एससी/एसटी एक्ट का फर्जी मुकदमा लिखाने पर मिली सजा
उत्तर प्रदेश में कानून का दुरुपयोग रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण फैसला सामने आया है। मोहम्मदनगराज थाना क्षेत्र के भोदई गांव में रहने वाली रिंकू तिवारी द्वारा एससी/एसटी एक्ट के तहत झूठा मुकदमा दर्ज कराने के मामले में अदालत ने कड़ा रुख अपनाते हुए उसे तीन साल की सश्रम कारावास और 30,000 रुपये के आर्थिक दंड की सजा सुनाई है। अदालत का यह निर्णय उन मामलों के लिए एक मिसाल माना जा रहा है, जिनमें निजी दुश्मनी या प्रतिशोध के चलते कानून की आड़ लेकर फर्जी आरोप लगाए जाते हैं।
■ प्रेम संबंध से मुकदमेबाजी तक पहुंची कहानी
मामला भोदई गांव की रिंकू तिवारी और दीपक गुस्सा नामक युवक के बीच वर्षों से चल रहे प्रेम-प्रसंग से जुड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, दोनों के बीच लगभग पांच वर्षों तक संबंध रहे। इस दौरान दीपक रिंकू से मिलने बहाने उसके घर आया-जाया करता था। आरोप के मुताबिक, वह शारीरिक संबंध भी बनाता रहा। बाद में प्रेम संबंधों में दरार आने लगी और इसी दौरान रिंकू को शक हुआ कि दीपक उससे शादी करने से बच रहा है।
इसके बाद रिंकू ने मोहम्मदनगराज थाना क्षेत्र में रिपोर्ट दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि दीपक ने शादी का झांसा देकर संबंध बनाए और बाद में एससी/एसटी एक्ट की धारा जोड़ते हुए उसे मानसिक व सामाजिक उत्पीड़न पहुंचाया। रिपोर्ट दर्ज होते ही दीपक को गिरफ्तार कर लिया गया और कई दिनों तक जेल में रहना पड़ा।
■ 2025 में रिंकू ने किसी और से की शादी
इस बीच कहानी तब मोड़ लेती है जब 2025 में रिंकू तिवारी ने किसी अन्य युवक से शादी कर ली। शादी की सूचना गांव में तेजी से फैली और कुछ लोगों ने दीपक गुस्सा को यह जानकारी दी कि रिंकू ने उसके खिलाफ लगाए आरोपों के बावजूद दूसरी जगह विवाह कर लिया है। दीपक ने अदालत में अपने बचाव में कहा कि यदि वास्तव में शादी के नाम पर धोखा दिया गया होता या किसी प्रकार का अत्याचार हुआ होता, तो शादी से पहले न्याय के लिए संघर्ष जारी रहता, विवाह नहीं किया जाता।
शादी के बाद भी रिंकू के घर पर दीपक का भारी दबाव बनाए रखने और दुश्मनी निकालने के लिए सामाजिक बदनाम करने की कोशिश जारी रही। इससे दीपक और उसके परिवार पर तनाव का पहाड़ टूट पड़ा।
■ सत्य सामने आने पर मामला कोर्ट में पलटा
अदालत में दोनों पक्षों से विस्तृत पूछताछ की गई। गवाहों के बयान, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, कॉल रिकॉर्ड सहित अन्य परिस्थितियाँ जांची गईं। सुनवाई के दौरान स्पष्ट हुआ कि रिंकू ने प्रेम संबंध टूटने के बाद प्रतिशोध की भावना से मुकदमा दर्ज कराया था। अदालत ने माना कि रिंकू का उद्देश्य जाति आधारित अत्याचार को लेकर न्याय प्राप्त करना नहीं, बल्कि दीपक को फंसाकर दंडित कराना था।
कानूनी विशेषज्ञों ने भी निष्कर्ष रखा कि समाज में सम्मान और सुरक्षा के लिए बनाए गए अत्यंत संवेदनशील कानूनों का दुरुपयोग होने से वास्तविक पीड़ितों के अधिकारों पर सबसे ज्यादा चोट पहुंचती है। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ — निजी स्वार्थ के चलते कानून का इस्तेमाल हथियार की तरह किया गया।
■ न्यायालय का फैसला — कठोर सजा के पीछे तर्क
कोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी एक्ट जैसे विशेष कानून समाज के कमजोर वर्गों और संवेदनशील तबकों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। यदि इन कानूनों का दुरुपयोग होता है तो एक ओर निर्दोष व्यक्ति की प्रतिष्ठा, करियर और मानसिक शांति को नुकसान पहुंचता है, वहीं दूसरी ओर वास्तविक पीड़ितों के लिए न्याय प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। इसी गंभीरता को देखते हुए अदालत ने रिंकू तिवारी को तीन वर्ष का सश्रम कारावास तथा ₹30,000 का जुर्माना लगाया। साथ ही आदेश दिया गया कि यदि जुर्माना जमा नहीं किया गया, तो सजा की अवधि बढ़ा दी जाएगी।
■ समाज और न्याय व्यवस्था के लिए बड़ा संकेत
यह फैसला निश्चित रूप से उन मामलों के लिए चेतावनी है जिनमें झूठे मुकदमों का सहारा लिया जाता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि पुलिस और न्यायालय ऐसे मामलों की गहन जांच करें ताकि निर्दोष व्यक्ति झूठे आरोपों के जाल में न फंसें।
कानूनी प्रक्रिया के दौरान दीपक गुस्सा ने लगभग तीन वर्षों तक तनाव, बदनामी और सामाजिक अलगाव का सामना किया। मानसिक प्रताड़ना और आर्थिक नुकसान के बावजूद उसने न्यायालय पर भरोसा बनाए रखा। अब निर्णय आने के बाद दीपक और उसके परिवार को राहत मिली है।
इस मामले से दो महत्वपूर्ण संदेश सामने आते हैं —
1️⃣ समाज और व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए बने कानूनों का सम्मान किया जाना चाहिए।
2️⃣ किसी भी कानून का दुरुपयोग, चाहे वह व्यक्तिगत बदला हो या सामाजिक दबाव, अंततः पीड़ितों के लिए ही बाधा बनता है।
रिंकू तिवारी को मिली सजा न केवल एक व्यक्ति विशेष के लिए न्याय है, बल्कि उन सभी फर्जी मुकदमों के खिलाफ कड़ा संदेश है जिनके कारण न्याय व्यवस्था और सामाजिक ताना-बाना प्रभावित होता है।