
नहरी गौशाला में हालात ऐसे हैं कि वहां रहने वाले कई गौवंश भूख, प्यास और इलाज की कमी से तड़प-तड़प कर मरते जा रहे हैं। बांदा जिले की नहरी गौशाला सरकारी घोषणाओं और योजनाओं के दावों के बावजूद जमीन पर बुरी तरह विफल नज़र आ रही है।
🐂 नहरी गौशाला की दुर्दशा उजागर — भूख और इलाज के अभाव में मर रहे बेजुबान गौवंश
बांदा जिले के नरैनी ब्लॉक की नहरी गौशाला आज सरकारी उदासीनता और अव्यवस्थाओं की जीती-जागती मिसाल बन चुकी है। जहां एक ओर सरकार “गौ संरक्षण योजना” की बातें करती है, वहीं नहरी गौशाला में भूखे और बीमार गौवंश का मंजर आम लोगों की संवेदना को झकझोर देता है।
शनिवार को जब ग्रामीणों ने नहरी गौशाला का दौरा किया तो वहां चार केयरटेकर मौजूद मिले, पर वे केवल औपचारिकता निभा रहे थे। मौके पर एक मृत गौवंश मिली जिसकी आंखें कौवों ने नोच ली थीं, जबकि सात से अधिक गौवंश घायल और बीमार हालत में पायी गयी।
🐄 सूखा भूसा ही बना भोजन — नहीं मिल रही हरियाली या चारा-पानी की व्यवस्था
गौशाला में भोजन के रूप में केवल सूखा भूसा डाला जाता है। नहरी गौशाला में हरा चारा और नियमित पानी की आपूर्ति नहीं है, और बीमार पशुओं को आवश्यक इलाज तक नहीं मिल रहा। स्थानीय लोग बताते हैं कि यह स्थिति कई महीनों से विद्यमान है पर प्रशासन कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा।
जब ग्राम प्रधान के पुत्र मौके पर पहुँचे तो उन्होंने मृत गौवंश का अंतिम संस्कार कराया और पशु चिकित्सक को बुलवाया — मगर इलाज के बाद भी नहरी गौशाला की मूल समस्याएं जस की तस बनी रहीं: भूख, गंदगी और अनुपस्थित व्यवस्थापन।
⚠️ लापरवाही का स्थायी ठिकाना बन चुकी नहरी गौशाला
ग्रामीणों का आरोप है कि नहरी गौशाला में नियुक्त चार केयरटेकर केवल उपस्थिति दर्ज कराते हैं; उनका वास्तविक ध्यान गौवंश की देखभाल पर नहीं है। साफ-सफाई की कमी, छांव और बारिश से बचने की व्यवस्था का अभाव, व पानी की टंकियों का सूखना — ये सभी संकेत हैं कि नहरी गौशाला चलाने में गंभीर अव्यवस्था है।
📋 शासन की गौ संरक्षण योजना पर सवाल
प्रदेश सरकार की मुख्यमंत्री गौसंवर्धन योजना अक्सर कागजों पर सुगठित दिखती है, पर नहरी गौशाला जैसा उदाहरण दर्शाता है कि जमीनी क्रियान्वयन कमजोर है। हर गौशाला के लिए नियुक्त नोडल अधिकारी होने के बावजूद नहरी गौशाला पर केवल औपचारिक निरीक्षण होते हैं, जबकि वास्तविक समस्या जस की तस बनी रहती है।
🗣️ ग्रामीणों की मांग : नहरी गौशाला की हो निष्पक्ष जांच
स्थानीय ग्रामीणों ने जिलाधिकारी बांदा से तत्काल कदम उठाने की मांग की है। वे चाहते हैं कि नहरी गौशाला की वास्तविक स्थिति का निरीक्षण कर मृत और बीमार गौवंशों का आँकलन किया जाए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि नहरी गौशाला में सुधार नहीं हुआ तो वे सामूहिक प्रदर्शन करेंगे।
“सरकार अगर सच में गौसेवा के लिए प्रतिबद्ध है, तो नहरी गौशाला में भूख और बीमारी से मरते गौवंशों की पुकार सुने।”
📉 अव्यवस्था और भ्रष्टाचार ने बिगाड़ा सिस्टम
स्थानीय सूत्र बताते हैं कि नहरी गौशाला को हर महीने सरकारी अनुदान मिलता है, पर धन का उपयोग आंख बंद करके किया जा रहा है — अक्सर भूसा और देखभाल के नाम पर फर्जी बिल दिखाकर। असल में न तो पर्याप्त चारा, न चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। कुछ ग्रामीणों का आरोप है कि कई बार मृत गौवंश को बिना सूचना दफना दिया जाता है ताकि आंकड़े कम दिखें। ये बातें साफ़ करती हैं कि नहरी गौशाला केवल रिकॉर्ड पर जीवित है, हक़ीक़त में वह गौवध जैसा मौन अत्याचार झेल रही है।
💬 स्थानीय प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल
जब नहरी गौशाला के हालात की सूचना अधिकारियों तक पहुँची तो उन्होंने “जांच कर रिपोर्ट भेजने” की औपचारिक बात कही, पर कोई ठोस कदम नहीं आया। बांदा के ग्रामीण इस चुप्पी से आक्रोशित हैं और सोशल मीडिया पर #NehriGaushala तथा #SaveCowsInBanda हैशटैग के साथ आवाज़ उठाने लगे हैं।
🐮 नहरी गौशाला की सच्चाई उजागर करने की जरूरत
आज जब गौसेवा को राष्ट्रधर्म बताया जा रहा है, तब नहरी गौशाला जैसी तस्वीरें पूरे तंत्र पर सवाल खड़े करती हैं। ज़रूरत है कि शासन तुरन्त पारदर्शी जांच कराये, नहरी गौशाला में उचित चारा, पानी और चिकित्सा व्यवस्था लागू करायी जाये और धन के उपयोग की निगरानी सख्ती से की जाये—ताकि भविष्य में कहीं और भी नहरी गौशाला जैसी दयनीय कहानी न दोहराई जाए।