कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
अक्टूबर–नवम्बर के बीच उत्तर प्रदेश और पड़ोसी राज्यों में सामने आए कोडीन युक्त कफ़ सिरप के व्यापक तस्करी-रैकेट ने देश को झकझोर दिया है। प्रारम्भिक सूचनाओं के मुताबिक यह केवल कुछ स्थानों का कच्चा व्यापार नहीं, बल्कि बहु-राज्यीय और अंतरराष्ट्रीय सप्लाई-चैन है जिसमें फर्जी लाइसेंस, शेल कंपनियाँ और कुछ स्तरों पर मिलीभगत के संकेत मिलते हैं। नीचे इस मामले का घटना-क्रम, स्वास्थ्य-जोखिम, प्रशासनिक कार्रवाई और आगे की संभावित नीतिगत जरूरतों का विस्तार से विश्लेषण प्रस्तुत है।
कहां से शुरू हुआ—घटना-क्रम का संक्षिप्त नक्शा
कहानी का खुलासा सोनभद्र (उत्तर प्रदेश) में 18 अक्तूबर को एक ट्रक पकड़े जाने के साथ प्रारम्भ हुआ — जिसमें अधिकारियों ने बताया कि चिप्स व नमकीन के पैकेटों के नीचे लाखों शीशियों में कोडीन युक्त कफ़ सिरप छिपाकर भेजी जा रही थीं। तत्पश्चात 4 नवम्बर को सोनभद्र पुलिस और ग़ाज़ियाबाद पुलिस की संयुक्त छापेमारी में मछली गोदाम परिसर से लगभग डेढ़ लाख से ज्यादा सिरप की शीशियाँ बरामद की गईं। बाद में एफएसडीए व नशा नियंत्रण दलों की मदद से कई स्टॉकिस्टों, डिस्ट्रीब्यूटरों और डिपो पर रेड की गईं।
क्या बरामद हुआ — मात्रा और पैटर्न
पुलिस एवं औषधि नियंत्रण अधिकारियों के खुलासों से पता चला कि केवल सोनभद्र ही नहीं, वरन् ग़ाज़ियाबाद, वाराणसी, सहारनपुर, और कोलकाता-निकट क्षेत्रों में भी बड़े स्टॉक पाए गए। छिपाने की चाल संगठित थी: खाद्य-सामग्री जैसे चिप्स, नमकीन के नीचे सिरप छिपाना या अन्य सामान के साथ खेपों को भेजना आम तरीका था। बड़े पैमाने पर एक साथ बरामदियाँ दर्ज हुईं — कभी-कभी लाखों शीशियों तक की खेपें पकड़ी गईं।
कौन-से इलाकों व फैक्ट्रियों से सप्लाई हो रही थी?
जांच के प्रारम्भिक निष्कर्ष बताते हैं कि कई बार माल वैध फैक्ट्रियों से निकलता था पर वितरण-श्रेणी में फर्जी कंपनियों और बनावटी दस्तावेजों के जरिए गायब कर दिया जाता था। विशेषकर हिमाचल प्रदेश के पोंटा साहिब और बद्दी के कुछ कारखानों से माल निकलने की जानकारी सामने आई। नेटवर्क का मुख्य केन्द्र वाराणसी बताया जा रहा है, और वहां से आसपास के जिलों तक सप्लाई का दायरा फैला था। जांच में नेपाल व बांग्लादेश तक सप्लाई के संकेत भी मिले।
कानूनी और प्रशासनिक प्रतिक्रिया — SIT और एफआईआर
उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले की गंभीरता देखते हुए आईजी के नेतृत्व में एक एसआईटी गठित की है। राज्य भर में अब तक दर्ज सूचनाओं के अनुसार अनेक एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं और कई आरोपी गिरफ्तार भी हुए हैं। एफएसडीए तथा पुलिस की संयुक्त छापेमारी में सैकड़ों प्रतिष्ठानों का निरीक्षण हुआ और कुछ फर्मों के लाइसेंस निलंबित या निरस्त करने की प्रक्रियाएँ आरम्भ की गईं।
क़ैद और आरोप—किसे पकड़ा गया, कौन फरार?
जांच के दौरान कुछ प्रमुख स्टॉकिस्ट और डिस्ट्रीब्यूटर्स के नाम उभरे। कुछ मामलों में बर्खास्त या निलंबित पुलिसकर्मियों के शामिल होने की भी चर्चा रही। एक बड़े स्टॉकिस्ट के फरार होने, उनके पिता की गिरफ्तारी तथा मीडिया में उनके पक्ष के बयान की ख़बरों ने मामले को और पेचीदा बनाया है। विदेशी भागने और प्रत्यर्पण के मामलों पर भी परख जारी है।
स्वास्थ्य-जोखिम — कोडीन क्या है और यह कैसे हानिकारक हो सकता है?
