-मोहन द्विवेदी
पूर्व राज्यपाल और किसान नेता सत्यपाल मलिक का 5 अगस्त 2025 को 79 वर्ष की उम्र में दिल्ली में निधन हो गया। छात्र राजनीति से शुरू होकर राज्यपाल पद तक का उनका सफर न सिर्फ संघर्षों से भरा था, बल्कि सिद्धांतों से भी ओतप्रोत था। उनके जीवन के प्रमुख पड़ाव, विचारधारा और किसान आंदोलनों में भूमिका को विस्तार से जानें।
🌾 किसान नेता का राजनीतिक अवसान
राजनीति में एक ऐसा विरला क्षण आता है जब कोई व्यक्ति सत्ता के केंद्र में रहकर भी जनपक्षधरता का झंडा थामे रहता है। सत्यपाल मलिक ऐसे ही दुर्लभ नेताओं में से एक थे। 5 अगस्त 2025 को जब दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल से उनके निधन की खबर आई, तो राजनीतिक गलियारों से लेकर देश के खेत-खलिहानों तक शोक की लहर दौड़ गई। वे 79 वर्ष के थे और लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे।
🌱 गांव से दिल्ली तक—एक संघर्षशील यात्रा
24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद के हिसावदा गांव में जन्मे सत्यपाल मलिक का बचपन अभावों में बीता। पिता का साया जल्द उठ गया, लेकिन मां जगनी देवी ने उन्हें आत्मनिर्भरता और संघर्ष की राह दिखाई। शिक्षा के लिए वे मेरठ कॉलेज पहुंचे, जहां 1965 में उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा और एक वर्ष बाद छात्रसंघ के पहले अध्यक्ष बने। यहीं से उनके राजनीतिक जीवन की नींव पड़ी—जो आने वाले दशकों में न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे भारत की राजनीति में स्पष्ट गूंज छोड़ती रही।
🔄 चरण सिंह से लेकर भाजपा तक—राजनीतिक पड़ाव
सत्यपाल मलिक की राजनीति का आरंभ पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के ‘भारतीय क्रांति दल’ से हुआ। 1974 में वे बागपत से विधायक चुने गए। फिर लोकदल बना, तो मलिक राष्ट्रीय महामंत्री बने और राज्यसभा भेजे गए। लेकिन, राजनीतिक दृष्टिकोण बदलते रहे।
1984 में कांग्रेस में शामिल हुए और दोबारा राज्यसभा पहुंचे, मगर 1987 में बोफोर्स घोटाले से क्षुब्ध होकर उन्होंने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। यही उनकी ईमानदार छवि की पहली बड़ी झलक थी।
इसके बाद वे जनता दल में शामिल हुए और 1989 में अलीगढ़ से लोकसभा सांसद बने। केंद्र में मंत्री बने लेकिन ओमप्रकाश चौटाला के मुख्यमंत्री बनाए जाने का विरोध करते हुए इस्तीफा दे दिया—यह उनके सिद्धांतवादी व्यक्तित्व का दूसरा उदाहरण था।
🏛 राज्यपाल के रूप में ऐतिहासिक भूमिकाएं
2004 में सत्यपाल मलिक भाजपा में शामिल हुए, हालांकि चुनाव नहीं जीत सके। इसके बाद संगठनात्मक कार्यों में लगे रहे और 2017 में बिहार के राज्यपाल बनाए गए। लेकिन उनका सबसे चर्चित कार्यकाल जम्मू-कश्मीर में रहा, जहां उनके राज्यपाल रहते अनुच्छेद 370 हटाया गया और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया गया।
