
‘नायक नहीं खलनायक हूं मैं’— यही थी उसकी पहचान
अब्दुल मोबीन सिद्दीकी की रिपोर्ट
सहारनपुर का नाम जब भी अपराध की दुनिया में लिया जाता है, तो एक नाम जरूर गूंजता है — नदीम उर्फ बिल्लू सांडा।
उसकी जुबान पर हमेशा एक ही डायलॉग रहता था —
“नायक नहीं खलनायक हूं मैं”
फिल्म खलनायक के संजय दत्त से प्रभावित यह शख्स खुद को असली जिंदगी का ‘बल्लू’ मान बैठा था। उसका कहना था कि उसे डॉन बनना है, चाहे इसके लिए कितने भी मर्डर क्यों न करने पड़ें।
⚡ खलनायक फिल्म का जुनून और ‘बिल्लू’ नाम की कहानी
साल 2017 में जब उसका एक वीडियो वायरल हुआ, तो पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश हिल गया। पत्रकारों के सामने बिल्लू सांडा मुस्कुराते हुए बोला—
“मैं पांच मर्डर करना चाहता हूं, ये मेरा शौक है… बचपन से बदमाशी का शौक है।”
उसका असली नाम नदीम था, लेकिन फिल्म खलनायक में संजय दत्त के किरदार ‘बल्लू’ से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपना नाम ‘बिल्लू’ रख लिया।
और तभी से वह हर किसी को अपने अंदाज़ में कहता—
“नायक नहीं खलनायक हूं मैं — प्यार नहीं, नफ़रत के लायक हूं मैं।”
🔥 पुलिस को खुली चुनौती: ‘भागूंगा और भाग गया’
बिल्लू सांडा का अपराध जगत में कदम रखना किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं था।
उसने न केवल तीन हत्याएं कीं, बल्कि पुलिस के सामने खुलेआम कहा—
“10 अक्टूबर की रात 10 बजे बल्लू तुम्हारी जेल से फरार होगा।”
और ठीक वही हुआ।
2017 में वह सहारनपुर जेल की पुलिस कस्टडी से फरार हो गया।
तीन दिन पहले ही उसने पत्रकारों को बताया था कि वह भाग जाएगा — और उसने यह साबित भी कर दिया।
जब एक पत्रकार ने पूछा कि अब कितने दिन जेल में रहोगे, तो बिल्लू हंसकर बोला—
“मुश्किल से छह महीने।”
वह पुलिस को आंख दिखाने में जरा भी नहीं हिचकता था। पूछे जाने पर बोला—
“मैंने इंस्पेक्टर पर गोली चलाई, मर्जी थी मेरी।”
⚖️ पुलिस मुठभेड़ और गिरफ्तारी की कहानी
जनवरी 2017 में जब थाना कुतुबशेर के इंस्पेक्टर जितेंद्र सिंह टीम के साथ दबिश देने पहुंचे, तो सूचना मिली कि फरार अपराधी बिल्लू सब्दलपुर की तरफ आ रहा है।
पुलिस ने रोकने की कोशिश की, तो उसने तमंचे से फायरिंग कर दी।
जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने उसे जिंदा पकड़ लिया।
बाद में अदालत ने उसे छह वर्ष की सजा सुनाई।
बिल्लू का कहना था कि उसे पछतावा नहीं, बल्कि गर्व है कि वह अपने पिता की तरह “बदमाश” है।
“मेरा बाप भी बदमाश था, मैं भी बदमाश हूं,”
उसने एक वीडियो में कहा था।
💀 ‘नायक नहीं खलनायक हूं मैं’: बचपन से अपराध का ज़हर
बिल्लू का बचपन सहारनपुर की गलियों में अपराध की परछाइयों में बीता।
उसके पिता स्थानीय स्तर पर अपराधी थे। चोरी, लूट, फिरौती — सब कुछ आम था।
इन्हीं हालातों ने नदीम को बिल्लू सांडा बना दिया।
फिल्म खलनायक उसके लिए प्रेरणा नहीं बल्कि पागलपन बन गई थी।
वह खुद को पर्दे का नहीं, असली जिंदगी का खलनायक मानने लगा।
“नायक नहीं खलनायक हूं मैं,”
वह हर बार कहता, और उसी जोश में फिर एक नया अपराध कर देता।