कोडीन एक ओपिओइड है जो चिकित्सकीय उपयोग में अल्पकालिक दर्द और खाँसी के लिए दिया जाता है। यह शरीर में मॉर्फिन में बदलता है—कुछ लोगों में यह रूपांतरण तेज़ी से होता है जिससे रक्त में मॉर्फिन स्तर बढ़ सकता है और परिणामस्वरूप साँस लेने में कठिनाई, बेहोशी या गंभीर मामलों में मृत्यु हो सकती है। इसीलिए कई अंतरराष्ट्रीय नियामक एजेंसियाँ (विशेषतः बच्चों में) कोडीन के उपयोग पर सख्त सीमाएँ लगा चुकी हैं।
मध्य प्रदेश व राजस्थान की घटनाएँ — मृतकों का दावा
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में व राजस्थान के कुछ हिस्सों में सितंबर–अक्टूबर के दौरान दर्ज रिपोर्टों में बच्चों की मौतों का संकेत मिला। इन मौतों के पीछे सिरप के संभावित संबंध की जांच विभिन्न राज्य एजेंसियों द्वारा जारी है। कुछ राज्यों ने भी विशिष्ट ब्रांडों पर रोक और अतिरिक्त छानबीन की रिपोर्ट दी है।
प्रशासनिक चुनौतियाँ — निगरानी तंत्र पर सवाल
जांच से यह भी प्रश्न उठे हैं कि इतनी बड़ी मात्रा में नियंत्रित दवा कैसे बिना ज्यादा देर पकड़े ही फैल गई—पूर्व अधिकारियों ने इसे भ्रष्टाचार और निगरानी में कमज़ोरी का संकेत कहा। जाँच की देरी व शुरुआती लापरवाही पर भी सार्वजनिक आलोचना हुई है। राजनीतिक स्तर की टिप्पणियों और विपक्ष के दबाव ने सरकार से तेज़ कार्रवाई की माँग और जवाबदेही की गुंजाइश बनाई है।
सप्लाई-मैकेनिज़्म — फर्जी पर्चियाँ, शेल-फर्म और स्टॉकिस्ट
जांच में सामने आया कि रैकेट में कई कड़ियाँ थी: वैध फैक्ट्री → वितरक/डिस्ट्रीब्यूटर → शेल-फर्म/फर्जी लाइसेंस → स्टॉकिस्ट → तस्करी। दस्तावेज़ी कमज़ोरी और बनावटी रिकॉर्डिंग की मदद से खेपों को बाजार से गायब कर के स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय (निकट पड़ोसी देशों) बाजार भेजा जा रहा था। नियंत्रण से हटकर यह मुनाफ़े का बड़ा साधन बन गया।
आगे क्या किया जाना चाहिए?
केवल गिरफ्तारी पर्याप्त नहीं है। दीर्घकालिक उपायों में शामिल हों: कड़ाई से लाइसेंस-ऑडिट, फैक्ट्रियों तथा डिस्ट्रीब्यूटर्स की पारदर्शिता, ड्रग-इंस्पेक्टरों की स्वतन्त्र जाँच, संदिग्ध अधिकारियों की संपत्ति व निर्णयों की स्वतंत्र जांच, और स्वास्थ्य-शिक्षा व नागरिक जागरूकता। साथ ही बच्चों के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य-प्रोटोकॉल और त्वरित पाथोलॉजी जाँच की व्यवस्था अनिवार्य होनी चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (क्लिक करने पर उत्तर दिखेगा)
1. क्या उत्तर प्रदेश में किसी की मौत कोडीन सिरप से हुई है?
सरकारी बयानों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में जिन सिरप-संबंधी खेपों को पकड़ा गया, उनके कारण राज्य सरकार ने किसी पुष्ट मौत की घोषणा नहीं की है। किन्तु मध्य प्रदेश और राजस्थान में सिरप-संबंधी मौतों की रिपोर्टें आईं और उन पर जाँच चल रही है।
2. यह सिरप किस तरह विदेश भेजा जा रहा था?
जांच में पाया गया कि बड़ी खेपों को छिपाकर नेपाल और बांग्लादेश भेजा जा रहा था—कभी चिप्स/नमकीन के पैकेटों के नीचे और कभी अन्य सामान में छिपाकर ट्रांसपोर्ट किया जाता था।
3. क्या कोडीन पूरी तरह प्रतिबंधित है?
नहीं—कोडीन चिकित्सकीय उपयोग हेतु वैध है पर कड़ी शर्तों के साथ। यह केवल चिकित्सक की पर्ची पर और नियंत्रित मात्रा में दिया जाना चाहिए। कई देशों में बच्चों के उपयोग पर विशेष प्रतिबन्ध हैं।
4. आम नागरिक क्या सावधानियाँ बरतें?
किसी भी सिरप को बिना डॉक्टर की सलाह और पर्ची के न लें; बच्चों में साँस की तकलीफ पर तुरंत चिकित्सीय सहायता लें; यदि आपको किसी दुकान/एजेंट के व्यवहार पर शक हो तो स्थानीय एफएसडीए/पुलिस को सूचित करें।
रिपोर्टिंग और स्रोत: इस लेख में समकालीन मीडिया रिपोर्टों, आधिकारिक बयानों और औषधि-नियंत्रक अभिलेखों के आधार पर संकलित जानकारी का उपयोग किया गया है।