इसके अतिरिक्त वे गोवा, मेघालय और कुछ समय के लिए ओडिशा के भी राज्यपाल रहे। हर पद पर उन्होंने सत्ता की चापलूसी के बजाय जनता की संवेदनाओं का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने एक बार कहा था, “राज्यपाल हूं, गुलाम नहीं।” यह कथन ही उनकी आत्मा की सच्चाई था।
🚜 किसान आंदोलनों में एक सच्चा साथी
राजनीतिक पदों से परे, सत्यपाल मलिक की असली पहचान किसानों की आवाज के रूप में थी। 1966-67 के मेरठ छात्र आंदोलन से लेकर 1968-69 के ‘अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन तक वे सक्रिय रहे। 1974-75 में जेपी आंदोलन में शामिल हुए।
1990 के अलीगढ़ दंगों में पीड़ितों की मदद के लिए उन्होंने अपना पूरा सालाना वेतन दान कर दिया।
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उन्होंने क्षेत्र का दौरा किया और पीड़ितों की आवाज़ उठाई।
कृषि कानूनों के विरोध में उन्होंने केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की और किसानों के पक्ष में स्पष्ट और मजबूत बयान देते रहे, जिससे उन्हें व्यापक जनसमर्थन मिला।
🎙 भाषण शैली: जब शब्द हथियार बनते हैं
सत्यपाल मलिक की भाषण शैली उनकी ताकत थी। उनमें जमीनी सच्चाई और सादा व्याकरण था, लेकिन उसमें सत्ता को आईना दिखाने की ताकत थी। चाहे वह प्रधानमंत्री की आलोचना हो या राज्यपाल पद पर रहते समय केंद्र से असहमति—उन्होंने कभी चुप्पी नहीं ओढ़ी।
उनके भाषणों में अक्सर चौधरी चरण सिंह की किसानवादी विचारधारा की झलक मिलती थी। भाषणों में विडंबना और साफगोई का अद्भुत संतुलन होता था—जो उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाता था।
👨👩👦 पारिवारिक पक्ष
सत्यपाल मलिक का निजी जीवन भी सादगी और चेतना से भरा था। उनकी पत्नी इकबाल मलिक एक जानी-मानी पर्यावरणविद् हैं। बेटा देव कबीर मलिक ग्राफिक डिज़ाइनर है और बहू निविदा चंद्रा कला और संस्कृति से जुड़ी हुई हैं। उनका परिवार 1980 के दशक से ही दिल्ली में निवास कर रहा है।
📌 उनके राजनीतिक जीवन के मुख्य पड़ाव
वर्ष पद पार्टी/दायित्व
1974 विधायक, बागपत भारतीय क्रांति दल
1980-84 राज्यसभा सदस्य लोकदल
1986-89 राज्यसभा सदस्य कांग्रेस
1989-91 लोकसभा सांसद, अलीगढ़ जनता दल
1990 केंद्रीय राज्य मंत्री जनता दल
2004 भाजपा में शामिल संगठनात्मक कार्य
2017 राज्यपाल, बिहार भाजपा सरकार द्वारा नियुक्त
2018 राज्यपाल, जम्मू-कश्मीर अनुच्छेद 370 हटाने के समय
2019-22 राज्यपाल, गोवा और मेघालय संवैधानिक दायित्व
🕯️ एक युग का अंत
सत्यपाल मलिक का जाना सिर्फ एक नेता का निधन नहीं है, यह एक विचार, एक संघर्षशील चेतना और एक स्पष्टवादिता की विरासत का अवसान है। उन्होंने राजनीति को साधन नहीं, जनसेवा का मंच समझा। उनके जैसे नेता अब विरले ही दिखते हैं—जो सत्तालोलुपता से दूर रहकर भी सत्ता के समीप रहकर जनता की बात करते थे।
📝 निष्कर्षतः, सत्यपाल मलिक की जीवन-यात्रा हमें यह सिखाती है कि पद, पार्टी या प्रतिष्ठा से बड़ा जनता के प्रति उत्तरदायित्व होता है। वे चले गए, लेकिन उनके विचार, भाषण, और संघर्ष की स्मृतियां भारतीय राजनीति को आने वाले वर्षों तक प्रेरित करती रहेंगी।