैं।
हाल ही में डीग में आयोजित मंडल बैठक में बूथ स्तर तक पार्टी को मजबूत करने, रथ यात्रा, रक्तदान शिविर और अभियान आधारित कार्यक्रमों को तेज़ करने की रणनीति तय की गई।
यह साफ संकेत है कि भाजपा 2028 के चुनावों को ध्यान में रखकर अभी से जमीन तैयार कर रही है।
📌 पंचायत राजनीति में खींचतान और असंतोष
डीग–कामां का पंचायत ढांचा हमेशा से राजनीतिक हलचलों का केंद्र रहा है।
लेकिन इस बार बात और जटिल हो गई है। कई स्थानों पर भाजपा समर्थित उम्मीदवार उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर सके, जिससे स्थानीय असंतोष खुलकर सामने आया।
कामां की विधायक नौक्षम चौधरी द्वारा बैठकों में नाराज़गी जताना यह दर्शाता है कि संगठन और基层 नेताओं के बीच संतुलन बिगड़ रहा है।

यह तनाव भविष्य में विधानसभा की राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है।
📌 प्रशासन बनाम जनप्रतिनिधि : माहौल हुआ तनावपूर्ण
उचचैन SDM और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच विवाद ने क्षेत्र की राजनीति को और गरम कर दिया है।
विधायक जगत सिंह द्वारा SDM को हटाने की मांग और प्रशासनिक कार्यों को लेकर बढ़ती शिकायतों ने सरकारी व्यवस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जनता का कहना है कि अधिकारी–नेता तालमेल की कमी का सीधे असर सरकारी कामकाज पर पड़ रहा है।
📌 विकास कार्यों की घोषणाएँ, लेकिन जमीनी सच्चाई अलग
सरकार ने भरतपुर जिले के लिए 150 करोड़ रुपये की सड़क परियोजनाओं समेत कई बड़े विकास कार्यों की घोषणा की है।
लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की वास्तविक स्थिति इससे उलट है—सड़कों की खराब हालत, पानी की किल्लत, बिजली कटौती और सिंचाई समस्याएँ अभी भी जस की तस बनी हुई हैं।
घोषणाएँ बड़ी हैं, पर जनता सवाल पूछ रही है कि सुधार कब दिखेगा?
📌 किसानों और महिलाओं की नाराज़गी—सियासत का असली दबाव बिंदु
डीग–कामां में किसी भी चुनाव का सबसे अहम केंद्र किसान और महिलाएँ रही हैं।
DAP खाद की कमी, लम्बी कतारें, सिंचाई संकट, बिजली कटौती, फसल बीमा और MSP को लेकर नाराज़गी तेजी से बढ़ रही है।
महिलाओं को खाद की लाइनों में खड़ा देख जनता में भारी असंतोष है—जिसका सीधा असर सियासत पर पड़ रहा है।
📌 भविष्य की राजनीति—कहां बदलेगा खेल?
आने वाले समय में डीग–कामां की राजनीति तीन बड़े मोड़ तय कर सकते हैं—
- भाजपा का संगठन और चुनावी तैयारी
- किसानों–महिलाओं का असंतोष और पंचायतों में चल रहा सत्ता संघर्ष
- जातीय समीकरण—जाट, गुर्जर, ओबीसी और मुस्लिम वोट
अगर भाजपा जमीनी मुद्दों को नहीं संभाल पाती तो विरोधी दल और स्थानीय असंतुष्ट नेता मजबूत विकल्प बन सकते हैं।
लेकिन अगर विकास कार्यों की गति तेज की जाती है तो भाजपा की पकड़ और मजबूत हो सकती है।
🔻 निष्कर्ष—डीग–कामां की राजनीति उबल रही है
यह क्षेत्र इस समय “सत्ता बनाम असंतोष” के निर्णायक दौर में खड़ा है।
एक तरफ भाजपा की मजबूत पकड़ और सक्रिय संगठन है, तो दूसरी तरफ किसानों, महिलाओं और पंचायतों के असंतोष का बढ़ता दबाव है।
जिसने जनता की असली नब्ज़ पकड़ी—वही आने वाले चुनावों में जीत दर्ज करेगा।
क्लिकेबल सवाल–जवाब
डीग–कामां में भाजपा का आधार क्यों बढ़ रहा है?
भाजपा बूथ स्तर तक संगठन मजबूत कर रही है, विधायक लगातार संपर्क में हैं और अगला चुनाव लक्ष्य बनाकर काम किया जा रहा है।
किसान और महिलाएँ सरकार से नाराज़ क्यों हैं?
DAP खाद की कमी, सिंचाई–बिजली संकट और फसल बीमा जैसे मुद्दों को लेकर असंतोष बढ़ा है।
क्या पंचायत राजनीति विधानसभा चुनाव को प्रभावित करेगी?
हाँ, पंचायत स्तर का असंतोष और गुटबाज़ी भविष्य के चुनावी नतीजों को सीधा प्रभावित कर सकती है।






