Sunday, July 20, 2025
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एके-47 से लैस ‘क्रांतिकारी’ का अंत, अब बूट नहीं विचारधारा को खत्म करना है असली चुनौती

छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में केंद्रीय सुरक्षा बलों को माओवाद के खिलाफ सबसे बड़ी सफलता हाथ लगी है। इस अभियान के दौरान 27 खूंखार माओवादी मारे गए, जिनमें सीपीआई (माओवादी) का शीर्ष नेता और बहुचर्चित ‘बिशप आंदोलन’ का प्रमुख नवबल्ला केशव राव उर्फ बसवराजू भी शामिल है।

हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में बसवराजू की मौत से माओवादी नेटवर्क को गहरी चोट, 27 माओवादी ढेर, 54 गिरफ्तार और 84 ने आत्मसमर्पण किया। मोदी सरकार 2026 तक माओवादी सफाए के लिए प्रतिबद्ध।

एक ऐतिहासिक दिन

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया पर जानकारी देते हुए इसे “तीन दशकों की सबसे बड़ी जीत” बताया। उन्होंने लिखा—

मोदी सरकार 31 मार्च 2026 से पहले माओवाद के पूर्ण खात्मे के लिए प्रतिबद्ध है।”

इस अभियान के तहत 54 माओवादियों की गिरफ्तारी और 84 के आत्मसमर्पण की भी खबर है।

बसवराजू—माओवाद का पुराना चेहरा

मूल रूप से आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियान्नापेटा गांव के रहने वाले बसवराजू पिछले 35 वर्षों से केंद्रीय कमेटी का सदस्य था। 2018 में वह सीपीआई (माओवादी) का महासचिव बना। उसके ऊपर एक करोड़ रुपये का इनाम था और वह AK-47 जैसे आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल करता था।

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उल्लेखनीय है कि बसवराजू को 2013 के झीरम घाटी हत्याकांड का मास्टरमाइंड माना जाता है, जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल और महेंद्र कर्मा सहित 33 लोगों की हत्या कर दी गई थी।

माओवादी आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

हालांकि, आज माओवादी हिंसा का ग्राफ नीचे है, लेकिन इसकी जड़ें देश की आज़ादी से पहले तक जाती हैं।

➡️ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1925 में हुई थी, जिसने 1946 के ‘तेभागा आंदोलन’ और 1947 के ‘तेलंगाना किसान विद्रोह’ से ख्याति पाई।

  • आजादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में फूट पड़ी
  • 1964 में सीपीआई से अलग होकर सीपीएम बनी।
  • 1967 में नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ सशस्त्र आंदोलन 1969 में चारू मजूमदार और कानू सान्याल के नेतृत्व में सीपीआई (एमएल) में तब्दील हुआ।

माओवादियों का रक्तरंजित इतिहास

इन आंदोलनों ने आदिवासी क्षेत्रों को ‘लाल गलियारा’ में बदल दिया।

यह क्षेत्र झारखंड, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में फैला रहा।

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इसके परिणामस्वरूप,

➡️ 2010 में माओवादी हिंसा की घटनाएं 2,213 तक पहुंचीं।

लेकिन 2024 में ये संख्या घटकर 374 पर आ गई, जो लगभग 81% की गिरावट दर्शाती है।

सरकार की रणनीति और आने वाला समय

मोदी सरकार ने माओवाद को समाप्त करने के लिए बहुस्तरीय रणनीति अपनाई है।

✅ सुरक्षा बलों की संख्या और तकनीक में वृद्धि

✅ आदिवासी क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं पर ज़ोर

✅ पुनर्वास और आत्मसमर्पण नीति को गति

सरकार अब 31 मार्च 2026 तक ‘लाल आतंक’ को पूरी तरह समाप्त करने की दिशा में बढ़ रही है।

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बेशक, बसवराजू की मौत के साथ माओवाद के सिर से एक बड़ा सिरा कट चुका है, लेकिन इसकी विचारधारा और नेटवर्क अभी भी चुनौती है। अब जरूरत है सुरक्षात्मक कार्रवाई के साथ-साथ सामाजिक और विकासात्मक उपायों को तेज़ करने की, ताकि भविष्य में कोई नया बसवराजू जन्म न ले।

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