Sunday, July 20, 2025
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गरीबी, बीमारी और भय के सहारे कैसे रची गई धर्म परिवर्तन की चुपचाप क्रांति?

संजय सिंह राणा की रिपोर्ट

धर्म किसी भी समाज की आत्मा होता है, लेकिन जब धर्म आस्था की जगह लाभ का सौदा बन जाए, तो यह न केवल सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करता है, बल्कि राष्ट्रीय एकता के लिए भी गंभीर खतरा बन जाता है। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले से हाल ही में सामने आया छांगुर बाबा उर्फ जलालुद्दीन का मामला इसी खतरे की ओर संकेत करता है। यह मामला मात्र एक व्यक्ति द्वारा धोखे से धर्म परिवर्तन कराने का नहीं, बल्कि एक सुनियोजित षड्यंत्र की परतें खोलता है जिसमें विदेशी फंडिंग, कट्टरपंथी नेटवर्क और गरीब व अशिक्षित लोगों का शोषण शामिल है।

छांगुर बाबा: एक बाबा या एक एजेंडा?

छांगुर बाबा की छवि पहली दृष्टि में एक ‘पीर’ या आध्यात्मिक मार्गदर्शक की है, लेकिन पुलिस जांच और एटीएस रिपोर्ट बताती हैं कि यह व्यक्ति लंबे समय से गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों को लालच, भय और भावनात्मक शोषण के ज़रिए इस्लाम में परिवर्तित करने का गोरखधंधा चला रहा था। उसका नेटवर्क उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दिल्ली तक फैला था।

एटीएस की पूछताछ में सामने आया है कि धर्म परिवर्तन की इस साजिश में विदेशी फंडिंग और कट्टरपंथी संगठनों की भूमिका भी संदिग्ध है। यह केवल आस्था का नहीं, बल्कि एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा प्रतीत होता है।

धर्म परिवर्तन: एक राजनीतिक और वैचारिक युद्ध?

धर्म परिवर्तन का मुद्दा भारत में नया नहीं है। लेकिन हाल के वर्षों में यह जिस तेजी और हिंसक मानसिकता के साथ सामने आया है, उसने इसे मात्र धार्मिक नहीं, बल्कि वैचारिक और राजनीतिक संघर्ष में बदल दिया है। ईसाई मिशनरियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा गरीब तबकों में फैलाई जा रही ‘मुक्ति की थीम’ या ‘स्वर्ग की लालसा’ वस्तुतः एक वैचारिक युद्ध का हथियार बन गई है।

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छांगुर बाबा का मामला इस बात की पुष्टि करता है कि किस प्रकार कुछ तत्व भारत के संवैधानिक ढांचे का लाभ उठाकर, “धर्म की स्वतंत्रता” के नाम पर न केवल धर्मांतरण करवा रहे हैं, बल्कि इससे जुड़ी संस्थाओं को विदेशी आर्थिक सहायता भी प्रदान की जा रही है।

दलित और पिछड़े: टारगेटेड शोषण की राजनीति

इन मामलों में एक समान पहलू यह है कि धर्म परिवर्तन की कोशिशें हमेशा समाज के सबसे हाशिये पर खड़े तबकों को निशाना बनाती हैं – दलित, आदिवासी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग। छांगुर बाबा और उसके सहयोगियों द्वारा दलितों को इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए “जाति से मुक्ति” का सपना दिखाया गया। लेकिन यह एक धोखा है। धर्म बदलने से सामाजिक असमानता समाप्त नहीं होती; बल्कि एक नई असमानता का जन्म होता है – पहचान की अस्थिरता और सांस्कृतिक जड़ों से अलगाव।

धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सुनियोजित धर्मांतरण

भारत का संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। लेकिन इस स्वतंत्रता का अर्थ किसी अन्य धर्म को अपनाने के लिए किसी व्यक्ति को मजबूर करना, लालच देना या धोखे से उसका धर्म बदलवाना नहीं हो सकता। छांगुर बाबा जैसे लोगों की गतिविधियां संविधान की भावना का अपमान हैं।

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कुछ राज्यों ने धर्मांतरण रोधी कानून बनाए हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश भी शामिल है। इन कानूनों का उद्देश्य जबरन, धोखाधड़ी या लालच देकर धर्मांतरण रोकना है। बलरामपुर का यह मामला इसी कानून के अंतर्गत दर्ज किया गया है, और इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए ताकि इस तरह के अपराधों पर नकेल कसी जा सके।

विदेशी फंडिंग और आतंरिक सुरक्षा

धर्म परिवर्तन के इस नेटवर्क की एक सबसे खतरनाक कड़ी विदेशी फंडिंग है। जांच एजेंसियों को संदेह है कि छांगुर बाबा को खाड़ी देशों और कुछ इस्लामिक एनजीओ से धन प्राप्त होता था, जिसे वह धर्मांतरण गतिविधियों में खर्च करता था। यह केवल आस्था का नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय भी है।

यदि विदेशी शक्तियां भारत की सामाजिक संरचना को धर्म के माध्यम से कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं, तो यह सिर्फ पुलिस या राज्य सरकार की नहीं, पूरे देश की चिंता का विषय है।

समाधान की राह: समाज, सरकार और संवेदना

1. कानूनी कार्रवाई और कड़ी सज़ा: छांगुर बाबा जैसे सरगनाओं को केवल गिरफ्तार कर लेना पर्याप्त नहीं है। जब तक इनपर अदालत में मजबूत चार्जशीट दाखिल कर, समयबद्ध ट्रायल और सख्त सज़ा नहीं होती, यह प्रवृत्ति नहीं रुकेगी।

2. शिक्षा और सामाजिक जागरूकता: जब तक समाज के वंचित वर्गों को शिक्षा, रोजगार और न्याय नहीं मिलेगा, वे इस प्रकार के लालच और प्रलोभनों के शिकार बनते रहेंगे। सरकार को समाजिक न्याय और विकास के कार्यक्रमों को तेज करना होगा।

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3. मीडिया की भूमिका: प्रबुद्ध मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह धर्मांतरण की घटनाओं की गहराई से पड़ताल करे, न कि उसे ‘धार्मिक स्वतंत्रता’ के आवरण में सामान्य बनाए।

4. धार्मिक संगठनों की आत्ममंथन की जरूरत: हिंदू समाज को भी आत्मविश्लेषण करना होगा कि आखिर क्यों समाज का एक वर्ग इतना असुरक्षित महसूस करता है कि वह अपना धर्म छोड़ने को तैयार हो जाता है। मंदिरों और धर्मगुरुओं को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना होगा।

यह केवल एक बाबा का मामला नहीं

छांगुर बाबा केवल एक नाम है। वह एक प्रतीक है – उस सुनियोजित साजिश का, जो धर्मांतरण के माध्यम से समाज की जड़ों को खोखला कर रही है। अगर समय रहते इस खतरे को नहीं पहचाना गया, तो यह केवल धार्मिक नहीं, सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता का कारण बनेगा। धर्म आस्था का विषय है, एजेंडे का नहीं।

भारत की विविधता इसकी ताकत है, लेकिन जब यह विविधता षड्यंत्र और छल की बुनियाद पर तोड़ी जाने लगे, तब हर नागरिक, हर धर्मावलंबी को सतर्क हो जाना चाहिए। यही लोकतंत्र की आत्मा की रक्षा का वास्तविक उपाय है।

(यह लेख समाज को जागरूक करने की मंशा से लिखा गया है, किसी धर्म, पंथ या समुदाय विशेष को आहत करने का उद्देश्य नहीं है।)

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