रावण को जूते की धूल कहने वाली रोहिणी घावरी ने मायावती की रैली में मचाई सनसनी, बोलीं– “ये भीड़ पैसों से नहीं, प्यार से आई है”

रावण को जूते की धूल कहने वाली रोहिणी घावरी का बयान मायावती की लखनऊ रैली में वायरल
अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

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लखनऊ में मायावती की रैली और ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ का वायरल बयान

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती ने कांशीराम परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर राजधानी लखनऊ में अपनी सियासी ताकत का जबरदस्त प्रदर्शन किया। रैली में नीले झंडों के साथ हजारों समर्थकों की भीड़ उमड़ी। इस बीच सोशल मीडिया पर ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ डॉ. रोहिणी घावरी का बयान वायरल हो गया, जिसने दलित राजनीति में हलचल मचा दी।

पीएचडी स्कॉलर डॉ. रोहिणी घावरी, जिन्होंने पहले भी चंद्रशेखर आजाद रावण पर गंभीर आरोप लगाए थे, ने एक्स (Twitter) पर लिखा – “वो बहनजी के जूते की धूल के बराबर भी नहीं है, जो बहनजी का साम्राज्य ख़त्म करने चला था! ये भीड़ पैसों से नहीं, प्यार से आई है।”

‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ के निशाने पर क्यों हैं चंद्रशेखर आजाद रावण?

‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ रोहिणी घावरी ने पिछले महीनों में आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद रावण पर व्यक्तिगत और सामाजिक शोषण के गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि चंद्रशेखर ने उनसे शादी का झूठा वादा किया और बाद में संबंध तोड़ लिया। इस मामले में उन्होंने राष्ट्रीय महिला आयोग में भी शिकायत दर्ज कराई थी।

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रोहिणी ने कहा था – “मेरी कानूनी लड़ाई शुरू हो चुकी है। स्वाभिमान और सम्मान के लिए लड़ूंगी, पीछे नहीं हटूंगी।” इसके बाद से ही वह सोशल मीडिया पर ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ के नाम से जानी जाने लगीं।

मायावती बनाम चंद्रशेखर: दलित राजनीति में नई सियासी जंग

दलित राजनीति में इस वक्त दो चेहरों की टकराहट सबसे ज्यादा चर्चा में है – मायावती और चंद्रशेखर आजाद रावण। मायावती कई बार बिना नाम लिए रावण को “बरसाती मेंढक” कह चुकी हैं, वहीं रावण का आरोप है कि मायावती ने बहुजन समाज का विश्वास खो दिया है। इस सियासी खींचतान के बीच ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ का यह बयान बहुजन राजनीति को नया मोड़ दे रहा है।

कौन हैं ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ डॉ. रोहिणी घावरी?

डॉ. रोहिणी घावरी इंदौर की रहने वाली हैं और एक सफाईकर्मी की बेटी हैं। उन्होंने संघर्ष के दम पर उच्च शिक्षा प्राप्त की और 2019 में स्विट्ज़रलैंड जाकर पीएचडी की पढ़ाई शुरू की। वहीं उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद रावण से हुई और दोनों करीब तीन साल तक रिश्ते में रहे। आज वे स्विट्ज़रलैंड में एक एनजीओ चला रही हैं और सामाजिक कार्य में सक्रिय हैं।

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उनकी पहचान अब ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ के रूप में पूरे देश में फैल चुकी है। मायावती के समर्थन में उनकी पोस्ट बसपा समर्थकों में तेजी से वायरल हुई।

मायावती के समर्थन में रावण को जूते की धूल कहने वाली की अपील

मायावती की लखनऊ रैली से पहले ही ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ ने सोशल मीडिया पर लिखा – “कांशीराम साहब के विचारों से बनी पार्टी बसपा को मज़बूत करना हमारा फ़र्ज़ है। 9 अक्टूबर को लखनऊ पहुंचकर साहब को सच्ची श्रद्धांजलि दें।”

रैली के बाद उन्होंने फिर पोस्ट किया – “आसान नहीं है कांशीराम साहब बनना। उन्होंने समाज को स्वाभिमान दिया। बहनजी को पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनाना ही असली श्रद्धांजलि होगी।”

सोशल मीडिया पर ट्रेंड बना ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’

मायावती की रैली के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ ट्रेंड करने लगा। समर्थकों ने लिखा – “रोहिणी बहन ने जो कहा वही सच्चाई है।” वहीं रावण समर्थकों ने इसे व्यक्तिगत हमला बताया।

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फिर भी यह सच है कि ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ का बयान बहुजन राजनीति में नई ऊर्जा भर रहा है और बसपा समर्थकों के बीच मायावती के प्रति निष्ठा का प्रतीक बन गया है।

राजनीतिक विश्लेषण: क्यों असरदार साबित हुआ यह बयान?

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ का यह बयान दलित राजनीति के समीकरणों को बदल सकता है। मायावती की रैली से यह संदेश गया कि बसपा अब भी जमीनी स्तर पर सक्रिय है। वहीं सोशल मीडिया पर इस ट्रेंड ने बहुजन युवाओं को फिर से पार्टी से जोड़ा।

निष्कर्ष: रावण को जूते की धूल कहने वाली की आवाज़ गूंजी, बहनजी की रैली बनी ऐतिहासिक

लखनऊ की यह ऐतिहासिक रैली और ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ का बयान मिलकर एक नया राजनीतिक अध्याय लिख रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह बयानबाज़ी 2027 के विधानसभा चुनावों में क्या असर डालती है। फिलहाल, ‘रावण को जूते की धूल कहने वाली’ का यह नारा बहुजन राजनीति की नई पहचान बन गया है।

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