
लखनऊ के बन्थरा क्षेत्र में वनविभाग अधिकारियों की मिलीभगत और भ्रष्टाचार के आरोप एक बार फिर सुर्खियों में हैं। सरोजिनी नगर क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सैकड़ों ग्राम पंचायतों—कैथी, नटकूर, कासिमखेड़ा, गुलाबखेड़ा, सिकंदरपुर, मैमोरा, छावनी, किशनपुर, कौड़ियां, गढ़ीचुनौती, भटगांव, खाणेदेव, ऐन, गुदौली सहित अन्य गांव—इन दिनों लकड़ी माफियाओं के कब्जे में दिखाई दे रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार इलाके में आम, सीसम और सागौन के घने बाग एवं बड़े-बड़े पेड़ रातों-रात कटाकर गायब कर दिए जा रहे हैं, और यह सब कथित रूप से वनविभाग के अधिकारियों के संरक्षण में हो रहा है।
स्थानीय नागरिकों की शिकायत है कि वर्षों पुराने हरे-भरे बाग और छायादार पेड़ जिनसे गांव की पहचान थी, अब माफियाओं के अवैध कारोबार का शिकार हो रहे हैं। ग्रामीणों ने सैकड़ों बार उच्चाधिकारियों से शिकायतें कीं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा। कार्रवाई की जगह आरोप है कि हर बार आरोपी बचा लिए जाते हैं और फाइलें दबा दी जाती हैं।
🔴 परमीशन के नाम पर करोड़ों की अवैध कमाई का खेल
सूत्रों के मुताबिक लकड़ी माफियाओं और वनविभाग अधिकारियों के बीच एक नया अवैध मॉडल विकसित हो चुका है। अगर लकड़ी ठेकेदार को 100 पेड़ों की कटान चाहिए होती है, तो परमीशन केवल 10–20 पेड़ों की जारी की जाती है। बाकी 80–90 पेड़ों के लिए प्रति पेड़ लगभग ₹2000 की अवैध उगाही की जाती है। इससे विभाग के लिए जवाब देना आसान हो जाता है कि “हमारे पास तो परमीशन थी”, जबकि जमीनी स्तर पर बड़े पैमाने पर विनाश किया जा चुका होता है।
आरोप तो यहां तक हैं कि जब लकड़ी ठेकेदार कटान करता है तो वनकर्मियों को पहले ही सूचना देनी पड़ती है ताकि सुरक्षा और हिस्से का पूरा इंतज़ाम सुनिश्चित रहे। पेड़ काटने के बाद रातों-रात जेसीबी से ठूंठ उखाड़ दिए जाते हैं और सुबह तक पूरा बाग खेत में बदल जाता है। इससे किसी को अवैध कटान के प्रमाण भी नहीं मिल पाते।
🌳 सरकार पौधारोपण पर करोड़ों खर्च कर रही, लेकिन भ्रष्टाचार से प्रयास बेअसर
एक तरफ योगी आदित्यनाथ सरकार पूरे प्रदेश में वृहद स्तर पर पौधारोपण, पर्यावरण संरक्षण और हरित क्रांति के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, वहीं दूसरी तरफ शासन–प्रशासन में बैठे कुछ भ्रष्ट अधिकारी अपने निजी फायदे के लिए इन प्रयासों की धज्जियां उड़ाते दिखाई दे रहे हैं। यह न केवल सरकारी धन की बर्बादी है, बल्कि प्रकृति और पर्यावरण पर एक भयावह हमला भी है।
यदि इस पूरे मामले की जांच किसी निष्पक्ष और ईमानदार अधिकारी को सौंपी जाए, तो ग्रामीणों के अनुसार बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार और अवैध साम्राज्य की परतें उजागर हो सकती हैं। हजारों पेड़ों की कटान कोई छोटा अपराध नहीं, बल्कि पर्यावरण अपराध की श्रेणी में आता है।
⚠️ चैनल का पक्ष — जांच और कार्रवाई अत्यंत आवश्यक
हालांकि हमारा चैनल खबर की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं करता, लेकिन यह विषय अत्यंत गंभीर है और ग्रामीणों की शिकायतों तथा मौके पर मौजूद परिस्थितियों के आधार पर जंगल–बागों के लगातार गायब होने से इंकार नहीं किया जा सकता। वनविभाग, जिला प्रशासन और शासन को इस मुद्दे पर तत्काल संज्ञान लेना चाहिए, अन्यथा आने वाले समय में पूरा क्षेत्र हरियाली से बंजर भूमि में तब्दील हो जाएगा।
❓ क्लिक करें और जवाब देखें — ग्रामीणों के मन के सवाल
क्या ग्रामीणों ने अधिकारियों से कई बार शिकायत की?
हाँ, ग्रामीणों ने सैकड़ों बार शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
क्या अवैध कटान पर परमीशन का बहाना बनाया जाता है?
हाँ, कुछ पेड़ों की परमीशन लेकर बाकी पेड़ों को अवैध रूप से काट दिया जाता है।
क्या जेसीबी का उपयोग सबूत मिटाने के लिए किया जाता है?
हाँ, ठूंठ रातों-रात जबरन उखाड़ दिए जाते हैं ताकि प्रमाण खत्म हो जाएं।
क्या इस मामले पर निष्पक्ष जांच संभव है?
अगर जांच ईमानदार और सक्षम अधिकारी को सौंपी जाए तो अवैध कारोबार का पूरा जाल सामने आ सकता है।
🌿 प्रकृति की रक्षा जरूरी है — पेड़ सिर्फ लकड़ी नहीं, जीवन हैं।