💰 पैसे और शौक के लिए हत्या — अपराध बना धंधा
अपराध की शुरुआत उसने छोटी-मोटी चोरी से की, लेकिन 2015 में उसने पहली हत्या की —
आलम चौकीदार का मर्डर, जिसके लिए उसे 6 लाख रुपये मिले।
इसके बाद उसका आत्मविश्वास बढ़ गया।
कुछ ही महीनों में उसने दूसरी हत्या कर दी — इश्तिकार नामक व्यक्ति की, पौने छह लाख रुपये लेकर।
तीसरी हत्या के बाद उसने कहा —
“अब मर्डर करना मेरे लिए बाएं हाथ का खेल है।”
वह फिरौती और हत्या को ‘शौक’ बताता था।
“पैसों से बेल करवाऊंगा, फिर फिरौती लेकर नया काम करूंगा।”
जेल से फरार होने के बाद उसने एक प्रॉपर्टी डीलर से 10 लाख की फिरौती मांगी।
जब उसने पैसे देने से इनकार किया, तो बिल्लू ने उसके मर्डर की प्लानिंग शुरू कर दी।
लेकिन पुलिस ने सब्दलपुर चौराहे पर उसे धर दबोचा।
🚔 पुलिस के सामने हथकड़ी खोलने का डेमो
एक पुराने वीडियो में बिल्लू पुलिसवालों के सामने हथकड़ी निकालकर दिखा देता है।
वह कहता है — “देखो, मुझे कोई हथकड़ी नहीं लगा सकता।”
उसका अंदाज़ मजाकिया था, लेकिन इरादे बेहद खतरनाक।
यह सब देखकर पुलिस भी दंग रह गई थीडेम
“नायक नहीं खलनायक हूं मैं, और मुझे बदमाशी का शौक है।”
उसकी जुबान पर यह डायलॉग हर वक्त रहता।
📹 सोशल मीडिया पर ‘गैंगस्टर स्टार’ बनने की चाह
सोशल मीडिया के ज़माने में बिल्लू खुद को गैंगस्टर स्टार बनाने में जुटा था।
उसके कई वीडियो यूट्यूब और फेसबुक पर वायरल हुए थे।
लोग उसे “सहारनपुर का खलनायक” कहने लगे।
वह कहता —
“मुझे नाम चाहिए… नाम बड़ा होना चाहिए, चाहे किसी भी कीमत पर।”
इसी सोच ने उसे अपराध की गहराई में धकेल दिया।
उसकी हर हरकत में वही जुनून झलकता
“नायक नहीं खलनायक हूं मैं — प्यार नहीं, नफ़रत के लायक हूं मैं।”
🧱 अब जेल की सलाखों के पीछे ‘खलनायक’
आज नदीम उर्फ बिल्लू सांडा सहारनपुर जेल में बंद है।
उस पर 16 से अधिक संगीन मामले दर्ज हैं — हत्या, लूट, फिरौती, हत्या का प्रयास और अवैध हथियार।
वह सीसीटीवी निगरानी में रखा जाता है ताकि दोबारा भाग न सके।
वक्त ने सिखा दिया कि
“बुरे काम का बुरा ही नतीजा होता है।”
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का ये “फिल्मी खलनायक” अब सलाखों के पीछे है,
और उसका डायलॉग अब एक सबक बन चुका है —
“नायक नहीं खलनायक हूं मैं” कहने वाले का अंत हमेशा सलाखों के पीछे ही होता है।
🧩जब जिंदगी ने फिल्मी खलनायक को हकीकत बना दिया
नायक नहीं खलनायक हूं मैं — यही था उसका जुनून और पतन का कारण।
बचपन में अपराध, युवावस्था में हत्याएं और अब जेल की जिंदगी।
फिल्मी डायलॉग से प्रेरित होकर उसने असली जिंदगी में खलनायक बनना चुना।
लेकिन हर खलनायक की तरह उसका भी अंजाम वही हुआ — कानून के हाथों गिरफ्तारी।
🏁 अपराध का ग्लैमर झूठा है
नदीम उर्फ बिल्लू सांडा की कहानी बताती है कि
“फिल्मी खलनायक” बनने की चाह असल जिंदगी में केवल बर्बादी लाती है।
जिन्हें वह ‘नाम’ और ‘शौक’ कहता था,
वही उसकी जेल की पहचान बन गए।
उसकी कहानी का एक ही संदेश है —
“नायक नहीं खलनायक हूं मैं कहने वाला कभी नायक नहीं बन पाता।”
