‘काका-काकी राम-राम!’ कैसन हो भइया-भौजी?❓’‌ सर्दी की आहट पर पंचायत चुनाव की चढ़ती गर्मी, अब हालचाल लेने लगे प्रत्याशी

यूपी पंचायत चुनाव में ग्रामीण मतदाता मतदान केंद्र पर मतदान करते हुए और बैलेट बॉक्स

अब्दुल मोबीन सिद्दीकी की रिपोर्ट

लखनऊ। सर्दी की दस्तक अभी पूरी तरह पहुंची भी नहीं कि उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव 2026 की सियासी तपिश गांव-गांव में महसूस होने लगी है। चौपालों से लेकर अलाव तक अब एक ही चर्चा है — “इस बार प्रधान कौन?” गांवों में सुबह-शाम ‘काका-काकी राम-राम, कैसे हो भइया-भौजी?’ जैसी आवाजें गूंज रही हैं। प्रत्याशी अब रिश्तेदारी और अपनापन दोनों को चुनावी रणनीति में पिरोने लगे हैं।

🟢 चौपालों पर लौट आया चुनावी रंग

जैसे-जैसे ठंड बढ़ रही है, वैसे-वैसे गांव की चौपालें फिर से आबाद हो रही हैं। प्रधानी चुनाव की सुगबुगाहट के बीच अब पुराने रिश्ते और दोस्तियाँ ताज़ा की जा रही हैं। कोई अपने ‘काका-काकी’ से हालचाल पूछ रहा है, तो कोई ‘भइया-भौजी’ के घर जाकर चाय पर बैठकी कर रहा है। चुनाव अभी दूर है, मगर माहौल अब पूरी तरह चुनावी बन चुका है।

🟣 प्रत्याशियों की रणनीति — “रिश्ते जोड़ो, वोट जोड़ो”

इस बार के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में प्रत्याशी अपने पुराने समीकरणों को नए रूप में ढाल रहे हैं। हर कोई “रिश्ते जोड़ो, वोट जोड़ो” के फार्मूले पर काम कर रहा है। गांव में शादी-ब्याह, जन्मदिन या तेहरवीं तक — हर मौके पर उम्मीदवारों की मौजूदगी दिख रही है। प्रत्याशियों के मुंह से अब सिर्फ “राम-राम” नहीं, बल्कि “विकास और बदलाव” की बातें भी सुनाई दे रही हैं।

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🟠 आरक्षण पर टिकी प्रत्याशियों की सांस

पंचायत चुनाव आरक्षण अभी तय नहीं हुआ है। शासन स्तर पर ओबीसी आरक्षण आयोग का गठन अधर में लटका है। इस कारण कई प्रत्याशी असमंजस में हैं कि उनका वार्ड सामान्य, ओबीसी या एससी में जाएगा या नहीं। चर्चा यह भी है कि सरकार 2021 की आरक्षण सूची को ही आधार बनाकर चुनाव कराने की तैयारी में है। यही वजह है कि सभी प्रत्याशी हर वर्ग में अपने रिश्ते मजबूत कर रहे हैं।

🟢 पुराने प्रधानों का ‘माफीनामा अभियान’

मौजूदा ग्राम प्रधान और उनके प्रतिनिधि भी पीछे नहीं हैं। वे अब ‘माफीनामा अभियान’ के तहत घर-घर जाकर पुराने कामों की कमी स्वीकार कर रहे हैं। कहीं अधूरी सड़क का वादा किया जा रहा है, तो कहीं शौचालय या नाली का काम पूरा करने का भरोसा दिया जा रहा है। जनता से सीधा संपर्क और सॉफ्ट अप्रोच उनकी रणनीति का नया हिस्सा है।

🟣 सर्दी की बैठकी में बढ़ी सियासी गहमागहमी

जैसे-जैसे शाम को ठंड बढ़ती है, गांवों में अलाव के पास बैठकी शुरू हो जाती है। वहीं से प्रधानी चुनाव की चर्चा भी गरम हो उठती है। “फलाने का बेटा अब मैदान में उतर रहा है” से लेकर “पिछली बार वाला प्रधान अब क्या करेगा”— हर विषय पर राय बन रही है। गांवों में अब चुनावी चर्चा, ठंडी हवा और जलती लकड़ियों की गंध साथ-साथ महसूस हो रही है।

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🟢 पंचायत चुनाव अप्रैल-मई में संभावित

सूत्रों के मुताबिक यूपी पंचायत चुनाव अप्रैल या मई 2026 में कराए जा सकते हैं। पंचायती राज निदेशालय ने शासन को प्रस्ताव भेज दिया है। हालांकि, ओबीसी आयोग का गठन न होने से प्रक्रिया में देर हो सकती है। अगर नई सूची नहीं बनी, तो सरकार पिछली सूची पर ही चुनाव करा सकती है।

🟠 सोशल मीडिया बना ग्रामीण राजनीति का नया हथियार

अब सिर्फ चौपाल और दरवाजा नहीं, बल्कि फेसबुक और व्हाट्सएप भी प्रचार का मैदान बन चुके हैं। प्रत्याशी अब अपने पोस्टर, फोटो और वादे सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं। “हमारा गांव, हमारा गौरव” और “काम बोले तो वोट मिले” जैसे स्लोगन वायरल हो रहे हैं। सोशल मीडिया अब गांव के हर युवा की जेब में राजनीति पहुंचा चुका है।

🟣 वोटरों में बढ़ रही उम्मीदें और सवाल

वोटर अब पुराने वादों के जाल में नहीं फंसना चाहते। वे पूछ रहे हैं — “इस बार असली विकास कौन करेगा?” अब वोट सिर्फ रिश्तेदारी से नहीं, बल्कि काम और ईमानदारी से तय होंगे। यही कारण है कि प्रत्याशी अब “काम दिखाओ, वोट पाओ” की नीति पर चल रहे हैं।

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🟢 पंचायत चुनाव में जुड़ रही नई पीढ़ी

गांव की नई पीढ़ी अब पंचायत चुनाव को लेकर अधिक सजग है। युवा मतदाता सोशल मीडिया, शिक्षा और रोजगार से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता दे रहे हैं। वे चाहते हैं कि गांव में सिर्फ सड़कों और नालियों की बात नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और डिजिटल विकास पर भी चर्चा हो।



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❓ यूपी पंचायत चुनाव 2026 कब होंगे?

संभावना है कि पंचायत चुनाव अप्रैल-मई 2026 में होंगे। हालांकि, आरक्षण सूची की स्थिति पर अंतिम फैसला निर्भर करेगा।

❓ क्या आरक्षण सूची में बदलाव होगा?

ओबीसी आयोग का गठन लंबित है। अगर आयोग जल्द नहीं बना तो 2021 की सूची पर ही चुनाव कराए जा सकते हैं।

❓ प्रत्याशी अभी से प्रचार क्यों शुरू कर रहे हैं?

गांवों में रिश्तेदारी और संपर्क पहले से बनाना चुनाव जीतने की कुंजी माना जाता है। इसलिए प्रत्याशी पहले से सक्रिय हैं।

❓ क्या सोशल मीडिया अब गांव की राजनीति को प्रभावित कर रहा है?

हां, अब सोशल मीडिया ग्रामीण चुनावों में अहम भूमिका निभा रहा है। प्रत्याशी व्हाट्सएप और फेसबुक के जरिये अपना प्रचार कर रहे हैं।

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