संतोष कुमार सोनी, धर्मेन्द्र और सुशील मिश्रा की रिपोर्ट
बांदा, उत्तर प्रदेश। बांदा जनपद में बाढ़ की विभीषिका थमने के बाद भी हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। जिले के बाढ़ प्रभावित गांवों, विशेषकर नांदादेव, भाथा और अमारा में लोग प्रशासनिक उपेक्षा और बुनियादी सुविधाओं के अभाव से त्रस्त हैं।
यमुना और केन नदियों के उफान के चलते जिन गांवों में तबाही मची, वहां राहत की उम्मीद लगाए लोग अब तक भूख, बीमारी और अनिश्चित भविष्य से जूझ रहे हैं।
जब पेट ही नहीं भर पाया…
गांव नांदादेव की निवासी सुरजा ने बताया कि कल उन्हें एक लंच पैकेट दिया गया, जिसमें सिर्फ चार पूड़ियां थीं। “न तो बच्चों का पेट भरा और न ही हमारा,” उन्होंने कहा। यह हाल अकेले सुरजा का नहीं, बल्कि जिले के अधिकांश बाढ़ पीड़ितों का है। राहत पैकेट नाम मात्र के हैं और उनकी मात्रा व गुणवत्ता पर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं।
राहत सामग्री का संकट
प्रशासन द्वारा दावा किया जा रहा है कि हर संभव मदद पहुंचाई जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट है। करीब 10 हजार से अधिक ग्रामीण पिछले चार दिनों से बाढ़ राहत शिविरों और टीलों पर किसी तरह समय काट रहे हैं। न खाना ठीक से मिल रहा है, न पीने का पानी, और न ही रहने की पर्याप्त व्यवस्था।
हालांकि अब केन और यमुना नदियों का जलस्तर सामान्य हो गया है, लेकिन समस्याएं खत्म नहीं हुईं। शंकर पुरवा, बरेहटा, लौमर सहित दो दर्जन से अधिक मजरों और गांवों में बिजली बीते 132 घंटे से गुल है, जिससे महामारी फैलने का खतरा मंडरा रहा है।
गांवों में भय और अनिश्चितता
ग्राम प्रधान रोहित निशाद, सुरेश निशाद, मनोज और चरन ने बताया कि नांदादेव और भाथा गांव के सैकड़ों बाढ़ पीड़ित अब तक राहत सामग्री से वंचित हैं। अमारा गांव की स्थिति और भी गंभीर है। प्रधान अशोक कुमार ने बताया कि वहां करीब 12 मकान पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं और प्रशासन ने अब तक कोई सुध नहीं ली है।
यमुना का रौद्र रूप
करीब पंद्रह साल बाद यमुना ने बांदा में ऐसा रौद्र रूप दिखाया है। शनिवार की रात नदी का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर गया और देखते ही देखते 20 से अधिक गांवों को अपनी चपेट में ले लिया। लौमर और तारा खजुरी जैसे गांवों में लोग छतों पर तंबू गाड़कर किसी तरह जान बचाते रहे, लेकिन अंततः उन्हें नावों की मदद से टीलों और राहत शिविरों में ले जाया गया।
नई शुरुआत की जद्दोजहद
अब जब बारिश थमी है और जलस्तर नीचे आया है, तो बाढ़ पीड़ित अपने उजड़े आशियाने देखने लौट रहे हैं। कई परिवार कीचड़ और बदबू में जीने को मजबूर हैं। महिलाएं और बच्चे राहत सामग्री की बाट जोहते हुए घरों के खंडहरों के बीच अपने बचे-खुचे सामान समेटने में लगे हैं।
तीन दिन तक बारिश और बाढ़ में घिरे लोगों ने जीवन की सारी पूंजी गंवा दी, अब उन्हें सिर्फ एक उम्मीद बची है – कि शायद सरकार और प्रशासन उनकी सुध ले और पुनर्वास की दिशा में ठोस कदम उठाए।