ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
देश में समलैंगिक संबंधों की स्वीकार्यता पर बहस वर्षों से जारी है। एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को निरस्त कर इन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया, वहीं सामाजिक स्तर पर इसे अब भी सहजता से स्वीकार नहीं किया जा रहा। इसी पृष्ठभूमि में उत्तर प्रदेश के संभल जिले से सामने आया एक मामला फिर से इस बहस को नया आयाम दे रहा है।
निजी स्कूल में साथ पढ़ाती थीं दोनों युवतियां
मामला संभल जिले के गुन्नौर क्षेत्र के हैरतगंज कस्बे का है। यहां की दो युवतियां एक निजी विद्यालय में अध्यापन कार्य कर रही थीं। उनके बीच की नजदीकी पहले भी चर्चा का विषय बनी थी, लेकिन जब उन्होंने अचानक स्कूल से तबीयत खराब होने का बहाना बनाया और साथ में लापता हो गईं, तो मामला गंभीर हो गया।
वास्तव में, यह घटना तब और ज्यादा सनसनीखेज हो गई जब दोनों ने अपने मोबाइल फोन बंद कर दिए और घर लौटना तो दूर, कोई संपर्क तक नहीं किया।
परिजन परेशान, पुलिस तक पहुंचा मामला
जब रात तक दोनों युवतियां अपने घर नहीं लौटीं, तो परिजनों की चिंता स्वाभाविक थी। उन्होंने पहले स्कूल में पूछताछ की, जहां उन्हें पता चला कि दोनों दोपहर में ही स्कूल से जा चुकी हैं। इसके बाद परिवारजन उनकी तलाश में जुटे, लेकिन जब कोई सुराग नहीं मिला, तो स्थानीय थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई।
सात दिन बाद खुद पहुंचीं कोतवाली
लगभग एक सप्ताह बीत गया। इसी बीच 14 अक्टूबर को दोनों युवतियां अचानक खुद ही कोतवाली पहुंच गईं। उन्होंने पुलिस को बताया कि वे नौकरी की तलाश में दिल्ली गई थीं।
हालांकि, कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। जब उनके परिजन उन्हें घर ले जाने पहुंचे, तो दोनों ने स्पष्ट कह दिया कि वे एक-दूसरे के साथ ही रहेंगी और घर नहीं जाएंगी। पुलिस ने भी उन्हें समझाने का प्रयास किया, पर युवतियां अपने फैसले पर अडिग रहीं।
रिश्ते की प्रकृति पर उठे सवाल
चूंकि दोनों युवतियां साथ में पढ़ाती थीं और अब एक साथ रहना चाहती हैं, समाज इस रिश्ते को समलैंगिक संबंध के रूप में देखने लगा है। पुलिस भले ही इसे आपसी सहमति का मामला मान रही हो, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर इसको लेकर चर्चाएं तेज हैं।
इसी बीच, कुछ लोगों ने इसे आधुनिक जीवनशैली और स्वतंत्रता का परिणाम बताया, तो वहीं कई लोग अब भी इसे समाज के स्थापित मानकों के विरुद्ध मान रहे हैं।
कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण
कानूनी रूप से यदि दोनों बालिग हैं और उनकी आपसी सहमति है, तो उन्हें साथ रहने से कोई नहीं रोक सकता। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।
फिर भी, ग्रामीण और अर्ध-शहरी समाज में ऐसे रिश्तों को खुलेआम स्वीकार करना आज भी दुर्लभ है। ऐसे में इन दोनों युवतियों की जिद और साहस समाज के स्थापित ढांचे को एक नई चुनौती दे रहा है।
सोशल मीडिया और क्षेत्रीय प्रतिक्रिया
इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी जैसे ही क्षेत्र में फैली, सोशल मीडिया पर भी इसकी चर्चा शुरू हो गई। कुछ लोग इन युवतियों के साहस की सराहना कर रहे हैं, तो कई लोग इस रिश्ते को अनैतिक और अशोभनीय बता रहे हैं।
इसके अतिरिक्त, स्थानीय लोग इसे लेकर संशय में हैं कि क्या यह आधुनिकता है या दिशा भ्रम। कुछ सामाजिक संगठन भी इस मामले में हस्तक्षेप की सोच रहे हैं।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाम सामाजिक स्वीकार्यता
यह मामला केवल दो युवतियों के साथ रहने की जिद का नहीं है, बल्कि यह समाज की मानसिकता और कानून की सीमाओं के बीच टकराव का प्रतीक बन गया है।
स्पष्टतः, जब कानून ने उन्हें अधिकार दे दिया है, तो क्या समाज उन्हें वह सम्मान और स्वतंत्रता देगा, जिसकी वे अधिकारी हैं? यह एक बड़ा सवाल है।
इस प्रकरण ने एक बार फिर दिखा दिया कि प्रेम की परिभाषा अब सीमाओं में नहीं बंधी। आवश्यकता है खुले मन से सोचने की, ताकि हर व्यक्ति को अपनी पहचान और पसंद के साथ जीने का अधिकार मिल सके।